tag:blogger.com,1999:blog-75886938030212810652024-03-13T23:52:47.598-07:00!! क्षत्रिय संस्थान !!" रणखेती राजपूत री, कबहू न पीठ धरेह......!
देस रखाळे आपणो, दुखिया पीड हरेह......!!"क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.comBlogger61125tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-90260627348142181732023-11-22T08:04:00.000-08:002023-11-22T08:05:50.205-08:00 "श्री रविभाई राजपूत- अभाव से प्रभाव तक की सफल कर्मयात्रा !" ---जयपालसिंह गिरासे <p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhw2AONkkISWaOogZCLLNZF-02jm1Wssfmmlj2lPlfKwj4zViKGXBXrOMa8OJLKTDO1Lpqu3qfeYGE6w8AWseOji9APuRe7MVqY9jyXcbL76PUy_OTZhQoM-zBN1JE9J89NEGcrEqerHubqeBqMdhHco1VurIs9jhIKhk93nX8Up2O0Jx1dZ0uIbGgWa_0/s1223/ravi.jpg" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1223" data-original-width="1083" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhw2AONkkISWaOogZCLLNZF-02jm1Wssfmmlj2lPlfKwj4zViKGXBXrOMa8OJLKTDO1Lpqu3qfeYGE6w8AWseOji9APuRe7MVqY9jyXcbL76PUy_OTZhQoM-zBN1JE9J89NEGcrEqerHubqeBqMdhHco1VurIs9jhIKhk93nX8Up2O0Jx1dZ0uIbGgWa_0/w283-h320/ravi.jpg" width="283" /></a></div><br />गीता में कहां गया है- 'कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनः' जो अविरत कर्म करता रहता है वह जीवन में अवश्य सफलता अर्जित करता है। आज ऐसे ही कर्मयोगी के बारे में लिखने के लिए मै बाध्य हुआ जिन्होंने 'अभाव से प्रभाव' तक सफल सफर किया है। यह कहानी है खान्देश के सुपुत्र तथा सूरत के सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री रविभाई राजपूत की। आज श्री रविभाई का जन्मदिन है। महाराष्ट्र के नंदुरबार जैसे आदिवासी क्षेत्र में देऊर जैसे छोटे से गाँव में जन्म लेकर सुदूर गुजरात की कुबेरनगरी में अपने सुयश का परचम लहराने वाले एक होनहार युवा की यह कर्मयात्रा आज की पीढ़ी को अत्यंत प्रेरक है। <p></p><p>मुझे महात्मा विदुरजी के एक श्लोक का स्मरण हो रहा है ----</p><p>"पंचैव पूजयन् लोके यशः प्राप्नोति केवलं ।</p><p> देवान् पितॄन् मनुष्यांश्च भिक्षून् अतिथि पंचमान् ।।"</p><p>अर्थात-देवता, पित्र, मनुष्य, भिक्षुक तथा अतिथि-इन पाँचों की सदैव सच्चे मन से जो पूजा करता है वह जीवन में सर्वोच्च यश,कीर्ति और सम्मान का अधिकारी होता है।</p><p style="text-align: justify;">श्री रविभाई को अपने जीवन में विदुर नीति के इसी पाठ को प्रत्यक्ष साकार करते हुए मैने देखा है। अपने माता -पिता के आदर्शों पर चलनेवाले श्री रविभाई को जेष्ठ बुजूर्गों का सम्मान करते हुए मैंने देखा है। विद्वतजनों की विद्वत्ता का उचित गौरव करते मैंने प्रत्यक्ष अनुभव किया है। स्वरोजगार के माध्यम से आगे बढ़ने के लिए इच्छुक युवाओं को मार्गदर्शन करते मैंने उन्हें देखा है। कई परिचित-अपरिचित शोषित, पीड़ीत, बिमार लोगों की आर्थिक सहायता करते हुए मैंने देखा है। लेकीन मानवतावादी रविभाई ने कभी इस नेक कार्य का स्वयं श्रेय नहीं लिया , न फोटो निकालकर प्रसिध्दी पाने का यक्तिंचित प्रयास किया और न ही कभी परोपकारिता के वृथा अहंभाव का परिचय दिया। वे हमेशा कहते है , ' मै तो बस मेरा कर्म कर रहा हूँ, देने वाला ईश्वर है । देने की शक्ति ईश्वर ने मुझे प्रदान की है। जिसका मै पालन कर रहा हूँ।'</p><p style="text-align: justify;">रविभाई की दानवीरता के कई उदाहरणों को मै स्वयं साक्षी रहा हूँ। कोरोना काल में सूरत के अस्पतालों में भर्ती कई मरीज तथा उनके रिश्तेदारों के भोजन तथा रहने की सुविधा उन्होंने की थी तथा कई जरूरतमंद लोगों को आर्थिक सहायता भी प्रदान की थी। लॉकडाउन जैसे संकटकाल में उन्होंने स्वयं कई कठिनाइयों का सामना किया लेकिन कभी अपने कर्मचारियों का वेतन बंद नहीं किया। उन्हें प्रतिदिन फ़ोन लगाकर उनके सेहत तथा सुरक्षा का भी ख्याल रखा। मैंने दुनिया में अक्सर यह देखा है की 'लोग सुख नहीं बल्कि दुःख बाटते है।' लेकिन रविभाई ने हमेशा अपने दुःखों को अकेले में निपटा और जो भी आनंद के क्षण रहे उन्हें हमेशा सभी लोगों के साथ मनाया। जब भी दिवाली के वक्त वे अपने पैतृक गाँव में आते है तब गाँव की गरीब माँ-बहनों के लिए साड़ियों का तोहफा लाते है , बच्चों को हर साल स्कूलबैग्स, नोटबुक्स आदि सामग्री का वितरण करते है। लेकिन इस नेक कार्य का उन्होंने प्रदर्शन नहीं किया। यही उनका बड़प्पन है। </p><p style="text-align: justify;">जब तामथरे जैसे छोटे से गांव में 'श्री राधा कृष्ण प्रेम मंदिर' के न्यास की स्थापना की गयी तब ह.भ.प. श्री महेंद्रजी महाराज और न्यास के सभी सदस्यों के सामने इस विशाल मंदिर के निर्माण कार्य का बङा आव्हान था । सर्वानुमत से 'मंदिर निर्माण समिती' का अध्यक्ष श्री रविभाई को बनाया गया। इस मंदिर के निर्माण हेतू २५ लाख की राशि श्री रविभाई ने प्रदान की तथा आगे भी लगभग एक करोड़ तक की राशि संकलन का आश्वासन देकर अपने विशाल ह्रदय का परिचय दिया। रविभाई की यह उदारता उसी विदुरनीति में उध्दृत भाव को दर्शाती है। सूरत में संपन्न होनेवाले सामाजिक मिलन समारोह हो, महापुरुषों की जयंती-पुण्यतिथि के आयोजन हो या किसी धार्मिक समारोह का आयोजन हो, सभी कार्यों में श्री रविभाई का योगदान महत्वपूर्ण होता है। श्री रविभाई के माध्यम से कुंवर राजेंद्रसिंहजी नरुका की अमृतवाणी द्वारा सूरत और तामथरे गाँव में 'श्रीकृष्ण गीतासार' का यशस्वी आयोजन संपन्न रहा । </p><p style="text-align: justify;"> मित्रो , रविभाई की यह 'अभाव से प्रभाव तक' की कर्मयात्रा विलक्षण रोचक है। २२ नवंबर 1983 के दिन एक सामान्य कृषक परिवार में जन्मे श्री रविभाई ने अपनी पढ़ाई अपने ननिहाल 'दरणे-रोहाणे' गांव में पूरी की थी । आर्थिक अभाव के कारण वे केवल 12 वी कक्षा तक ही अपनी पढ़ाई पूरी कर सके । सन 2001 में तकदीर की लकीर उन्हें गुजरात की कुबेर नगरी सुरत में लेकर आयी। यह आरंभ भी उस जमाने में एक साहसिक कार्य था। घर से ६० रूपये चुराकर रेल्वे का सफर कर वे सुरत आ पहुँचे। वहां एक हिरा-उद्योग प्रतिष्ठान में वे काम की तलाश में जा पहुँचे। जब मॅनेजर ने पूछा की आप को क्या काम आता है। रविभाई ने सहज और सरल भाव से जबाब दिया की उन्हें चाय बनाना आता है। </p><p style="text-align: justify;">मॅनेजर ने उन्हें कारखाने में कारागिरों को चाय बाटने का काम सौंप दिया। जिद्द और जिज्ञासा श्री रविभाई को शांत नहीं बैठने दे रही थी। उन्होने कुछ दिन बाद वह काम छोड़ दिया और कपडा मिल में संच -मास्टर के रूप में काम संभाला। बाद में एक साड़ी के दुकान पर नई नौकरी आरंभ की। दिनभर ग्राहकों को साड़ीयां दिखाना और उन्हें वापस घडी कर रॅक में रखना यही दिनक्रम था। इस को रविभाई ने सुनहरा अवसर माना। वे सुरत के मार्केट की कला सीख गए। वे किसी गुजराती भाई की तरह फर्राटेदार गुजराती भाषा बोलने लगे। पैसा कहां लगाना है और उसे दोगुना कैसे बनाना है यह व्यापार नीति उन्होने आत्मसात कर ली।</p><p style="text-align: justify;">रविभाई की मंजिल उन्हें कभी चैन से नहीं बैठने दे रही थी । उन्होने सन 2004 में पार्टनरशिप में 'साई क्रिएशन' नाम से एक साड़ी की छोटी सी दुकान खोल दी। इस दौरान उन्हें काफी कष्टों का सामना भी करना पड़ा था। एकबार तो उन्होंने बढ़ते कर्ज की परेशानी से उबकर जीवन समाप्ती का भी निर्णय ले लिया था लेकीन संभवतः ईश्वर को यह अमान्य था। कुछ ऐसे क्षण आए जिन्होंने रविभाई की पुनः हिम्मत बढ़ाई। </p><p style="text-align: justify;">रविभाई ने दिनरात जी तोड़कर मेहनत की और अपनी समस्याओं पर विजय प्राप्त की। 2006 में उन्होंने दो नए दुकानों की स्थापना की। रविभाई ने 'आरंभ है प्रचंड..' के भाव से अपनी व्यापारयात्रा बिना रूके -बिना थके जारी रखी। सन 2008 से लेकर 2023 तक के इस सफर में श्री रविभाई के लगभग 12 भव्य वस्त्रदालन सुरत, अहमदाबाद , जयपूर जैसे महानगरों में खुल गए है । इस यात्रा में श्री संदीपभाई, श्री जयपालभाई का अनमोल सहयोग उन्हें निरंतर मिलता रहा। आज दुनिया के लगभग 58 देशों तक श्री रविभाई का निर्यात-व्यापार विस्तारित हो गया है। साड़ी के व्यापार के साथ-साथ 'गारमेंट मॅन्यूफॅक्चरींग' में उन्होंने सफलता प्राप्त कर ली है। आज लगभग 325 युवक-युवतियों को उन्होंने पूर्णकालिन रोजगार तो उपलब्ध कर दिया है साथ-साथ सुदूर गावों तक हजारों माता-बहनों को रिटेल व्यापार के माध्यम से आत्मनिर्भर होने का अवसर भी उन्होने उपलब्ध किया है। श्री रविभाई की इस उड़ान के लिए कई संस्थाओं ने उन्हें पुरस्कृत भी किया है। हाल ही में बॉलीवुड को दर्जेदार वस्र उपलब्ध कराने के लिए उन्हें अत्यंत प्रतिष्ठित 'दादासाहेब फालके गौरव पुरस्कार' से उन्हें सम्मानित किया गया है। </p><p style="text-align: justify;">मैंने श्री रविभाई के साथ कई क्षण बिताए है। कई लंबी यात्राएं भी की है। मुझे लिखने के लिए श्री रविभाई ने हमेशा प्रोत्साहन दिया तथा ग्रंथों के प्रकाशन के लिए अगर आवश्यकता हो तो उदार आर्थिक सहयोग भी किया है। लगातार दो दशकों से हमारी यह 'कृष्ण-सुदामा' की दोस्ती अविरत कायम है। इतना बड़ा कद और क्षमता होने के बावजूद भी उन्होंने अपने बड़प्पन का कभी अहसास नहीं होने दिया। 'इदं न मम:' भाव से सतत कार्यरत श्री रविभाई के भविष्य में भी कई आयामों पर कार्य करने की तथा गाँव के लोगों के लिए रोजगार के संसाधन उपलब्ध कराने की महत्वाकांक्षा है। मुझे यह अटूट विश्वास है की श्री रविभाई उन्हें भी पूरा करेंगे। </p><p style="text-align: justify;">मै श्री रविभाई के जन्मदिन के इस पावन अवसर पर उन्हें हार्दिक शुभकामनाएं देता हूँ। </p><p style="text-align: justify;"> <b><i> शुभचिंतक तथा </i>लेखक<i> : श्री जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे</i></b> </p>क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-42383290116082604892022-06-07T05:46:00.000-07:002022-06-07T05:46:17.537-07:00"भारतेश्वर सम्राट पृथ्वीराज चौहान और इतिहास के कुछ तथ्य"<p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;"> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjve5tP5-n_hf7aiwRKBoCYItgNmRIAtGgM3aJczeyNPs5XoTs4xC23FPyg5o4U1uhRfnwpIZUXp2TQXuvU6NWfxqh11arZJZ1EtWHSurX9pH5iU2Wul0Qz1A9wZFWksdFgCB5lasqzKEW3t8-bXB6ajpVptXWO0GpBj1eR2aW29cLVjBIPzqKIOiLB/s550/prithviraj-smarak-monument.