फिरसे जीवित हो क्षात्र धर्म ...!


पर-ब्रह्म परमेश्वर ने सृष्टि को रच दिया !
क्षरण से इसकी रक्षा का भार किसे दिया ?१?

कौन इसे क्षय से बचा  कर जीवन देगा ?
कौन इसे पुष्प दे कर स्वयं काँटे लेगा ?२?

नारायण ने ह्रदय से क्षत्रिय ,को पैदा किया है !
सृष्टि को त्राण क्षय से ,कराने का काम दिया है !३!

शौर्य, तेज़, धैर्य, दक्षता,और संघर्ष से न भागो !
दान-वीरता ,और ईश्वरीय भाव अब तो जागो !४!

इतने सारे स्वभाविक गुण ,दे दिए भर-कर !
हर युग,हर संघर्ष में जीवित रहो ,मर मर-कर!५!

हर क्षेत्र,हर काल में हमने चरम सीमा बनायीं !
चिल्ला चिल्ला-कर ,इतिहास दे रहा है, गवाही !६!

खता उसी फल को सारा जग,जिसे तू बोता था !
अखिल भूमि पर, तेरा ही शासन तो होता था !७!

किन्तु महाभारत के बाद ,हमने गीता को छोड़ दिया !
काल-चक्र ने इसीलिए ,हमे अपनी गति से मोड़ दिया!८!

जाने कहाँ गया वह गीता का ज्ञान जो हमारे पास था ?
समस्त ब्रह्माण्ड का ज्ञान, उस समय हमारा दास था !९!

यवनों के आक्रमण पर इसीलिए रुक गया हमारा विकास !
अश्त्र-सशत्र सब पुराने थे ,फिर भी हम हुए नहीं निराश !१०!

उस समय हमारे भी अश्त्र समयानुकूल होते काश !
तो फिर अखिल विश्व हमारा होता,हम होते नहीं दास !११!

यवन, मुग़ल, और मलेच्छ , इस देश पर चढ़े थे !
हम भी कम न थे ,तोप के आगे तलवार से लड़े थे !१२!

किन्तु कुछ तकनिकी ,कुछ दुर्भाग्य ने हमारा साथ निभाया !
अदम्य सहस और वीरता को ,अनीति और छल ने झुकाया !१३!

विदेशी अपने साथ अनीति और अधर्म को साथ लाये थे !
मेरे भोले भारत को छल कपट और अन्याय सिखाये थे !१४!

तब तक हम भी, क्षत्रिय से ,हो गये थे राजपूत !
गीता ज्ञान के आभाव में नहीं रहा था शांतिदूत !१५!

हिन्दू ,राजपूत और सिंह जैसे संबोधन होने लगे !
अपने ही भाईयों को,क्षत्रिय इस चाल से खोने लगे !१६!

कुछ राजा और राजपूत अलग हो गये छंट-कर !
पूरा क्षत्रिय समाज छोटा होता गया बंट बंट-कर !१७!

फिर फिरंगी, अंग्रेज, भारत में आये धोखे से !
हम राज्य उन्हें दे बैठे , व्यापर के मौके से !१८!

लॉर्ड मेकाले ,सोच समझ कर सिक्षा निति लाई !
क्षत्रियो के संस्कार पर अंग्रेज संस्कृति खूब छाई !१९!

क्या करे और कैसे कहे ,वह पल है दुःख दायी !
सबसे पहले एरे ही अलवर को वो सिक्षा भायी !२०!

हमने अपना कर विदेशी संस्कृति को क्षत्रियता छोड़ दी !
अपने साथ उसी समय ,भारत की किस्मत भी फोड़ दी !२१!

आज उसी का फल सारा जग हा हा कार कर रहा है !
धर्मं, न्याय ,और सत्य हर पल ,हर जगह मर रहा है !२२!

अधर्म, अन्याय ,और असत्य का नंग नाच हो रहा है !
हर नेता ,हर जगह ,हर पल ,भेद के बीज बो रहा है!23!

कहीं जाति के नाम ,कहीं आतंक के नाम शांतिको लुटा दिया !
धर्मं, न्याय और सत्य का ध्वज हर जगह झुका दिया !24!

वायु से लेकर जल तक ,हर जगह गंध मिला दिया !
सारे ब्रह्माण्ड का गरल ,मेरी जनता को पिला दिया !२५!

जिसकी रक्षा के लिए क्षत्रिय बने , उसी को रुला दिया !
फिर भी क्षत्रिय को ,न जाने किस नशे ने, सुला दिया !२६!

स्वार्थी नेताओ ने ,जनता को खूब भरमाया है !
हमारे विरुद्ध न जाने, क्या-क्या समझाया है !27!

इतिहास को तोड़-मरोड़ ,नेहरु और रोमिला ने भ्रष्ट कर दिया !
जन-बुझ कर, उसमे से ,क्षत्रिय गौरव को नष्ट कर दिया !२८!

