शेर-ए-मारवाड़...........!

राजस्थान की धरा वीर प्रसविनी धरा मानी जाती है........कई वीर और वीरांगना यहाँ प्रसिद्द है! चलो आज हम एक अनोखे....नन्हे शेर की बात करते है जिसने दिल्ली के मुग़ल बादशाह को भी भयचकित कर दिया था!


बात उन दिनों की है जब औरंगजेब शिकार पर निकला था! अपने सैनिकों की सहायता से उन्होंने एक शेर को पकड़ा और पिंजरे में बन्द कर दिया! उस शेर को अपने साथ वह राजमहल ले आया और पास ही के बगीचे में रखा! दुसरे दिन चापलूसी करने वाले लोग दरबार में बादशाह की वीरता की तारीफ कर रहे थे! बादशाह ने भी उस शेर को पकड़ ने में कितनी म्हणत करनी पड़ी उस बात के बारे में बढ़ चढ़ कर बताया! सभी दरबारी लोग बादशाह की बात ध्यान से सुन रहे थे और बात पर तारीफ कर रहे थे! आखिर बादशाह ने दरबार में मौजूद लोगों से पूछा, "क्या आपने अपनी जिंदगी में इतना खूंखार शेर कभी देखा था?".......मौजूद लोगो ने बताया, "नहीं.... नहीं....!" कुछा लाचार लोग तो यहाँ तक कहने लगे की जहाँपना ने पकडे हुए शेर जैसा शेर आजतक किसी ने ना कभी देखा होगा या पकड़ा होगा! दरबार में बादशाह की जयजयकार गूंज रही थी! अचानक एक तेज आवाज से दरबार में सन्नाटा छा गया! सारे दरबारी आवाज की दिशा की तरफ देखने लगे! यह कौन गुस्ताखी कर रहा है.........बादशाह सलामत उसे जरुर सजा देंगे......दरबार में स्वामिभक्त सरदार धीमे आवाज में एक-दुसरे से कहने लगे.....! बादशाह सलामत ने भी उस दिशा की ओर अपनी नजर डाली........वह शख्स फिर बोले.....,"जहाँपना, आपके शेर से भी बढकर एक नन्हा शेर मेरे पास है! मेरे शेर के सामने आपका शेर कुछ भी नहीं!"

सारे दरबार में फिर से सन्नाटा छा गया.........वह शख्स था जोधपुर का भूतपूर्व राजा जसवंतसिंह ....! धूर्त औरंगजेब जसवंतसिंह के ऐलान से मन-ही-मन में लज्जित हो गया....! उसने भी जबाब में कह दिया,"देखते है राजाजी, हम भी आप के नन्हे शेर को देखना पसंद करेंगे! आप कल उसे यहाँ ले आओ, नन्हे शेर को इस खूंखार शेर के साथ पिंजरे में बन्द कर देखेंगे की किसका शेर ज्यादा शक्तिशाली है!"

दुसरे दिन राजा जसवंतसिंह अपने नन्हे शेर को लिए साथ शाही बाग़ की ओर चल दिए.......! शाही बाग़ में काफी भीड़ थी! हर एक शख्स राजा जसवंत के शेर को देखने उत्सुक था! स्वयं बादशाह भी.....! जब राजा जसवंत वहा पहुचे तो बादशाह ने पूछा, "बोलो राजाजी, कहा है आप का शेर? , साथ लाये हो या आपके शेर ने दम तोड़ दिया?" राजाजी ने अपने १४ साल के पुत्र पृथ्वीसिंह को बादशाह के सामने पेश कर कहा की यही है मेरा नन्हा शेर.......!

बादशाह के साथ-साथ उपस्थित जनसमुदाय विस्मय चकित हो गया! कुछ लोग डर गए......कुछ मन-ही-मन में आनंद ले रहे थे! बादशाह भी पत्थरदिल था! उसने तुरंत आदेश दिया की उस बालक को शेर के साथ पिंजरे में बन्द कर दिया जाये! पृथ्वीसिंह को पिंजरे के अन्दर छोड़ा गया.......वह शेर की आँखों में देख रहा था! पृथ्वी की तेज नजर से नजर मिलकर वह असली शेर भी एक जगह खड़ा हो गया! मानो वह शेर भी पृथ्वी के साहस की प्रशंसा कर रहा था! औरंगजेब ने अपने सैनिकों को आदेश दिया! कुछ सैनिक भाला लेकर उस शेर को उकसाने लगे! झल्लाए हुए शेर ने गर्जना की और झट से पृथ्वी को ओर जा झपटा! पृथ्वी भी तुरंत वहा से परे हो गया और उसने अपनी तलवार को म्यान से निकाली! उस वक्त राजा जसवंत सिंह ने पृथ्वी को आवाज देकर कहा की," बेटे निहत्ते शेर पर तलवार से वर करना राजपूत को शोभा नहीं देता.....!"

अपने वीर पिता के शब्द सुन उस वीर पुत्र ने भी अपनी तलवार फेक दी और अपने दोनों हाथों से शेर से लड़ने लगा! एक वीर बालक और एक खूंखार शेर की यह जंग बड़ी ही रोमांचक थी! देखते देखते उस वीर बालक ने शेर के मुह को फाड़ डाला......शेर वही ढेर हो गया! सारा माहोल तालिया और उस वीर बालक की जयजयकार से गूंज उठा! बादशाह भी भयचकित हो गया! लेकिन उस कंजूस बादशाह ने उस बालक के अपूर्व साहस के गौरव में केवल बधाई दी! कुछ भी इनाम उसे दिया नहीं गया! इनाम की परवाह किसे थी....! उस वीर बालक ने अपनी माँ का दूध और अपनी वीर प्रसविनी धरा मारवाड़ का गर्व और गौरव जो बढाया था! 

                                                                                            -------जयपालसिंह गिरासे

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