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="413" data-original-width="550" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjve5tP5-n_hf7aiwRKBoCYItgNmRIAtGgM3aJczeyNPs5XoTs4xC23FPyg5o4U1uhRfnwpIZUXp2TQXuvU6NWfxqh11arZJZ1EtWHSurX9pH5iU2Wul0Qz1A9wZFWksdFgCB5lasqzKEW3t8-bXB6ajpVptXWO0GpBj1eR2aW29cLVjBIPzqKIOiLB/w320-h240/prithviraj-smarak-monument.jpg" width="320" /></a></div><br /> <p></p><p style="text-align: justify;">वर्तमान में सम्राट पृथ्वीराज चौहान के इतिहास के प्रति कई भ्रांतिया लोगों द्वारा फैलाई जा रही है। अभी-अभी अक्षयकुमार द्वारा मुख्य भूमिका अभिनीत 'सम्राट पृथ्वीराज' नामक फिल्म के प्रदर्शित होने के बाद विवाद उठ रहे है। प्रस्तुत फिल्म में न तो पृथ्वीराज चौहान जैसे महान शासक को न्याय दिया गया और न ही उनका सही इतिहास बताने का कोई प्रयास किया गया है। इतिहास विकृतिकरण के जो षड़यंत्र वर्तमान में चल रहे है या चलाये जा रहे है उनमें इस फिल्म के माध्यम से एक और नाम जुड़ गया। हालांकि इतिहास को विकृत कराने में तथा गलत धारणाएं बढ़ाने-फैलाने में फिल्म, धारावाहिक आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आम जनमानस कभी इतिहास का अध्ययन नहीं करता है और न ही वह किसी विवादों की गहराई में जाता है। उसपर जो थोपा जाता है वह उसपर विश्वास करने लगता है। और यही भेड़चाल इतिहास विकृतिकरण गैंग आजकल कर रही है। जो इतिहास या इतिहास के महान पात्रों की भूमिका या पहचान मुग़ल-अंग्रेज काल में भी नहीं बदली जो आज के वर्तमान में खतरे में आ गयी है। महाराज जयचंद जैसे महान शासक को एक सोची-समझी साजिश की तरह देशद्रोही बताया गया , इतिहास में उनका नाम बदनाम किया गया। कई कतिपय लेखकों ने किवदंतियों के आधार पर भ्रामक जानकारिया पैदा की है जिन्हे इतिहास के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। </p><p style="text-align: justify;">कुछ ग्रंथों का अध्ययन कर यहां कुछ रोचक तथ्य समकालीन इतिहास के सन्दर्भ में प्रस्तुत है। </p><p style="text-align: justify;"> (१) कन्नौज नरेश महाराज जयचंद जी राठौड नहीं अपितु गहरवार राजपूत थे। </p><p style="text-align: justify;">(२) महाराज जयचंद एक बेहद धर्मपरायण तथा विशाल सेना के स्वामी थे। जिन्होंने तत्कालीन भारत के तीर्थक्षेत्रों पर कई घाट -किले और विशाल मंदिरों का निर्माण किया था। </p><p style="text-align: justify;">(३) उनकी 'संयोगिता' नामक कोई पुत्री नहीं थी। संयोगिता चंदबरदाई की कविकल्पना मात्र है। सम्राट पृथ्वीराज चौहान अजमेर के शासक थे लेकिन उन्हें बाद में उनके नानाजी की दिल्ली की सत्ता भी प्राप्त हो गयी थी। दो संयुक्त राज्यों के वे स्वामी बन गए थे। स्वाभाविक है की कवी चंदबरदाई ने उन्हें संयुक्ता का हरण करनेवाला कहा होगा। </p><p style="text-align: justify;">(४) पृथ्वीराज चौहान तथा महाराज जयचंद के समकालीन काल के राजसूय यज्ञ या स्वयंवर आदि प्राचीन प्रथा विलुप्त हो गयी थी। अगर राजसूय यज्ञ या स्वयंवर किया जाता तो समकालीन किसी न किसी ग्रंथ ,साहित्य, ऐतिहासिक दस्तावेज, शिलालेख आदि माध्यम से कुछ न कुछ जानकारी अवश्य प्राप्त होती। यह प्रथा प्राचीन भारत में जीवित थी और न की मध्ययुगीन भारत में। </p><p style="text-align: justify;">(५) जयचंद गहरवार और पृथ्वीराज चौहान मौसेरे भाई नहीं थे। उनके बिच कोई निजी शत्रुता नहीं थी। दो भिन्न शासकों के खेमे में साम्राज्यविस्तार की महत्वाकांक्षा का प्रबल होना स्वाभाविक है लेकिन फिर भी जयचंद द्वारा घोरी को निमंत्रित किया जाना इसके लिए समकालीन इतिहास या अन्य ग्रंथों में कोई भी पुख्ता प्रमाण नहीं है। दुनिया के कई महान इतिहासकारों ने महाराज जयचंद के निर्दोष होने के प्रमाण दिए है। </p><p style="text-align: justify;">(६) युद्ध की सहायता के किए गए आव्हान को गंभीरता से तभी लिया जाता है जब सैनिकी सहायता या आर्थिक सहायता की पहल की गयी हो। </p><p style="text-align: justify;">(७) महाराज जयचंद ने घोरी को निमंत्रण दिया यह मिथक है जिसके कोई आधार नहीं। महाराज जयचंद की सेना इतनी विशाल थी की वे अकेले सम्राट पृथ्वीराज चौहान से लड़ सकते थे। क्योंकि घोरी ने महाराज जयचंद पर भी आक्रमण किया और उस युद्ध में महाराज जयचंद भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे। </p><p style="text-align: justify;">(८) सम्राट पृथ्वीराज चौहान और घोरी के बिच केवल २ युद्ध हुए थे। सन ११९१ के प्रथम युद्ध में सम्राट पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई थी और ११९२ में संपन्न तराई के मैदान में हुए द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान वीरगति को प्राप्त हो गए थे। घोरी की मृत्यु वर्तमान पाकिस्तान के दमैक में १२०६ में हुई थी। घोरी सम्राट पृथ्वीराज को बंदी बनाकर अफगानिस्तान नहीं ले गया था। </p><p style="text-align: justify;">(८) क्षत्रिय चौहानों के वंशजों के अजयमेरु(अजमेर), दिल्ली, ढूंढाड़, नाडौल , लाट प्रदेश , धौलपुर, परबतगढ़, जालौर, सिरोही, बूंदी , अवध, गोडवाड़, हाड़ौती, नीमराना , कोटा, मैनपुरी, तुलसीपुर, देवगढ़ बारिया आदि जगहों पर राज्य स्थापित किए थे तथा बनकोड़ा, बेदला ,बंसिया , भादैया राज, बिश्रामपुर, चंद्रपुर-पदमपुर, चंगभाकर, देआरा धामी, धरधारा, डोडियाली, गढ़ी , जरासिंघा, जशपुर, झारग्राम, करौड़िया , खारीघर ,कोरिया, कोठारिया, कुचिअकोल , लोडावल, मांडव, मोटागांव, नीमखेड़ा, पलानहेड़ा, परदा माताजी, पारसोली, पटना, पिपलोद, राय गोविंदपुर, रायपुर रानी, राजगढ़, संजेली , सरसवा , राघौगढ़ , संवत्सर, शेरगढ़, सिंगवाल ,सिंगरौली, सोनपुर, सुजाजी का गुढ़ा, तम्बोलिया, ठाकरडा , वडथाळी, वागेरी , वनवास, वाव आदि जगहों पर प्रिंसली स्टेटस, जागीरे और जमींदारी के रूप में चौहान राजपूतों की सत्ता सन १९४७ तक कायम थी। </p><p style="text-align: justify;"> <b> - <i>जयपालसिंह गिरासे (इतिहास अभ्यासक तथा लेखक)</i></b><i> </i></p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">सन्दर्भ : (१) कन्नौज का इतिहास --लेखक :आनंद स्वरुप मिश्र ( IAS) उत्तर प्रदेश सरकार के सेवानिवृत्त सचिव </p><p style="text-align: justify;"> (२) गैजेट रिपोर्ट्स ऑफ़ प्रिंसली स्टेट्स </p><p style="text-align: justify;"><br /></p><p style="text-align: justify;">निवेदन : कृपया अत्याधिक लोगों तक यह जानकारी प्रसारित की जाए और अपने गौरवशाली इतिहास के प्रति फैलाई जा रही भ्रांतियों को मिटाने में सहयोग दे। </p><div style="text-align: justify;"><br /></div>क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-3244438491645501372020-08-11T21:28:00.001-07:002020-08-11T21:28:24.289-07:00"राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह -एक अपराजित योद्धा "<p> </p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQiLLJrjW0UBa4FUoNOYvjRSR_R1vTuZa6d3zT9m5yHU7uQieilebRrA_frHx8DZuFewKlxexAEIWYtyPDd-NuR6Og0ebUeNbN0UTwgPi1XTU5Ur5txd7nq2i-iB613c4jvqUwFfLaE_U/s2048/Rashtragaurav+Maharana+Pratapsingh_3D+Cover.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="2048" data-original-width="1662" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhQiLLJrjW0UBa4FUoNOYvjRSR_R1vTuZa6d3zT9m5yHU7uQieilebRrA_frHx8DZuFewKlxexAEIWYtyPDd-NuR6Og0ebUeNbN0UTwgPi1XTU5Ur5txd7nq2i-iB613c4jvqUwFfLaE_U/s640/Rashtragaurav+Maharana+Pratapsingh_3D+Cover.jpg" /></a></div><p></p><p>"राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह --एक अपराजित योद्धा''</p><p><br /></p><p>लेखक : श्री जयपालसिंह गिरासे</p><p><br /></p><p>प्रकाशक : नोशन प्रेस पब्लिकेशन, चेन्नई (तमिलनाडु)</p><p><br /></p><p>भाषा : हिंदी</p><p><br /></p><p>कुल पृष्ठसंख्या : ३३६</p><p><br /></p><p>मूल्य : ३९९ /- (शिपिंग चार्जेस एक्स्ट्रा)</p><p><br /></p><p>ISBN NO : 978-1-64919-951-5</p><p><br /></p><p>(C) Jaypalsingh Girase</p><p><br /></p><p>आप सभी को बताते हुए अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है की , श्री जयपालसिंह गिरासे द्वारा हिंदी भाषा में लिखित 'राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह---एक अपराजित योद्धा !' यह ग्रन्थ पाठकों के लिए लम्बी प्रतीक्षा के बाद उपलब्ध हो गया है। </p><p>मुग़ल साम्राज्यवाद के खिलाफ अपनी प्रजा का साथ लेकर जनयुद्ध खड़ा करनेवाले तथा विपरीत परिस्थितियों में भी कड़ा संघर्ष कर अपराजित रहते हुए मृतवत राष्ट्र में नवप्राणों का संचार कर जन -जन को मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करनेवाले वीरशिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह हर पीढ़ी में विश्व के सभी स्वाभिमानी और स्वतंत्रताप्रेमी नागरिकों के लिए प्रात :स्मरणीय है। </p><p>राष्ट्रकवि पं. रामसिंहजी सोलंकी ने महाराणा प्रतापसिंहजी के गौरव का बखान करते हुए यह कहा था :--</p><p>"जात -धरम तज वरग मन; वृद्ध -शिशु-नर-नारिह।</p><p>जद -जद भारत जुंझसि,पाथल जय थारिह।।"</p><p> - अर्थात: हे प्रताप, जब-जब भारत वर्ष पर विपदा की स्थिति आएगी तब -तब भारत वर्ष के आबाल-वृद्ध तथा नर-नारी अपने जाति -धर्म-पंथ-प्रान्त की संकुचित भावना से ऊपर उठकर केवल तुम्हारे नाम का जयजयकार करेगी !</p><p>- 'या तो कार्य सिद्ध होगा या मृत्यु का वरन किया जायेगा ' महाराणा प्रतापसिंह का यह भीषण प्रण उस काल के क्रांतिकारी स्वर्णिम इतिहास का गौरव लिखने के लिए कलम को सदैव प्रेरित करता है। राष्ट्र के सत्व-स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए भीषण कष्टों का सामना कर लगातार २५ साल तक साम्राज्यवादी शक्ति के साथ कड़ा संघर्ष करनेवाले राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह जी का चरित्र केवल भारत राष्ट्र के लिए ही नहीं अपितु समस्त संसार के स्वतंत्रता और स्वाधीनता प्रेमी नागरिकों के लिए आज भी स्फूर्ति का स्रोत है।