क्योंकि वे जानते थे ,कि इनकी हार में, भी थी शान !
और जनता भी बेखबर, न थी ,उसे भी था भान !२९!

गुण-विहीन ,तप-विहीन ,धर्म-हीन कोई क्षत्रिय हो नहीं सकता !
क्षत्राणी कि कोख मात्र से, पैदा होकर क्षत्रिय हो नहीं सकता !३०!

जब तक न गीता का रसपान करेगा जीत न सकेगा समर !
रण-चंडी बलिदान मांग रही है ,तू कस ले अपनी कमर !३१!

कभी प्रगति ,कभी स्वराज्य का सपना दिखा खूब की है मनमानी !
प्रगति तो खाक की है ,चारोओर आतंक है पीने को नहीं है पानी !३२!

फिर भी कभी कर्जे माफ़ी ,कभी आरक्षण के सहारे होता है चयन !
राष्ट्र जाये भाड़ में ,शांति जाये पाताल में , वोटो पर होते है नयन !३३!

कभी बोफोर्स, कभी चारा, कभी तेल घोटाले से बनता है पेशा !
खूब लुटा है भोली जनता को ,यह प्रजातंत्र चलता है कैसा !३४!

यों तो कुकुमुत्ते की तरह गली-गली में दल है अनेक !
लूटने में भारत माता को, भ्रष्टाचार में लिप्त है हरेक ! ३५!

गरीब का बसेरा सड़क पर , और नंगे पैर चलता है !...
सकल-घरेलु उत्पाद का अधिकांश धन,विदेशी बैंकोमें डलता है ! ३६!

भारतीयता से घृणा कर, हर चीज ...,विदेशी खाते है !
भारत की जनता को लूटने में फिर भी वो नहीं शरमाते है !३७ !

हर त्यौहार ,हर ख़ुशी में बच्चो को सौगात विदेशी लाते है !
हद तो तब होती है, जब चीज ही नहीं बहू भी विदेशी लाते है! ३८!

स्वतंत्रता के नाम पर हमने ...जला दिए विदेशी परिधान !
किन्तु आजादी के बाद हमने लागु कर दिया विदेशी विधान!३९ !

अपराध -संहिता ,दंड-संहिता,अंग्रेजो का चल रहा है विधान !
६३ वर्ष गवाँ दिए हमने फिर भी खोज नहीं सके निधान !४०!

चारोऔर तांडव महा -विनाश का, तेजी से चल रहा है !
हर बच्चा ,हर माँ रो रही ,मेरा सारा भारत जल रहा है ! ४१!

सब कुछ खो कर ,मृत जैसा आराम से क्षत्रिय सोया है !
महा पतन का कारण एक ही,क्षत्रिय ने राज्य खोया है !४२!

न जाने किस धर्म की ओट लेकर, क्षत्रिय कहाँ भटक गया ?
किस जीवन स्तर,किस विकास के चक्कर में अटक गया !४३?

दुनिया के अन्धानुकरण ने ,क्षात्र-धर्मं को दे दिया झटका !
जाट,गुजर,अहीर मीणा ही नहीं,अब तो राजपूत भी भटका !४४!

अपना धर्मं. अपना कर्म छोड़ चा रहा है ,झूंठा विकास !
बहाना लेकर , कर्म छोड़ कर, हो रहा है समय का दास !४५!

समय का दास बन ,अपने आपको बदल कर होरहा है प्रसन्ना !
भूल रहा है तेरी इसी ही हरकत से भारत हो गया है विपन्न !४६!

जग में हो कितना ही दर्द ,क्षत्रिय ही को तो हरना है !
अपने मरण पर जीवन देता, क्षत्रिय ऐसा ही तो झरना है!४७!

रास्ता बदल दे सूर्य देव ,अपनी शीतलता चाँददेव छोड़ दे !
है सच्चा क्षत्रिय वही , जो वेग से समय का मूंह मोड़ दे !४८!

जितना मन रखा ,उतना ताकतवर है नहीं समय का दानव !
समय की महिमा गाने वालो,ज्यादा ताकत रखता है मानव !४९!

प्राण शाश्वत है ,मरता नहीं ,किसी के काटे कटता नहीं !
प्राण बल को प्रबल करो, प्राणवान संघर्ष से हटता नहीं !५०!

अर्जुन भी हमारी ही तरह, पर-धर्मं को मानते थे !
भलीभांति श्री कृष्ण इस गूढ़ रहस्य को जानते थे !५१!

इसीलिए साड़ी गीता में नारायण ने ,उसको धर्म बताया !
उस सर्वश्रेष्ट धनुर्धर को, क्षत्रिय का क्षात्र-धर्म बताया !५२!

जब तक सत्य-असत्य,धर्मं-अधर्म का अस्तीत्व बना रहेगा !
इस ब्रहामंड की रक्षा के लिए हमारा भी क्षत्रित्व बना रहेगा !५३!

