"क्षत्राणी का सच्चा धर्म...!"

क्षत्रिय का शाब्दिक अर्थ है क्षय से त्राण कराने वाला!
क्षत्राणी का शाब्दिक अर्थ है क्षय से त्राण वाली!
अर्थात अर्थ की दृष्टी से क्षत्रिय और क्षत्राणी में कोई भेद नहीं है!
धर्मं शास्त्रों एवं इतिहास में जितना ध्यान क्षत्रिय पर दिया है उससे कही अधिक ध्यान क्षत्राणी के धर्म और कर्तव्य पर भी दिया गया है!
वासुदेव श्री कृष्ण शांतिदूत बन कर हाश्तिनापुर आते है तो कुंती से अपने पुत्र युधिष्टर के लिए सन्देश लेते है... तो कुंती कहती है कि "कह देना युधिष्टर कि वो दिन आ गया; जिस दिन के लिए क्षत्राणी पुत्र पैदा करती है" साधारण  से सन्देश में इन्द्रप्रस्थ कि राजमाता ने सब कुछ कह दिया!
राजकन्या मदालसा से साबित किया कि माता ही निर्माता है!
माता जैसा चाहे पुत्र पैदा कर सकती है!
क्षत्रानियो कि बात हो और हाडारानी का जिक्र न हो.. तब भी प्रतिवाद अधूरा ही रह जायेगा!
हमारा विषय यह नहीं कि हम इतिहास में क्षत्रानियो द्वारा किये गए धर्मं पालन कि व्याख्या करे,बल्कि हमारा विषय है कि ,वर्तमान समय में जहाँ शायद अखिल विश्व में कोई विरला क्षत्रिय ही क्षात्र धर्मं का पूर्ण रूपेण पालन कर रहा हो,ऐसे में हम क्षत्रानियो कि क्या भूमिका हो? मै आपको यह बता दू कि क्षत्रियों ने अब से पहिले व्यक्तिगत रूपसे कइयो बार क्षत्र-धर्म का उल्लंघन किया है,और अनेको बार तो युद्ध से भाग कर महलो में भी आते रहे है! लेकिन हम क्षत्राणियों ने कभी विदुला बनकर इन्हें फिर से क्षात्र-धर्म का पालन करने के लिए बाध्य किया है!
आज कि विडम्बना यह है कि अब क्षत्रानिया भी अपने धर्मं को भूलकर आधुनिकता कि चकाचौंध मे कहीं भटक गयी है! परिणाम समक्ष है, सारी पृथ्वी पर क्षात्र धर्म लुप्त के कगार पर है!
पूरा ब्रहमांड तेजी से महा विनाश की ओर बढ़ रहा है!
ज्योतिषी और वैज्ञानिक एक स्वर में सृष्टि के महाविनाश की घोषणा कर रहे है!
न्याय एवं सत्य ,सदाचार,जैसे शब्द बेमानी हो गये है!
धर्मं तो आखिरी श्वांश ले रहा है!
जब कि क्षय से त्राण कराने वालो की संख्या यदि अन्य क्षत्रिय जातियों को सम्मिलित कर लिया जाये तो कोई 70 करोड़ को पार करती है !
फिर क्षत्रियों की इतनी बड़ी जनसंख्या के रहते , कैसे पल-पल नजदीक आ रहा है यह "महा विनाश" ? एक दम साफ जाहिर है कि क्षत्रिय क्षत्रित्वता से हीन है,क्षात्र-धर्मं का पालन करने में न तो सक्षम है और ना ही इस सक्षमता को प्राप्त करने की दिशा में कोई प्रयास हो रहा है!
ऐसे में हम क्षत्राणियों का परम कर्तव्य है की हम अपने पुत्रो में,अपने भाइयो में,अपने पतियों में क्षात्र-धर्मं के पालन की उत्कंठा भर दे! हमे फिर राजकन्या मदालसा बन कर साबित करना होगा कि "माता ही निर्माता है...! "
यदि आज भीष्म कि आवश्यकता है तो भीष्म पैदा करे, श्री राम कि आवश्यकता है तो श्री राम और श्री कृष्ण कि आवश्यकता है तो श्री कृष्ण पैदा कर दे...!
हमे आज चन्द्र-गुप्तो कि आवशयकता है.. जो नौ पीडियों के शुद्र शासन को समाप्त कर फिर से क्षत्रिय शासन कि स्थापना कर सके...!
हमे जीजाबाई बन कर "शिवाजी" का निर्माण करना होगा...!
ना पड़े नारी स्वतंत्रता के खोखले नारों के चक्कर में..... जिन्होंने नारी को विज्ञापन का जरिया बना कर नारी का व्यवसायीकरण कर दिया है! नारी होने से ज्यादा महत्वपूर्ण है क्षत्राणी होना ! आप गीता का अध्ययन करे तो पायेंगे कि श्री कृष्ण ने स्वधर्म पालन पर जोर दिया है! तो आज स्वधर्म पालन कि ही सर्वाधिक आवश्यकता है!
क्षत्रिय समाज ने एक नहीं अनेकों जुझार दिये है ! जोझार सिर कटने के बाद भी लड़ने वाले योद्धा को कहते है!
5 -5 कोस तक बिना सिर के लड़ने वाले योद्धा जब पैदा हो सकते है....! जब हम क्षत्रानियाँ अपने परिवार का पालन पोषण अनवरत महा मृत्युंजय मन्त्र का जप करते हुए करे...! वैसे तो कोई भी मंत्र के जप का अपना ही महत्व होता है! किन्तु इस महा मंत्र के जप से तो मृत्यु भी टल जाती है !अत: हम सब को इस विषैली संस्कृति एवं वातावरण से अपने आपको ऐसे बचाना होगा जैसे कमल अपने आपको कीचड़ से बचाता है...!
हम किसी मंत्र का अनवरत जप करते हुए ऐसे कर्मठ एवं आदर्श क्षत्रियों का निर्माण करे जो इस बिलखती हुई मानवता को सही दिशा दे सके! ईश्वर के नाम: स्मरण कि अनवरत परम्परा अपने बालकों एवं बालिकाओं में शैशव काल से डालनी होगी ,तब उन्हें अपने धर्म का ,अपने ही विवेक से ज्ञान हो सकेगा! आज धर्म के नाम पर चहुँ ओर आडम्बर फैला हुआ है! साधना पद्धति भ्रष्ट हो चुकी है ! अत: इनसे जूझते हुए हम अपना कर्तव्य पालन कर प्राचीन आदर्श क्षत्रियों को अपने घरो में फिर से निर्माण करना है !
आज क्षत्राणी का यही परम धर्मं है...!
----कुँवरानी निशा कँवर नरुका[राजस्थान]
श्री क्षत्रिय वीर ज्योति मिशन 

Comments :

0 comments to “"क्षत्राणी का सच्चा धर्म...!"”

Post a Comment