</p><p>- जब भारत की कई हिन्दू-मुस्लिम शासकों ने साम्राज्यवादी मुघल सल्तनत के सामने अपनी सार्वभौमिकता खो दी थी तब उसी प्रतिकूल संक्रमणकाल के दौरान महाराणा प्रतापसिंह मेवाड़ की धरती पर प्रखर विरोध का केंद्र बने रहे तथा सिमित संसाधन होकर भी गुरिल्ला और छापामार युद्धतंत्र का अवलंब कर अपनी स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता को कायम रखा। विश्व के इतिहास में यह अनोखा उदाहरण होगा जहाँ अपने राजा के साथ -साथ प्रजा ने भी वनवास तथा कष्टप्रद जीवन व्यतीत किया। स्वभूमि विध्वंस जैसे कठोर कदम उठाकर मुघल रणनीति को परास्त करनेवाली सामरिक रणनीति आज भी सामरिक शास्रों के अध्ययन कर्ता तथा संशोधकों का ध्यान आकृष्ट करती है।</p><p>- </p><p> महाराणा के इसी शौर्य से परिपूर्ण , कुशल रणनीतिकार और प्रजाहितैषी व्यक्तित्व को सुलभ भाषा के माध्यम से शब्दांकित करने का लेखक श्री जयपालसिंह गिरासे द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रयास किया गया है। श्री जयपालसिंहजी ने मेवाड़ धरा के हर एक स्थल पर प्रत्यक्ष जाकर प्रमाणों के साथ अध्ययन किया है। मेवाड़ राजपरिवार तथा विभिन्न ठिकानेदार परिवारों से प्रत्यक्ष चर्चा कर उन्होंने सन्दर्भ जुटाए है। मूल राजस्थानी लोकसाहित्य, विभिन्न ख्यात साहित्य, प्रशस्तियाँ , ऐतिहासिक दस्तावेज, शिलालेख, ताम्रपट्ट ,पट्टे -परवाने , दरबारी दस्तावेज , मुग़ल कालीन ग्रन्थ तथा समकालीन इतिहास से संबंधित हिंदी, अंग्रेजी , फ़ारसी तवारीखे , विभिन्न समीक्षा ग्रंथों, स्मरणिकाएँ , शोधप्रबंधों आदि ग्रंथों का अध्ययन कर कालक्रम को सुगम और सुसंगत कर प्रस्तुत ग्रन्थ को लिखा गया है। महाराणा प्रतापसिंह के जीवनकाल के बारे में कई प्रचलित किवदंतियों को टालकर एक राष्ट्रप्रेरक चरित्र को उजागर करने का लेखक ने प्रयास किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ के अंत में महाराणा प्रतापसिंह के जीवनक्रम , हल्दी घाटी युद्ध , सहयोगी साथी तथा परिवार के सदस्यों की विस्तृत जानकारी स्वतंत्र परिशिष्टों के रूप में दी गयी है। आशा है यह ग्रन्थ पाठकों को निश्चित रूप से पसंद आएगा।</p><p>'मुग़ल-मेवाड़ संघर्ष' को 'साम्राज्यवाद के खिलाफ जनयुद्ध' के रूप में वर्णित कर ग्रन्थ की रचना उत्तमोत्तम बनाने का प्रयास लेखक ने किया है। अनगिनत संघर्षों के इतिहास की बखान करते समय संयत तथा मर्यादित भाषा का प्रयोग लेखक ने किया है। प्रताप की युद्धकुशलता और सामरिक रणनीति का अत्यंत सटीक- समर्पक भाषा में वर्णन तो किया ही है लेकिन साथ-साथ प्रताप की दूरदर्शिता , प्रजावत्सलता , सादगी , धर्मनिरपेक्षता, मानवतावादी दृष्टिकोण और प्रशासनिक गुण आदि पहलुओं पर भी सोदाहरण प्रकाश डाला है।</p><p> प्रस्तुत ग्रन्थ का आमुख मेवाड़ के लिए शत्रु से लोहा लेकर प्राणोत्सर्ग करनेवाले वीर झाला मान के वंशज तथा महाराणा मेवाड़ परिवार के अत्यंत करीबी और विश्वसनीय व्यक्तित्व श्री प्रतापसिंह झाला (तलावदा , उदयपुर) ने लिखी है। लगभग २९ पृष्ठों की व्यापक आमुख (प्रस्तावना) में गुहिल --बाप्पा रावल के काल से अर्थात मेवाड़ राज्य की स्थापना से लेकर महाराणा प्रतापसिंह के काल तक विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं का संक्षेप में परामर्श लेकर कई तथ्यों का सप्रमाण पुष्टिकरण किया है। </p><p> ग्रन्थ में ४३ स्वतंत्र प्रकरण है जिनमे ४ सूचि है। ग्रन्थ की आकर्षक छपाई , निर्दोष मुद्रण और अंतरंग की रचना आदि के लिए नोशन प्रेस की टीम ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अवलंब किया है। ग्रन्थ में कुल ३३६ पृष्ट है तथा साइज़ 5.5 x 8.5 की है। ग्रन्थ के मुखपृष्ठ का प्रकार पेपरबैक है तथा ग्लॉस लैमिनेटेड है। ग्रन्थ के अंदर के पृष्ट 70 GSM Seshai NS प्रकार के है। </p><p> राष्ट्र में स्वाधीनता तथा सार्वभौमिकता की प्रेरणा निरंतर जीवित रखनेवाले महाराणा प्रतापसिंह जैसे अपराजित योद्धा की संघर्षमयी कहानी पाठक जरूर पढ़े। यह मेरा विशेष सुझाव है।</p><p> </p><p><br /></p><p>घर बैठे ग्रंथ को प्राप्त करने के लिए निम्ननिर्दीष्ट लिंक्स पर क्लिक करे ।</p><p><br /></p><p>The links are as follow : </p><p><br /></p><p>NOTION PRESS - </p><p><br /></p><p>https://notionpress.com/read/rashtragaurav-maharana-pratapsingh</p><p><br /></p><p>FLIPKART Link</p><p><br /></p><p>https://dl.flipkart.com/dl/rashtragaurav-maharana-pratapsingh/p/itm4d99afd1dd2b2?pid=9781649199515&cmpid=product.share.pp</p><p><br /></p><p>AMAZON. IN Link</p><p><br /></p><p>https://www.amazon.in/dp/1649199511</p><p><br /></p><p>AMAZON. COM Link</p><p><br /></p><p>https://www.amazon.com/dp/1649199511</p><p><br /></p><p>AMAZON .CO. UK Link</p><p><br /></p><p>https://www.amazon.co.uk/dp/1649199511</p><p><br /></p><p>AMAZON KINDLE BOOK Link</p><p> https://www.amazon.in/dp/B08F4JM8V6/ref=cm_sw_r_sms_apa_4QKmFbM0Q7XRT</p><p><br /></p><p>KOBO LINK</p><p><br /></p><p>https://www.kobo.com/in/en/ebook/rashtragaurav-maharana-pratapsingh#ratings-and-reviews</p><p><br /></p><p>GOOGLE PLAY LINK</p><p><br /></p><p>https://play.google.com/store/books/details/Jaypalsingh_Girase_Rashtragaurav_Maharana_Pratapsi?id=onH0DwAAQBAJ</p><p><br /></p>क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-45667647341380927722020-07-24T09:50:00.001-07:002020-07-24T09:50:56.639-07:00प्रात:स्मरणीय महाराणा प्रतापसिंहजी के जीवन पर अत्यंत सुन्दर तथा परिपूर्ण ग्रन्थ !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<span style="font-size: large;"><br /></span></div>
<div style="font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<b style="background-color: white;"><span style="color: red; font-size: large;">"राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह --एक अपराजित योद्धा''</span></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<b><span style="color: blue;">लेखक :</span><span style="color: #222222;"> </span><span style="color: magenta;">श्री जयपालसिंह गिरासे </span></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px;">
<b><br /></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<b>प्रकाशक : नोशन प्रेस पब्लिकेशन, चेन्नई (तमिलनाडु)</b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<b><br /></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<b>भाषा : हिंदी </b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<b><br /></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<b>एकूण पृष्ट : ३३६ </b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<b><br /></b></div>
<div style="background-color: white;">
<b><span style="color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif;"><span style="line-height: 19.5px;">मूल्य : ३९९ /- (शिपिंग चार्जेस के साथ) </span></span></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<b><br /></b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; line-height: 19.5px;">
<b>ISBN NO : 978-1-64919-951-5</b></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px;">
<br /></div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjOAtkhSw2jXbF1wvMU_Jp5dGya09bCMlBR53Bve8jCN8SiBPIAwxKqKU3DvHqRTOcOpyx2HGgeiHn6BasAcYUCyUKxhBEy-WypI99Mza3xaFf__2QK6jamoPoruQ_Dv9p46A6gudOmXkY/s1600/Rashtragaurav+Maharana+Pratapsingh_3D+Cover.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1600" data-original-width="996" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjOAtkhSw2jXbF1wvMU_Jp5dGya09bCMlBR53Bve8jCN8SiBPIAwxKqKU3DvHqRTOcOpyx2HGgeiHn6BasAcYUCyUKxhBEy-WypI99Mza3xaFf__2QK6jamoPoruQ_Dv9p46A6gudOmXkY/s320/Rashtragaurav+Maharana+Pratapsingh_3D+Cover.jpg" width="199" /></a></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px;">
<br /></div>
<div style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px;">
<b style="text-align: justify;"><span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> "राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह --एक अपराजित योद्धा'' </span></b><span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif; text-align: justify;">इस हिंदी भाषा में प्रकाशित ग्रन्थ में मेवाड़ के महान सपूत तथा हर सदी में जन -जन को स्वाभिमान , सार्वभौमिकता और स्वतंत्रता की प्रेरणा देनेवाले प्रखर राष्ट्रभक्त हिंदुवा सूरज वीरशिरोमणि महाराणा प्रतापसिंहजी के जन्म से मृत्यु तक के समग्र घटना क्रमों का वर्णन है। प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन चेन्नई-सिंगापूर-मलेशिया स्थित अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन संस्था 'नोशन प्रेस पब्लिकेशन' द्वारा किया गया है तथा विश्व के १६ प्रमुख देशों में लगभग ३०००० से ज्यादा बुकस्टॉल्स और विभिन्न ऑनलाइन वेबसाइट्स के माध्यम से बिक्री के लिए उपलब्ध होगा। किंडल बुक के माध्यम से अमेजॉन , फ्लिपकार्ट , नोशन प्रेस.कॉम , स्नैपडील आदि वेबसाइट्स पर भी यह ग्रन्थ उपलब्ध रहेगा। प्रारम्भ में मेवाड़ के त्याग-तप-बलिदान से समृद्ध गौरवशाली ऐतिहासिक पूर्वपीठिका का संक्षेप में उल्लेख किया गया है जिससे महाराणा प्रतापसिंह के जीवनकाल में उभरे संघर्ष की पार्श्वभूमि समझना सुलभ होता है। जिसमे सन १५६८ में चितौड़ पर मुघलों द्वारा किये गए प्रलयंकारी आक्रमण, चितौड़ के तीसरे साके -जौहर और महाराणा के द्वारा अरावली के दुर्गम पहाड़ों को प्राकृतिक वनदुर्गों का स्वरुप देकर गुरिल्ला --छापामार युद्धतंत्र का प्रभावी अवलंब करना आदि घटनाएं भविष्य के कड़े संघर्ष को ध्वनित करती है। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> महाराणा प्रतापसिंह ने अपने पूर्वजों के पगचिन्हों पर चलने का निश्चय किया तथा अपने इस प्रण को निभाने के लिए अत्यंत प्रतिकूल स्थिति में सिमित संसाधनों के साथ अनगिनत कष्टों का सामना कर अपनी प्रजा के ह्रदय में स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता की जो असाधारण ऊर्जा भर दी जिसके चलते तत्कालीन विश्व की शक्तिशाली साम्राज्यवादी मुघल सल्तनत के साथ लगातार २५ साल तक भीषण संघर्ष किया। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> मुघल शासक अकबर द्वारा महाराणा प्रताप सिंह को झुकाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद के प्रयोग किये गए। आरम्भ में जलाल खान कोरची , कुँवर मानसिंह , राजा भगवंत दास और राजा टोडरमल को सन्धिवार्ता के लिए भेजा लेकिन अपने दादा राणा सांगा के काल से चले आ रहे इस संघर्षमयी परंपरा के मद्देनजर और अपनी मातृभुमि के सत्व -स्वत्व -स्वाभिमान और स्वाधीनता की रक्षा के लिए महाराणा प्रतापसिंह ने इन प्रस्तावों को ठुकरा दिया था। मुघलों से किसी भी तरह का समझौता स्वयं के साथ-साथ मातृभुमि की स्वतंत्रता को भी नष्ट कर देनेवाला था इसलिए महाराणा प्रतापसिंह ने उसी भूमिका का निर्वहन किया जो अपेक्षित थी। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> मूल भारतवासियों की स्वतंत्रता नष्ट कर उन्हें अंकित कर अपने साम्राज्य में विलीन करना और सम्पूर्ण भारतवर्ष में अपने साम्राज्य का निर्माण करना मुघल सल्तनत का मुख्य उद्देश्य था। महाराणा प्रतापसिंह ने अपनी मेवाड़ की प्रजा तथा दुर्गम पहाड़ियों के आदिवासी समुदाय के ह्रदय में प्रखर राष्ट्रभक्ति की भावना का निर्माण किया। धन-अस्र-शस्र और सैन्य बल आदि संसाधन सिमित थे फिर भी स्वामीनिष्ठ साथीयों और प्रजा का असाधारण सहयोग प्राप्त कर महाराणा प्रतापसिंह ने इस संघर्ष को ''साम्राज्यवाद के खिलाफ जनयुद्ध'' का स्वरुप दिया। सिरोही , ईडर, बांसवाड़ा ,बूंदी और डूंगरपुर जैसे पडोसी शासको के साथ गठबंधन कर साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा जीवित रखी। स्वभूमि- विध्वंस के जरिये समतल इलाकों में खेती करना बंद कर दिया गया और समस्त प्रजा अपने राजा के साथ दुर्गम पहाड़ों की शरण में चली गयी। प्रजा शांतिकाल में पहाड़ों में खेती करती थी और संघर्षकाल में सैनिक बन शत्रु का मुकाबला करती थी। सांकेतिक आवाजों वाली गुप्त सांकेतिक भाषा का विकसन कर पहाड़ों में तथा शत्रु के प्रदेशो में गुप्तचरों का जाल बिछाया। दुर्गम पहाड़ों में प्राकृतिक गुफाओं में आश्रय स्थान बनाये गए। सभी बस्तिया खाली करवाई गयी जिससे दो फायदे हुए : या तो प्रजा शत्रु के भयंकर आक्रमणों से सुरक्षित रही और मुघल सेना को स्थानीय स्तर पर अनाज या घांस का मिलना दुर्लभ हो गया जिस प्रतिकूल स्थिति में उन्हें केवल दिल्ली या अजमेर से आनेवाली रसद पर निर्वहन करना बाध्य हो जाता था जो महाराणा के छापामार सैन्य टुकड़ियां लूट लेती थी। मुघल सेना पर घात लगाकर बैठे मेवाड़ के सैनिक अचानक हमले कर उनकी दयनीय अवस्था कर देते थे जिसकी वजह से बड़े से बड़े मुघल सेनानायक और उनकी तमाम रणनीतियाँ महाराणा प्रतापसिंह की रणनीति के सामने परास्त हो जाती थी। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> महाराणा प्रतापसिंह की शक्ति को परास्त करने के लिए कुँवर मानसिंह , स्वयं मुघल बादशाह अकबर , शाहबाज खान ,जगन्नाथ कछवाहा , अब्दुर्रहीम खानखाना आदि के नेतृत्व में अस्र -शस्र -धन बल से सुसज्जित विशाल मुघल सेना ने कई बार प्रदीर्घ समय तक आक्रमण किये लेकिन किसी भी मुहीम को सफलता नहीं मिल सकी। मेवाड़ के शासक अपराजित रहे। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> महाराणा प्रतापसिंह के कार्यकाल में 'हल्दी घाटी का युद्ध' तथा 'दिवेर का युद्ध' अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते है। हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रतापसिंह के रूप में एक प्रचंड आत्मशक्ति वाले आक्रमक योद्धा का दर्शन होता है तो 'दिवेर के युद्ध ' में अपने बलाढ्य शत्रु के सभी इरादों को सदा के लिए ध्वस्त करनेवाले और शत्रु दल को भयकंपित कर देनेवाले सुनियोजित रणनीतिकार नजर आते है। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> महाराणा प्रतापसिंह प्रखर राष्ट्रभक्त , पराक्रमी योद्धा , प्रजावत्सल शासक के साथ-साथ कला -साहित्य के आश्रयदाता भी थे। निसारदी (नसीरुद्दीन )नामक महान चित्रकार को उन्होंने आश्रय दिया था जिसने चावंड में प्राचीन रागमाला चित्रशैली का विकास किया। वीर हकीमखान सूरी हल्दी घाटी के युद्ध के समय महाराणा के सेनापति थे जिन्होंने मुघल सेना के साथ लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी। महान जैन मुनि हेमरतन सूरी को उन्होंने अपना गुरु माना था। महाराणा प्रतापसिंह ने अपने पूर्वजों की तरह 'सब समाज को लिए साथ में ,आगे है बढ़ते जाना ' इस उक्ति के अनुसार मानवता धर्म का सदैव अनुपालन किया था। पंडित चक्रपाणि मिश्र जैसे मूर्धन्य विद्वान के सहयोग से 'मुहूर्तमाला ', 'विश्ववल्लभ और 'राज्याभिषेक पद्धति' जैसे महान ग्रंथों का निर्माण करवा लिया। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> महाराणा के इसी शौर्य से परिपूर्ण , कुशल रणनीतिकार और प्रजाहितैषी व्यक्तित्व को सुलभ भाषा के माध्यम से शब्दांकित करने का लेखक श्री जयपालसिंह गिरासे द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रयास किया गया है। श्री जयपालसिंहजी ने मेवाड़ धरा के हर एक स्थल पर प्रत्यक्ष जाकर प्रमाणों के साथ अध्ययन किया है। मेवाड़ राजपरिवार तथा विभिन्न ठिकानेदार परिवारों से प्रत्यक्ष चर्चा कर उन्होंने सन्दर्भ जुटाए है। मूल राजस्थानी लोकसाहित्य, विभिन्न ख्यात साहित्य, प्रशस्तियाँ , ऐतिहासिक दस्तावेज, शिलालेख, ताम्रपट्ट ,पट्टे -परवाने , दरबारी दस्तावेज , मुग़ल कालीन ग्रन्थ तथा समकालीन इतिहास से संबंधित हिंदी, अंग्रेजी , फ़ारसी तवारीखे , विभिन्न समीक्षा ग्रंथों, स्मरणिकाएँ , शोधप्रबंधों आदि ग्रंथों का अध्ययन कर कालक्रम को सुगम और सुसंगत कर प्रस्तुत ग्रन्थ को लिखा गया है। महाराणा प्रतापसिंह के जीवनकाल के बारे में कई प्रचलित किवदंतियों को टालकर एक राष्ट्रप्रेरक चरित्र को उजागर करने का लेखक ने प्रयास किया है। महाराणा प्रतापसिंह के चरित्र ने भारत के कोने-कोने में हजारों वीरों को स्वतंत्रता की प्रेरणा दी है। अंग्रेज साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़नेवाली भारतीय जनता के भी महाराणा प्रतापसिंह प्रेरणापुंज रहे है। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> प्रस्तुत ग्रन्थ के अंत में महाराणा प्रतापसिंह के जीवनक्रम , हल्दी घाटी युद्ध , सहयोगी साथी तथा परिवार के सदस्यों की विस्तृत जानकारी स्वतंत्र परिशिष्टों के रूप में दिए गए है। आशा है यह ग्रन्थ पाठकों को निश्चित रूप से पसंद आएगा।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक श्री जयपालसिंह गिरासे ''आर.सी. पटेल शिक्षण संकुल ,शिरपुर'' में अंग्रेजी विषय के अध्यापक के रुप में कार्यरत है। अंग्रेजी विषय के शिक्षक तथा टीचर्स ट्रेनर होने के साथ -साथ आप को इतिहास में भी अत्यंत रूचि है। राष्ट्रीय वक्ता के रूप में महाराणा प्रतापसिंह , राजस्थान के जौहर और साके , महाराणी पद्मिनी की अमर कथा , छत्रपति शिवाजी महाराज , महाराजाधिराज हर्षवर्धन, वीरमदेव और जालौर , स्वामी विवेकानंद , भारत -उत्थान ,पतन और पुनरुत्थान आदि विषयों पर विभिन्न राज्यों में अबतक सैकड़ौ प्रकट व्याख्यान कर चुके है तथा विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में आपके लेख-कविता-व्यंग निरंतर प्रकाशित होते रहते है। आप श्री विवेकानंद केंद्र,शिरपुर के नगरप्रमुख के रूप में कार्यरत है तथा स्वामी विवेकानंद सार्ध शति वर्ष में 'स्वामी विवेकानंद' केंद्र शिरपुर के माध्यम से सम्पूर्ण वर्षभर विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन में मुख्य भूमिका निभाई थी। आपने भारत देश के अधिकांश राज्यों के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों का दौरा किया है। अहिरानी बोलीभाषा में प्रकाशित होनेवाले '' उबगेलवाड़ी.कॉम '' नामक ब्लॉग का निर्माण तथा संचालन कर बोलीभाषा का संवर्धन करने में आपका विशेष योगदान रहा है। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> आप के द्वारा लिखित राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह के जीवन पर आधारित १ ग्रन्थ (मराठी भाषा )</span> <span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;">२०१५ ई. में प्रकाशित हो चूका है तथा मराठी भाषा में एक कवितासंग्रह, अहिरानी भाषा में एक व्यंग और हिंदी में 'महाराजाधिराज हर्ष' के जीवन पर एक उपन्यास प्रकाशनाधीन है।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> 'मुग़ल-मेवाड़ संघर्ष' को 'साम्राज्यवाद के खिलाफ जनयुद्ध' के रूप में वर्णित कर ग्रन्थ की रचना उत्तमोत्तम बनाने का प्रयास लेखक ने किया है। अनगिनत संघर्षों के इतिहास की बखान करते समय संयत तथा मर्यादित भाषा का प्रयोग लेखक ने किया है। प्रताप की युद्धकुशलता और सामरिक रणनीति का अत्यंत सटीक- समर्पक भाषा में वर्णन तो किया ही है लेकिन साथ-साथ प्रताप की दूरदर्शिता , प्रजावत्सलता , सादगी , धर्मनिरपेक्षता, मानवतावादी दृष्टिकोण और प्रशासनिक गुण आदि पहलुओं पर भी सोदाहरण प्रकाश डाला है।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> प्रस्तुत ग्रन्थ का आमुख मेवाड़ के लिए हर पीढ़ी में शत्रु से लोहा लेकर प्राणोत्सर्ग करनेवाले वीर झाला मान के वंशज तथा महाराणा मेवाड़ परिवार के अत्यंत करीबी और विश्वसनीय व्यक्तित्व श्री प्रतापसिंह झाला (तलावदा , उदयपुर) ने लिखी है। लगभग २९ पृष्ठों की व्यापक आमुख (प्रस्तावना) में गुहिल --बाप्पा रावल के काल से अर्थात मेवाड़ राज्य की स्थापना से लेकर महाराणा प्रतापसिंह के काल तक विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं का संक्षेप में परामर्श लेकर कई तथ्यों का सप्रमाण पुष्टिकरण किया है। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> ग्रन्थ में ४३ स्वतंत्र प्रकरण है जिनमे ४ सूचि है। ग्रन्थ की आकर्षक छपाई , निर्दोष मुद्रण और अंतरंग की रचना आदि के लिए नोशन प्रेस की टीम ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अवलंब किया है। ग्रन्थ में कुल ३३६ पृष्ट है तथा साइज़ 5.5 x 8.5 की है। ग्रन्थ के मुखपृष्ठ का प्रकार पेपरबैक है तथा ग्लॉस लैमिनेटेड है। ग्रन्थ के अंदर के पृष्ट 70 GSM Seshai NS प्रकार के है। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"> राष्ट्र में स्वाधीनता तथा सार्वभौमिकता को प्रेरणा निरंतर जीवित रखनेवाले महाराणा प्रतापसिंह जैसे अपराजित योद्धा की संघर्षमयी कहानी पाठक जरूर पढ़े। यह मेरा विशेष सुझाव है।</span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<br /></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;">ग्रन्थ के ऑर्डर के लिए निम्ननिर्दिष्ट क्रमांक पर व्हाट्स अप सन्देश कर आपका नाम , पता और संपर्क क्रमांक भेजे। </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;">व्हाट्स अप क्रमांक : 7620256964 </span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"><br /></span></div>