जब आज अधर्म,अन्याय ,असत्य और बुराई का राज है !
तो फिर पहले से कहीं ज्यादा, जरुरत क्षत्रिय की आज है !५४!

मरण पर मंगल गीत गा कर ,क्षत्राणी सदा बचाती धर्मं !
हम सब का एक ही कर्म फिर से जीवित हो क्षात्र-धर्मं !५५!

"जय क्षात्र-धर्मं"



"कुँवरानी निशा कँवर नरुका "

श्री क्षत्रिय वीर ज्योति

Comments :

3 comments to “फिरसे जीवित हो क्षात्र धर्म ...!”

Unknown said... on 

very nice...... very very nice about our community. its real .... pl keep it up for rise

Unknown said... on 

दिव्या धन लक्ष्मी माला
समस्त कामनाओं की पूर्ति हेतु
शास्त्रों में अष्ट महालक्ष्मी का वर्णन मिलता हैं, जानिए कौन सी लक्ष्मी बनाएगी आपको मालामाल
क्या आप जानते हैं शास्त्रों के अनुसार अलग-अलग इच्छाओं के लिए
अलग-अलग महालक्ष्मी के रूप को पूजन का विधान बताया गया है। यदि
हम धन चाहते हैं तो धन लक्ष्मी को पूजें और यदि हम खुद का घर
चाहते हैं तो भवन लक्ष्मी को पूजें। इसी प्रकार अलग-अलग
इच्छाओं के लिए अलग-अलग लक्ष्मी रूप हैं।
... सभी को अपार धन का मोह है और इसी मोहवश धन की देवी
महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। देवी महालक्ष्मी की कृपा
प्राप्ति के लिए व्यक्ति कई तरह के प्रयास करता है। शास्त्रों
के अनुसार महालक्ष्मी के आठ रूप बताए गए हैं। सभी रूपों का
अलग-अलग महत्व है। जिस व्यक्ति की जो इच्छा होती है उसी के
अनुरूप महालक्ष्मी की पूजा करने पर मनोकामनाएं जल्दी पूर्ण हो
जाती हैं। ये रूप इस प्रकार हैं...
-:धन लक्ष्मी:-(दिव्या धन लक्ष्मी माला) धारण कर लक्ष्मी के इस
रूप की साधना करने से लगातार धन की प्राप्ति होती है।
-:यश लक्ष्मी:-(दिव्या धन लक्ष्मी माला) धारण कर लक्ष्मी के इस
रूप की पूजा करने से समाज में मान-सम्मान, यश, प्रसिद्धि,
प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है -:आयु लक्ष्मी:-(दिव्या धन
लक्ष्मी माला) धारण कर लक्ष्मी के इस स्वरूप की साधना से
दीर्घायु एवं स्वास्थ्य प्राप्त होता है। उपासक निरोगी रहता है
और सुंदर शरीर वाला बना रहता है।
-:वाहन लक्ष्मी:-(दिव्या धन लक्ष्मी माला) धारण कर : लक्ष्मी
के इस रूप की उपासना करने से व्यक्ति को वाहनों का सुख प्राप्त
होता है। व्यक्ति को सभी भौतिक सुखों की प्राप्ति होती
है।-:स्थिर लक्ष्मी:-(दिव्या धन लक्ष्मी माला) धारण कर लक्ष्मी
के इस स्वरूप के पूजन से व्यक्ति के घर में अपार धन संपदा सदैव
बनी रहती है।
गृह लक्ष्मी:-(दिव्या धन लक्ष्मी माला)धारण कर लक्ष्मी के इस
रूप की पूजा करने से व्यक्ति को सर्वगुण संपन्न पत्नी की
प्राप्ति होती है। गृह लक्ष्मी की आराधना से सुंदर, सु-विचारों
वाली पत्नी की प्राप्ति होती है। -:संतान लक्ष्मी:- (दिव्या धन
लक्ष्मी माला )धारण कर : देवी के इस रूप को पूजने से भक्त को
सद् बुद्धि वाली संतान की प्राप्ति होती है। ऐसी संतान
माता-पिता का नाम रोशन करने वाली! होती है।
-:भवन लक्ष्मी:- यदि आपको अपना खुद का घर बनवाना है तो( दिव्या
धन लक्ष्मी माला )धारण कर आप भवन लक्ष्मी की पूजा करें, बहुत
जल्द आपका खुद का घर बन जाएगा। ************** जय लक्ष्मी
माता, मैया जय लक्ष्मी माता । तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु
धाता ।। इतिश्री............. प्राप्त करें. ज्ञानसागर प्रताप
जी महाराज 09166999470 + 09166999472

PRAMODKUMAR JADHAV, NAVI MUMBAI said... on 

VERY GOOD POEM ON KSHATRIYAS, RAPUTS AND THE CONTEMPORARY SOCIAL, POLITICAL AFFAIRS !!! JAI KSHATRA DHARM...
KSHATRIYON...AB TO JAAGO......GITA KO APNAO.... HARE KRISHNA !!

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