<div class="MsoNormal" style="background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; line-height: 19.5px; text-align: justify;">
<span style="font-family: 'Arial Unicode MS', sans-serif;"><br /></span></div>
<div class="yj6qo" style="-webkit-text-stroke-width: 0px; background-color: white; color: #222222; font-family: Arial, Helvetica, sans-serif; font-size: small; font-style: normal; font-variant: normal; font-weight: normal; letter-spacing: normal; line-height: 19.5px; orphans: auto; text-align: start; text-indent: 0px; text-transform: none; white-space: normal; widows: 1; word-spacing: 0px;">
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-43716941287383068212019-05-20T06:06:00.001-07:002019-05-20T06:06:26.736-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सभी आत्मीय साथियों तथा शुभचिंतकों को सादर धन्यवाद ! आज विवाह वर्षगाँठ के पर्वपर आपश्री के जो आशीर्वाद प्राप्त हुए है वह हमारे लिए अनमोल है । हम ऋणि है । हमने आज से १८ साल पहले बिना दहेज की शादी कर समाज में एक आदर्श स्थापित किया था। आप का प्रेम तथा स्नेह सराहनिय है । आप निम्ननिर्दिष्ट लिंक पर क्लिक कर हमारे Youtube चॅनल को Subscribe कर आपका अनमोल आशीर्वाद दिजिए यह प्रार्थना !<br />
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https://youtu.be/5iC1xd7D3-c</div>
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-57965137365180434372019-05-17T08:53:00.001-07:002019-05-17T08:56:10.460-07:00निवेदन <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सादर जय माता दी !<br />
सभी पाठक निम्ननिर्दिष्ट लिंक पर क्लिक कर हमारे Youtube Channel को जरूर Visit करे . कृपया Subscribe करना न भूले ।<br />
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https://youtu.be/1h-4qldSjR8</div>
क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-29759619940558073602019-05-16T01:06:00.000-07:002019-05-16T01:06:28.143-07:00"सती व जौहर "<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
"सती व जौहर"<br />
_______________<br />
इस विषय पर मेरा यह लेख । मुझे लगता है यह आप सभी को अवश्य पढ़ना चाहिए ।<br />
<br />
हर बार की तरह सरकार बदलते ही पहला कार्य होता है पाठ्यक्रम बदलना । चूंकि इस बार राज्य सरकार बदलने के बाद लोकसभा चुनाव थे इसलिए अब तक इस बारे में कोई चर्चा या बयानबाजी से नेता बचते रहे अब शिक्षा मंत्रीजी का कुछ बयान आया है । 8 वीं कक्षा की पुस्तक के मुख्य पृष्ठ से जौहर का चित्र हटाने की चर्चा है । चाहे आप इसके पक्ष में हों या विपक्ष में, चाहे किसी भी पार्टी के समर्थक हों आप यह लेख अवश्य पढ़े । यह केवल एक निष्पक्ष लेख है जो आपको जानकारी उपलब्ध करवायेगा ।<br />
<br />
सर्वप्रथम सतीयों को नमन । हर विषय की भांति इस पर भी राजनीतिक व सामाजिक वातावरण में हलचल अवश्य होगी तो हर विषय की भांति इस विषय पर भी जौहर के गौरवपूर्ण इतिहास के विरोध में लिखने व बोलने वाले बुद्दिजीवी भी कुकरमुते की तरह उग आएंगे ।<br />
<br />
कुछ लोग सतीयों के खिलाफ लिखेंगे तो कुछ जौहर के खिलाफ जहर उगलेंगे । सबसे पहले तो आपको सती के आगे प्रथा शब्द लगाने से पहले 'प्रथा' का आश्य समझना होगा । प्रथा का मतलब है कोई भी ऐसा कार्य जो किसी जाती, धर्म या वर्ग के सभी या अधिकतर लोगों द्वारा किया जाता है । जैसे दहेज एक प्रथा है क्योंकि लगभग हर व्यक्ति इससे ग्रस्त है, इसके अलावा तीन तलाक, मृत्युभोज, घुंघट, पर्दा आदि को प्रथाओं कि श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि इससे एक वर्ग विशेष के लगभग सभी लोग ग्रस्त थे या हैं । ये कुप्रथाएं हैं या नहीं वो अलग विषय है ।<br />
<br />
अब जब आपको ये समझ आ गया कि प्रथा क्या होती है तो सती के आगे प्रथा लगाने से पहले अपने परिवार जाति या धर्म का इतिहास उठाकर देखें कि अब तक कितनी औरतें पति की मृत्यु पर सती हुई हैं ? क्या वो संख्या भी उतनी ही है जितनी दहेज, तीन तलाक, मृत्युभोज, घुंघट, पर्दा आदि से ग्रस्त लोगों की है ? जब हम राजस्थान का इतिहास देखते हैं तो पाते हैं कि एक पुरे गांव का इतिहास खंगालने पर व 15-20 पीढ़ी में कोई 1-2 सती हुई है । यानी किसी भी समय सती होना प्रत्येक स्त्री पर अनिवार्य या बाध्यता नहीं रही ।<br />
<br />
वो एक समर्पण था, उच्च कोटी का समर्पण जिसे मापने कि क्षमता ना आपकी कलम में है ना ही आपकी वाणी में । वो एक पवित्रता का अनुपम उदाहरण था । वो एक पति व पत्नि के बीच के प्रेम का अनुपम उदाहरण था ।<br />
<br />
ऐसा भी नहीं है कि सती केवल क्षत्राणियां ही हुई हैं । हर जाति समुदाय में हुई हैं जैसे उदाहरण स्वरूप झुंझुनू में जो राणी सती (जिन्हें दादी सती भी कहा जाता है) का मन्दिर है वो सती माता अपने पति तनधनदास अग्रवाल के साथ सती हुई थी । अलवर में नाई जाति की महिला नारायणी देवी अपने पति के साथ सती हुई थी, जिसे वर्तमान में मुख्य रूप से मीणा जाति के लोगों द्वारा पूजा जाता है, इसी प्रकार सीकर राणी सती जी भी गैर क्षत्रिय है । ये ऐसे 2-3 नहीं अनेक उदाहरण हैं गैर क्षत्रिय सतीयों के । यानी ना यह किसी जाति आधारित परम्परा थी ना ही किसी महिला के लिए बाध्यकारी ।<br />
<br />
आपने व हमने किताबों में सतीप्रथा के विरूद्द जिस राजाराममोहन राय के आंदोलन को पढा है वो कभी इस विषय में राजस्थान नहीं आए, ना ही उन्होंने यहां कि सतीयों के बारे में कोई अध्ययन किया या वकतव्य दिया । हो सकता है उनके बंगाल में ये कोई प्रथा रही हो लेकिन बंगाल के आधार पर राजस्थान के सांस्कृतिक मूल्यों का आंकलन करना वैसा ही है जैसा पृथ्वी के आधार पर मंगल ग्रह के बारे में कोई धारणा बनाना । इसलिए सर्वप्रथम तो सती के आगे प्रथा लगाना बंद करे ।<br />
<br />
लेकिन चूंकि वर्तमान में इसपर सरकारी कानून है इसलिए उसका सम्मान किया जाना चाहिए व सती महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए लेकिन अपने घरों में चुपचाप बैठे लोगों की आस्था को बार बार चोट पहुंचाना भी तो ठीक नहीं है, कभी फिल्म के समर्थन के नाम पर कभी किसी और नाम पर ।<br />
<br />
अब यदि बात करें जौहर की तो सती व जौहर को एक ना समझें दोनों बेहद ज्यादा अलग हैं । सती केवल पति की मृत्यु के बाद हुआ करती हैं लेकिन अमुमन जौहर मृत्यु से पहले यानी क्षत्रियों के केसरीया करने से पहले हुए हैं । हां कुछ जौहर मृत्यु के बाद भी हुए हैं जब समाचार मिले कि सभी क्षत्रिय युद्द में वीरगती को प्राप्त हुए और शत्रु कि सेना दुर्ग कि ओर आ रही है ।<br />
<br />
ऐसे कई उदाहरण हैं जो जीवित रहते सती हुई हैं जैसे बाला सती रूप कंवर । चूंकि मैं स्वयं क्षत्रिय हूं तो आप मेरी बात पर विश्वाश ना करें तो आप भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के जीवन का अध्ययन करें आपको एक दो जगह नहीं कई जगह बाला सतीजी के वृतांतो का उल्लेख मिलेगा । अब यदि जौहर कि बात करें तो जौहर जीवित रहते हुए नहीं हो सकता ।<br />
<br />
सती पति के प्रति समर्पण का प्रतिक है तो जौहर देशभक्ति कि उच्चतम कसौटी । लेकिन अब फिर जब बहस छिडे़गी तो लोग पद्मावत फिल्म की भांति कहेंगे जिन्होंने जौहर किया उनके बारे में क्यों पढा़या जाये, जौहर करने से अच्छा तो वो युद्द करती कुछ शत्रुओं को मारकर मरती फिर तो उन्हें ये भी कहना चाहिए कि गांधीजी को अनशन कि बजाय अंग्रेजों से युद्द करना चाहिए था कुछ को तो मारते ही इसलिए फिर तो गांधीजी को भी पाठ्यक्रम से हटा दिया जाए । अन्ना को भी अनशन कि बजाय भ्रष्टाचारियों को मारना चाहिए था ।<br />
<br />
मतलब साफ है हर काल समय के अनुसार समाज की मांग व समाज को प्रेरित किए जाने वाले उदाहरण बदल जाते हैं । जैसे आज तलवार बाजी से प्रेरित नहीं किया जा सकता लेकिन किसी समय किया जा सकता था । इसी तरह किसी समय जौहर वो अनुपम देशभक्ति का कार्य था जो आने वाली सैंकडो़ पीढ़ियों को संदेश दे सके ।<br />
<br />
वर्तमान में कुछ लोग कहते हैं सती कोई नहीं होती थी उन्हें जबरन जलाया जाता था तो वो लोग अपने पापा या दादोसा कि उम्र के उस व्यक्ति से पुछें जिन्होंने 1987 में रूप कंवर (दिवराला, सीकर) या 1957 में उगम कंवर (तालियाना, जालौर) को या किन्हीं अन्य को पति के साथ सती होते अपनी नग्न आंखो से देखा हो (सभी जाती धर्म के लाखों लोग वहां मौजूद थे) । और यदि आप इसे आत्महत्या मानते हो तो फिर तो जैन धर्म के संतो द्वारा उपवास से प्राण त्यागना (संथारा) व बौध धर्म के संतो द्वारा भी इच्छा से प्राण त्यागना, आत्मदाह करना व सनातन धर्म के कई संतो द्वारा समाधी ली जाना भी आपकी नजरों में आत्महत्या ही हुई । इसलिए हर जगह बुद्धिजीवीता घुसाने की बजाय थोड़ा विचार भी अवश्य कर लेना चाहिए ।<br />
<br />
इसलिए मैं तो यही कहना चाहूंगा कि ये सब बकवास जो आप लोग सोशल मिडीया पर आधुनिकता के नाम पर करते हो इससे अाप केवल अपने पुर्वाग्रहों के आधार पर अपने ज्ञान का नाश कर रहे हो इससे ज्यादा कुछ नहीं ।<br />
<br />
इस लेख को पढकर क्षत्रिय बंधु भी ज्यादा प्रश्न ना हों वर्तमान में यह वर्ण (क्षत्रिय) सती, झुंझार, संत, महात्माओं व महापुरूषों के बताए मार्ग को छोड़ चूका है और उसी का प्रमाण है कि वर्तमान में क्षत्रिय किसी वार्ड के वार्ड पंच बनकर उस वार्ड कि जनता को भी पांच वर्ष तक खुश नहीं रख पाते । राज्य या देश तो बहुत बडी़बात हो गई ।<br />
<br />
अंत में सरकार से निवेदन है कि उन्हें जो उचित लगे वो करें क्योंकि जनता ने उन्हें यह अधिकार दिया है लेकिन बार बार यूं आस्था पर चोट ना करें साथ ही सती व जौहर पर गलत लिखने वाले भाईयों से निवेदन है वो जरा निष्पक्षता से अध्ययन करें व क्षत्रिय भाईयों से निवेदन है कि जन्म से ही नहीं कर्म से भी क्षत्रिय बनने कि कोशिश करें । केवल वंशावलियों से ही नहीं कर्मों से भी राम व कृष्ण की संतान होने का बोध कराएं । अन्यथा कोई औचित्य नहीं है आपकी इन वंशावलियों का ।<br />
<br />
सभी की प्रतिक्रियाएं केवल सभ्य भाषा में ही आमंत्रित है ।<br />
<br />
- कुंवर अवधेश शेखावत (धमोरा)</div>
क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-91044843507748295172018-06-16T01:31:00.002-07:002018-06-16T01:31:08.826-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-81413948162379765222018-06-16T01:13:00.001-07:002018-06-16T01:13:19.317-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-11672091884373281512017-07-23T01:21:00.000-07:002017-07-23T01:21:34.791-07:00पूर्व राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती प्रतिभाताई पाटिल के साथ आत्मीय मुलाकात !<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-50126123195497781542017-05-12T05:00:00.000-07:002017-05-12T05:00:06.404-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-85974049370256542082017-01-30T07:34:00.004-08:002017-01-30T07:34:42.843-08:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-58054667401153333632017-01-28T09:54:00.002-08:002017-10-08T10:01:53.535-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-81157914604565086452015-11-22T00:18:00.001-08:002015-11-22T00:19:39.454-08:00कडुवी बात पार्ट :३ "मुझे डर है कही मैं असहिष्णु ना कहलाऊ !"<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17.94px; white-space: pre-wrap;"> </span><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1T8CnwqYpyU1DVOoZJs5EmyMtyH3JeBBlKvneyKG7znaaDT5MCahnOShzmCAkGD6JTWgh_YyLv9pbFl7LXu80O0qhBL5CsS3_bDwBjvm2Glh4kREjT9q4_t1SXAvdhLxCb76I3UJvhyphenhyphenc/s1600/434175-mulayambirthday.jpg" imageanchor="1" style="background-color: white; font-family: helvetica, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17.94px; margin-left: 1em; margin-right: 1em; text-align: center; white-space: pre-wrap;"><img border="0" height="182" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi1T8CnwqYpyU1DVOoZJs5EmyMtyH3JeBBlKvneyKG7znaaDT5MCahnOShzmCAkGD6JTWgh_YyLv9pbFl7LXu80O0qhBL5CsS3_bDwBjvm2Glh4kREjT9q4_t1SXAvdhLxCb76I3UJvhyphenhyphenc/s320/434175-mulayambirthday.jpg" width="320" /></a><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17.94px; white-space: pre-wrap;"> आज उत्तरप्रदेश के सैफई में समाजवाद के वर्तमान संरक्षक आदरणीय नेताजी श्री मुलायमसिंहजी का जन्मदिन बड़े ही शानो-शौकत के साथ मनाया गया। सैफई में विशेष महोत्सव का आयोजन किया गया। लगभग ७० लाख रुपये के फूल मंगवाए गए ; कानपुर से १५ क्विंटल बनारसी लड्डू मंगवाए गए ; ७७ किलो का केक बनवाया गया ; २.५ करोड़ की लागत से खास मंच बनवाया गया। नृत्य ,संगीत और रोशनाई से सारा सैफई झगमगा उठा ! अतिविशिष्ट अतिथियों के लिए आलिशान होटलों के ५०० से ज्यादा कमरे आरक्षित किये गए। उत्तर प्रदेश की सरकार स्वयं इस महोत्सव के आयोजन-नियोजन में सैफई में मौजूद रही। मध्ययुग में किसी राजा -महाराजा ने भी अपना जन्मदिन इतनी धूमधाम से मनाया नहीं होगा। मै भी आदरणीय नेताजी को जन्मदिन की शुभकामनाएं देता हु। नेताजी के जन्मदिन का जलसा देख मुझे जलन नहीं हो रही है। लेकिन मै अस्वस्थ जरूर हु। मुझे समाजवाद ने रातभर सोने नहीं दिया। राममनोहर लोहिया ;जयप्रकाश नारायण ; लोकनायक बापूजी अणे जैसे समाजवाद के दिवंगत पुरोधा मुझे सोने नहीं दे रहे थे। वे मुझे लगातार पूछ रहे थे की क्या तुम समाजवाद के वर्तमान रूप से खुश हो ? क्या तुम ने इसी समाजवाद का अध्ययन किया था ? … अतीत के महान लोग मुझे सवाल कर रहे थे। मै भला उनको क्या जबाब देता ? स्वयं राम मनोहर लोहिया जी मेरे सामने खड़े थे , मैं हड़बड़ा गया था। मैं सिर्फ हां या ना सूचक वृत्ति से अपना सर हिला रहा था। मेरे मन की भावना जानकर वे अदृश्य हो गए। अपना टी व्ही शुरू किया। सैफई महोत्सव के बारे में इंटरनेट से ज्यादा जानकारियाँ प्राप्त की। मैं सोच में डूब गया। सैफई का स्वर्ग से भी सुन्दर वैभव देखकर बार बार अतीत के त्यागी समाजवादी दिख रहे थे।</span><br />
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17.94px; white-space: pre-wrap;"> ए आर रहमान के संगीत की धुन पर नांच रहे बॉलीवुड के कलाकारों का जोश देखकर मैं अपना होश खो बैठा। संगीत की धुन पर सुन्दर सुन्दर ललनाएँ अपने अनुपम चित्ताकर्षक नृत्याविष्कार का विलोभनीय प्रदर्शन दर्शकों को इसी जन्म में रंभा --उर्वशी का साक्षात्कार दिलवा रही थी। समाजवाद के तमाम सैनिक झूम रहे थे। मानो समाजवाद ने अपने उगम से लेकर आजतक के सफर में जो ऊँचाई हासिल की इसी ख़ुशी में यह आयोजन हुवा हो। ऐसा प्रतीत होने लगा की अब देश में ''सब बराबर '' हो गए ; विषमता की समाप्ती हो गयी; देश में सभी वर्गों तक विकास की गंगा पहुँच गयी। ध्येयपथ की ओर चलते चलते अपने संघर्ष भरे कर्तव्य की इतिश्री देखकर तमाम समाजवादियों को कृतकृत्य होना स्वाभाविक है। देश भर से विभिन्न दलों के नेता आदरणीय नेताजी को बधाईयाँ देने सैफई पहुँचे। उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाखों से समाजवादी सैनिक सैफई पहुँचे। नेताजी की एक झलक पाकर --अपनी बधाईयाँ देकर कृतकृत्य हो गए। समाजवाद भी ख़ुशी से झूम रहा था। बार बार मेरी ओर देख रहा था। दिवंगत नेताओं को मैं बता रहा था की आपके जमाने के समाजवाद से आज के समाजवाद ने काफी तरक्की कर ली है। आप तो घर में बनी रोटी साथ लेकर ;खादी के उबड़-खाबड़ कपडे पहनकर ;कभी पैदल या कभी जनता गाडी की सवारी कर अपनी लड़ाईया लड़ रहे थे लेकिन आज देखो आप ही द्वारा बोया गया समाजवाद हवा-हवाई का अत्यानन्द ले रहा है। आपको तो समाजवाद की तरक्की देखकर खुश होना चाहिए। दिवंगत नेता मेरी ओर क्रुद्ध होकर देखने लगे। मुझे डाँटने लगे। मैं फिर एकबार घबरा गया ;हड़बड़ा गया। मैंने उन्हें कहा की, '' ना तो मैं समाजवादी पार्टी का कार्यकर्ता हु और ना ही किसी राजनितिक दल से जुड़ा हुवा। मैं तो एक साधारण अध्यापक हु जो बच्चों को समाजवाद से परिचित करवाता हूँ। '</span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17.94px; white-space: pre-wrap;">मेरा उत्तर सुनकर दिवंगत नेता खुश हो गए लेकिन उन्होंने आदेश दिया की इसपर लिखो। दुनिया को बतावो की समाजवाद का असली स्वरुप क्या है ? मैंने उन्हें समझाया की जनता को तो सब पता है। जब राजेश खन्ना की ''रोटी'' फिल्म आयी थी ,तभी से देश की पब्लिक सबकुछ जानने लगी है। इस अकेले जयपाल सर के चिल्लाने से क्या फायदा ? हमारे आभासी संवाद को फिर एक बार विचलित किया आजतक के न्यूज हेड़लाईन ने : ब्रेकिंग न्यूज ---एक्सक्ल्यूसिव खबर के नाम पर नेताजी श्रीमान मुलायमसिंह जी का मंतव्य प्रसारित किया जा रहा था। नेताजी काफी भावुक थे , उत्तरप्रदेश तथा देश के कोने कोने से सैफई में उपस्थित तमाम हितचिंतकों को उन्होंने धन्यवाद दिया। जो सन्मान मिला उसके लिए धन्यवाद अर्जित कर उम्र के ७६ साल पार कर चुके नेताजी बोले की अब युवाओं को रोजगार देने के लिए हमें काम करना है। कोई भूखा ना रहे इसलिए मिलकर हाथ बढ़ाना है। नेताजी बोल ही रहे थे अचानक किसी का मोबाईल खनक उठा ,रिंगटोन भी सुन्दर थी ,समाजवाद के बिलकुल अनुरूप ! ''साथी हाथ बढ़ाना ; एक अकेला थक जाएगा ----" उस रिंगटोन ने मेरा ध्यान आकर्षित किया लेकिन सैफई के स्टेज पर बॉलीवुड के डी जे ध्वनि का आवाज इतना बढ़ गया की उस आवज ने ''साथी हाथ बढ़ाना ---'' के आवाज को दबा दिया। दिवंगत नेता बार बार कह रहे थे ,मेरी ख़ामोशी को धिक्कार रहे थे। मैं तो अपने मौन पर फिर एकबार कायम हो गया। आखिर में तीनो दिवंगत नेताओं ने मुझे कान में पूछा : " जयपाल ;तुम्हारी ख़ामोशी का राज क्या है ?" मैंने तुरंत जबाब दिया : "मैं खामोश हु क्यों की मुझे डर है कही मैं भी असहिष्णु ना कहलाऊ !" मेरा जबाब सुनकर वे फिर अदृश्य हो गए !----</span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<br /></div>
लेखक : जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे ,शिरपुर ९४२२७८८७४० <br />
<span style="background-color: white; color: #141823; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17.94px; white-space: pre-wrap;">jaypalg@gmail.com</span><span style="background-color: white; color: #141823; font-family: "helvetica" , "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: 17.94px; white-space: pre-wrap;"> </span></div>
क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-16846644208496621752014-10-26T04:08:00.002-07:002016-10-22T10:11:07.885-07:00सफर:-" मेवाड़ से खानदेश तक ....".--ठा . जयपालसिंह गिरासे [सिसोदिया],शिरपूर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="background-color: white; text-align: left;">
</div>
<div style="text-align: justify;">
<br /></div>
<span style="color: #222222; font-family: "arial"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<span style="color: #222222; font-family: "arial"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiy8Gw9SFzPTPBMii4Wacm7Ihe0QwbvCMJFt1iBWkICAAUYmrQ-dPmuia58AvPGBDXLXARrkzQuZzVR_9e8YIqSymCnX1OnhFTH9lUcV5wj-1xyJ7SDWiB5lJ_WQVpeMwYPv88X7PWUJN8/s1600/Slide1.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="290" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiy8Gw9SFzPTPBMii4Wacm7Ihe0QwbvCMJFt1iBWkICAAUYmrQ-dPmuia58AvPGBDXLXARrkzQuZzVR_9e8YIqSymCnX1OnhFTH9lUcV5wj-1xyJ7SDWiB5lJ_WQVpeMwYPv88X7PWUJN8/s1600/Slide1.JPG" width="400" /></a></span></div>
<span style="color: #222222; font-family: "arial"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span>
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<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: "arial"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="color: #222222; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: normal;">इ.स.१३०३ का समय : भारतवर्ष का मुकुटमणि दुर्गराज चित्तोड़ विदेशी आक्रांता अलाउद्दीन ख़िलजी के आक्रमण से झुंज रहा था। गढ़ के नीचे ख़िलजी ने जुल्म के कहर ढहाये हुए थे। परिणामत: युद्ध अटल था। महाराणी पद्मिनी ने १३००० स्रियों के साथ जौहर ज्वाला मे अपने आप को समर्पित कर दिया। जौहर ज्वाला मे जलती सतियों की कसम खाकर मेवाड़ के विरो ने केसरिया धारण कर दुर्ग के किवाड़ खोल दिये और ख़िलजी की सेना पर भूंखे शेरों की तरह टूट पड़े। भीषण युद्ध हुवा। आत्मगौरव की रक्षा के लिये क्षत्रियो ने लहू की होली खेली। देखते देखते अपनी आन-बाण एवं शान की रक्षा के लिये मेवाड़ के वीर बलिवेदी पर चढ़ गये। गढ़ के बाहर कस्बो मे या जागीरों मे जो राजपूत बचे थे वे अपने धर्म तथा स्वाभिमान को बचने के लिये अन्यत्र सुरक्षित स्थानों पर निकल गये। इन्ही बचे हुए क्षत्रियों के २४ कुल रावल अभयसिंहजी के नेतृत्व मे मांडू की ओर चले गये। उन्हीं के सुपुत्र </span></span><span style="line-height: 28.7999992370605px;">रावल अजयसिंहजी ने </span><span style="font-family: "mangal";"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">दौडाइचा मे अमरावती नदी के किनारे सं १३३३ मे अपनी जागीर कायम की. वहा उन्होने एक छोटासा किला भी बनवाया जिसे स्थानिक लोग गढी कह कर पुकारते है। उन्हे दो पुत्र थे। झुंजारसिंह और बलबहादूर सिंह। ई स १४५५ मे छोटे पुत्र बलबहादूरसिंह ने मालपुर मे दरबारगढ़ नामक किला बनवाया और वहा अपना स्वतंत्रराज स्थापित किया। </span></span><span style="font-family: "mangal"; line-height: 28.7999992370605px;">दौडाइचा सरकार की हुकूमत ५२ गावों मे थी। मालपुर के रावल सरकार की हुकूमत भम्भागिरि [भामेर] तक थी। मालपुर मे जा बसे सिसोदिया परिवार के लोगोने १३ गाव बसाये जिनमे वैन्दाना; सुराय ;रामी; पथारे; वणी;धावड़े ;खर्दे आदि गाव प्रमुख थे.....इन्ही गावों मे से कई परिवार ओसर्ली;कोपरली; टाक़रखेड़ा;वाठोडा ;अहिल्यापुर ; पलाशनेर; होलनांथा; भवाले; विरवाडे आदि गावों मे बस गये। वहा उन्होने खेती और जमींदारी की वृद्धि की। </span></span></div>
<span style="color: #222222; font-family: "arial"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: normal;"><span style="color: black; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;"><span style="font-size: x-small;"> </span><span style="font-weight: normal;"> सूरत विजय के बाद लौट रहे छत्रपति शिवाजी महाराज की फ़ौज का स्वागत दरबारगढ़ नरेश रावल रामसिंहजी ने किया था। औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद दक्षिण मे लौटते युवराज शाहू महाराज और रानी येसुबाई जी को दक्षिण मे सुरक्षित पहुचाने की जिम्मेदारी मालपुर दरबारगढ़ के रावल सरकार ने उठाई थी। जिन्हे छत्रपति शाहूजी ने कोल्हापुर दरबार मे बुलाकर सन्मानित किया था और सनद बहाल की थी। शाहआलम के वक़्त भी लामकानी के </span></span><span style="color: #222222; font-weight: normal; line-height: normal;"><span style="font-family: "arial" , "helvetica" , sans-serif;">रावल</span></span><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;"><span style="font-weight: normal;"> मोहन सिंह ने मुघलों से लोहा लिया था और खानदेश से मुघल टुकड़ियों को भगाया था।</span></span></span></span></span></div>
<span style="color: #222222; font-family: "arial"; line-height: 28.7999992370605px;"></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: "arial"; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="color: #222222; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: normal;"><span style="color: black; font-family: "mangal"; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"> </span><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;"> </span></span></span></span><span style="font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;">इसी काल मे दुर्जनसिंह रावल [जो महालकरी थे उन्हे महाला कहा जाता था ] ने बुराई नदी के किनारे धावा बोला। वहा के कोली शासक को परास्त कर वहा अपना शासन शुरू किया। वहा नदी के किनारे विजयगढ़ नामक गढी बनाई और पाटन नाम का गाव बसाया। जहा मा आशापुरा का प्रसिद्ध मंदिर है। इनकी ५५ गावों मे जहागीर थी और वंशविस्तार हुवा। जिनमे शिन्दखेड़ा; आलने;खलाने ;चिमठाने; दरने; रोहाणे ; तावखेड़ा; अमराला ; देगाव; लामकानी; कढरे; रामी; बलसाने ; वरुल ; घुसरे; शेवाले ; धूरखेड़ा आदि प्रमुख है। </span></span></div>
<span style="color: #222222; font-family: "arial"; line-height: 28.7999992370605px;">
</span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"> </span><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;"> </span><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;">१३३२ मे चावंडिया राजपूत अमरसिंह ने सातपुड़ा के घने जंगलों मे स्थित प्राचीन स्थल तोरणमाल पर कब्जा किया। महाभारत के समय यहा के राजा युवनाक्ष ने पांडवो की ओर से युद्ध मे हिस्सा लिया था और विजनवास के समय पांडवो ने यहा कुछ समय बिताया भी था। इसी वंश के रावल फतेहसिंह ने मांजरा नाम के ग्राम की स्थापना की और १३ गावों मे बस्ती बसाई। उसी काल मे सोलंखी सरदार [जो इशी नाम से जाने जाते थे] रावल सुजानसिंह ने अपनी सेना द्वारा सुवर्णगिरि पर हमला किया और वहा अपना शासन आरंभ किया। उन्ही के वंशज केसरीसिंह के बेटे मोहनसिंह</span><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;"> ने तोरखेड़ा गढ़ी की स्थापना की और लगभग २२५ गावों मे अपना वर्चस्व स्थापित किया। उन्होने ही कोंढावल गाव बसाकर वहा एक क़िलेनुमा कोट बनवाया। इनके परिवार के लोग तरहाड; भटाने; रंजाने;</span><span style="color: #222222; font-family: "mangal";"> धमाने; विरदेल; बिलाडी;जसाने; कमखेड़ा ; आछी; कोटली ;हिसपुर; तावखेड़ा; डोंगरगाव आदि गावों मे जा बसे। इसी वंश के धवलसिंह के पुत्र मदनसिंह ने स्थानीय शासक </span><span style="color: #222222; font-family: "mangal";">सोना कोली को परास्त कर </span><span style="color: #222222; font-family: "mangal";"> कोडिड के जंगलों मे अपनी गढ़ी बनाई। कोडिड; वणावल; उपरपिंड; रुदावली; गिधाडे; आरावे; वाडी आदि गावों मे अपना वतन बनाया। इसी परिवार के विजयसिंह नांदरखेड़ा मे गये। जिनके वंशज कनकसिंह ने लांबोला गाव मे अपनी जागीर की स्थापना की। १३३२ के मध्य मे तंवर परिवार के रावल संग्रामसिंह ने नंदुरबार पर हमला किया और वहा के गवली शासक को </span><span style="color: #222222; font-family: "mangal";">परास्त कर</span><span style="color: #222222; font-family: "mangal";"> अपना शासन कायम किया। उन्ही के वंशज जयसिंह ने भोंगरा गाव बसाकर सारंगखेडा [तापी के किनारे] मे अपनी जागीर की स्थापना की। जिनका सारंगखेडा;असलोद्; गोगापुर तक विस्तार रहा। </span></div>
<span style="color: #222222; font-family: "mangal"; font-size: 13px; line-height: normal;"></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: "mangal"; font-size: 13px; line-height: normal;"> <span style="font-family: "arial" , sans-serif;">करौली के जादौन परिवार भी मेवाड़ की सेवा मे थे। वे भी अपने साथियों के साथ दक्षिण की ओर निकले। सूरतसिंह जादौन के वंशज विजयसिंह ने वर्तमान महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित सातपुड़ा की तलहटी मे पलासनेर नाम के गाव की स्थापना की।वहा उन्होने अपनी गढ़ी बनाई। पलाश वृक्ष का घना जंगल होने की वजह से उसका नाम पलासनेर हुवा। वहा से एक परिवार बभलाज़ मे जा बसा और वहा अपनी जागीर स्थापित की। उन्ही के वंशजो ने १६५२ मे सूर्यकान्या तापी नदी के किनारे थालनेर गाव मे जागीर प्राप्त की। थालनेर फारूकी राज्य की राजधानी रही थी। वहा उन्हे जामदार का किताब दिया गया। वहा से कुछ् परिवारोने १७०२ मे आमोदा गाव की स्थापना की। वहा उन्हे मराठा शासन काल मे देशमुख पदवी प्राप्त हुई। यहा से खानदेश के ३२ गावों मे जादौन परिवार जा बसे जिनमे तंवर की वडली; विकवेल; जैतपुर; पिंपरी; विरवादे; होलनांथा; हुम्बरडे; मलाने; भोरखेड़ा ;पथारे; रामी; सावलदा आदि प्रमुख गाव है।</span></span></div>
<span style="color: #222222; font-family: "mangal"; font-size: 13px; line-height: normal;">
</span><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;"></span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif;"> मालवा से कुछ परमार परिवार भी खानदेश मे आ बसे। वे मांडू--धार होकर तापी के किनारे शेंदनी नाम के ग्राम की स्थापना की जहा क़िलेनुमा दो बड़ी हवेलिया बनवाई। यहा से कुछ परिवार भोरख़ेड़ा और भावेर गाव मे जा बसे जिनके कुछ वंशज होलनांथा और पथारे गाव मे बस गये। इन प्रमुख घरानों के साथ तंवर परिवार भी खानदेश की ओर आकृष्ट हुये। जिन्होने वडली नाम का गाव बसाया। होलकर शासन के समय महारानी अहिल्या देवी ने अहिल्यापुर नाम का गाव बसाया और वहा का जिम्मा वडली के तंवर परिवार को सौपा गया। कुछ तंवर बागलान की ओर जा बसे। मालेगाव के पास कुछ गावों मे तंवर राजपूत बस्ते है। मेवाड़ से खानदेश मे आये निकुम्भ राजपुतोने शहादा तहसील मे पांच गाव बसाये.....येंडाइत परिवारो ने जलगाव जिले मे नगरदेवला; चिचखेड़ा आदि पांच गावों मे बस्ती बसाई। चौहानो ने भी धामनोड ,निवाली के परिसर मे अपनी बस्ती बसाई[जो वर्तमान म प्र मे है]। बागुल बेटावद मे जा बसे। कुंडाने , हारेश्वर पिंपलगाव मे बघेल जा बसे जो आज वाघ नाम से जाने जाते है। मौर्य कुल के ४ गाव नांदरखेड़ा के साथ साथ बसाये गये। सूर्यवंशियो ने जावदा ग्राम बसवाया। सनेर वाघाला मे ; रावा मेहरगाव मे ; गांगुला चालीसगाव और तांदूळवाड़ी में ; सिंगा सजदा में बसे। कुछ सिसोदिया परिवार जलगाव जिले के यावल में बसे जहाँ उन्होंने छोटी सी गढ़ी भी बनवाई थी! मराठा शासन के उत्तरकाल में पेशवा के एक सरदार ने उनके वतन को छीन लिया था !</span></div>
<span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;">
</span><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;"></span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;"> मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश से एक राजकुमार ने मध्ययुगीन काल में वर्तमान बड़वानी राज्य की स्थापना की थी। और उस राज्य की सीमा भी दक्षिण में खानदेश तक थी। इस काल में मुस्लिम आक्रमण की वजह से भी इस प्रदेश से कई परिवार विस्थापित होकर निमाड़ ; खानदेश; विदर्भ आदि क्षेत्रों में चले गए थे। </span></div>
<span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; line-height: normal;">
</span><span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"></span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;"> <span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">आज के बुरहानपुर के निकट स्थित आसिर गढ़ पर मेवाड़ से पधारे चौहानों का वर्चस्व था। ख़िलजी के आक्रमण बाद चित्त्तोड़ से ही पधारे हुए शूरवीर टांक पंवार राजपूतो ने अपना वर्चस्व स्थापित कर दिया था। जब चित्तोड़ पर आक्रमण होते थे तब टांक पंवार राजपूतो ने अपनी वीरता का अनुपम परिचय दिया था। ख़िलजी के आक्रमण के बाद टांक पंवार मेवाड़ से निकलकर मालवा, खानदेश, निमाड़ आदि क्षेत्रों मे चले गये थे। इन्ही के कुछ वंशजो ने ऐतिहासिक मराठा-अब्दाली पानीपत युद्ध मे भी हिस्सा लिया था। </span></span></div>
<span style="color: #222222; font-family: "arial" , sans-serif; font-size: 13px; line-height: normal;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">ख़िलजी के दक्षिण आक्रमण के बाद आसीरगढ़ का क़िला पंवारों के हाथों से छीन लिया गया था। </span></span></div>
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">ख़िलजी के गुजरात आक्रमण के वक़्त राजा करनदेव वाघेला दक्षिण मे देवगिरि की शरण मे आया। लेकिन राजा रामदेव राय की हार के बाद और उसे ख़िलजी द्वारा गुजरात मे एक जागीर बहाल किये जाने के बाद करनदेव वाघेला अपने अनुचरों के साथ महाराष्ट्रा के बाग़लन;खानदेश तथा सातपुड़ा के तटवर्ती इलाखों मे बस गये थे। अकबर के आक्रमण के वक़्त खानदेश के स्थानीय शासकों को अपनी ओर मिला दिया जाये और उनकी सेवाये ली जाये ऐसा फरमान उसने निकला था लेकिन खानदेश के स्थानीय निवासियों ने कोई प्रतिसाद नहीं दिया। खानदेश के शासक ज्यादा सुरक्षित इसलिये थे क्योंकि उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाले मार्गों पर उनका नियंत्रण था तथा यहा की प्राकृतिक व्यवस्था उनका बचाव करने मे पूर्णता: सक्षम थी।</span></span></div>
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span>
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="font-family: "mangal"; line-height: 28.7999992370605px;"> </span><span style="line-height: 28.7999992370605px;">खानदेश प्रांत को साड़े बारा रावलों का वतन भी कहा जाता है। बारा पूर्ण तथा एक आधे ठिकाने का समावेश इसमे होता था। </span></span></div>
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 28.7999992370605px;">खानदेश के साड़े बारा ठिकाने निम्ननिर्दिष्ट सुचीनुसार है :-</span></div>
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "mangal"; line-height: 28.7999992370605px;">१] दोंडाईचा २] मालपुर ३] शिन्दखेड़ा ४] </span><span style="color: #222222; font-family: "arial"; font-size: x-small; line-height: normal;">आष्टे </span><span style="line-height: 1.8;">५]सारंगखेडा ६] रंजाने ७] लांबोला ८] लामकानी ९] चौगाव १०] हाटमोहिदा ११] वनावल १२] मांज़रे १३] करवंद [आधा वतन खानदेश मे था और आधा खानदेश के बाहर] </span></div>
</span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 1.8;"> </span><span style="color: #252525; font-family: sans-serif; font-size: 16px; line-height: 22.3999996185303px;">ज्यादातर बैस ; बडगुजर ; गौड़ ;भारद्वाज ; सोलंखी; खींची राजपूत महाराजा छत्रसाल के समय में दक्षिण तथा मध्य महाराष्ट्र में स्थायी रूप </span><span style="color: #252525; font-family: sans-serif;"><span style="line-height: 22.3999996185303px;">से निवास </span></span><span style="color: #252525; font-family: sans-serif; font-size: 16px; line-height: 22.3999996185303px;">करने लगे थे। वे मालवा --बुंदेलखंड --विदर्भ होते हुए दक्षिण भारत तक का सफर कर आये थे। वे संघटित रूप में रहते थे। ऐतिहासिक खर्डा युद्ध में उन्होंने मराठा पक्ष का साथ देकर हैदराबाद निजाम के खिलाफ मोर्चा संभालकर बहादुरी दिखाई थी। इनके कई वंशज पुणे ; कोंकण; बीड ; नांदेड ;उस्मानाबाद क्षेत्र में है। वीर बन्दा बहादुर के साथ कुछ राजपूत नांदेड के प्रान्त में आये थे। वे यही बस गए थे। विदर्भ में गाविलगढ़ की किलेदारी भी किसी राजपूत के पास थी। तो कुछ उत्तर भारत के राजपूत मुग़ल आक्रमण के वक़्त दक्षिण की और आकर यही बस गए थे। जो ज्यादातर विदर्भ; मध्य तथा दक्षिण महाराष्ट्र में स्थायी हुए। उन्हें स्थानीय निवासी परदेशी कह पुकारते थे। </span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">मांडू के कुछ परमार चावंडिया परिवारों के साथ खानदेश मे आये थे उनमे से एक परिवार ने प्रतापपुर नाम की छोटी जागीर बनाई। राणा उनकी उपाधी रही। </span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">वडली के तंवरो ने होल्कर स्टेट का खजाना लूटा था।</span><br />
<span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"> </span><span style="color: #252525; font-family: "mangal";"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">कुछ परिवार गुजरात में स्थित सिद्धपुर , धर्मपुर ,वांसदा तथा मालवा स्थित बरवानी स्टेट से स्थानांतरीत होकर महाराष्ट्र कि भूमी में बस गए थे ….</span></span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">।</span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; line-height: 28.7999992370605px;"> </span></div>
<div style="font-family: mangal; font-size: 16px; line-height: 1.8; text-align: justify;">
<span style="color: #252525; line-height: 28.7999992370605px;"> </span><span style="color: #252525; line-height: 28.7999992370605px;">मेवाड़ के वंश से श्री चन्द्रकिरण जी जिन्होने युवा </span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">अवस्था </span></span><span style="color: #252525; line-height: 28.7999992370605px;"> मे ही सन्यास ग्रहण कर लिया था ; जलगाव के पास कानलदा नाम के गाव मे आये जहा कण्व ऋषि का प्राचीन आश्रम था। स्वामी श्री चन्द्रकिरणजी तपोवनमजी ने उस आश्रम का जीर्णोद्धार किया और वही सन्यस्त जीवन बिताया था।</span></div>
<br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #252525; font-family: sans-serif; line-height: 22.3999996185303px;"> </span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">आजादी के आंदोलन मे खानदेश के राजपूतो ने बढ़-चढकर हिस्सा लिया था। महात्मा गाँधीजी तथा विर सावरकरजी ने मालपुर के दरबारगढ़ को भेट दी थी। टाकरखेड़ा के गुलाबसिंह भिलेसिंह सिसोदिया हिन्दू महासभा के प्रतिनिधि के रूप मे अंग्रेज़ कॅबिनेट मे चुनकर आये थे। जो सावरकर के खास साथी थे। सुराय के पद्मसिंह सिसोदिया हेडगेवारजी तथा गोलवलकर गुरुजी के नजदीकी थे। </span></span><span style="color: #252525; font-family: "mangal";"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">सन १९३६ में महाराष्ट्र के फैजपूर में कॉंग्रेस का ऐतिहासिक अधिवेशन संपन्न हुवा था जिसमे पंडित जवाहरलाल नेहरूजी , महात्मा गांधीजी सहित देश के गणमान्य अथितियो ने शिरकत कि थी ----बारीश हो रही थी और ध्वजारोहण के मौके पर ध्वज अटक गया था ---कई लोगो ने ध्वज स्तंभ पर चढने का प्रयास भी किया लेकिन उनके सारे प्रयास व्यर्थ साबित हुए ---उस वक्त शिरपूर के एक राजपूत युवक ने जिन्हे बंदा पाटील कहकर पुकारते थे ---ध्वज स्तंभ पर चढाई कर ध्वज कि गांठ को मुक्त कराया ---सारा माहोल अचंभित हो गया था उनके साहस को देखकर ---खुद पंडित जी ने उनका सन्मान किया था ---.</span></span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">राजपूतो ने गाव तथा खेती ,व्यापार का विकास किया। अपने साथ कई जातियों का वे सहारा बने थे। स्वर्गीय सोनुसिंहजी धनसिंहजी भूतपूर्व केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री थे। श्रीमती प्रतिभाताई पाटील जी ने तो देश का सर्वोच्च स्थान महामहिम राष्ट्रपति के रूप मे प्राप्त किया था। दोंडाइचा के भूतपूर्व संस्थानिक तथा विधायक दिवंगत श्रीमान जयसिंहजी रावल साहब ने आशिया का पहला स्टार्च प्रॉजेक्ट शुरू किया जो हजारो लोगोंको आजभी </span></span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">रोजगार</span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"> दे रहा है। </span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">उन्होने </span></span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"> यहा स्कूल; उद्योग शुरू किये और लोगों को रोजगार दिलवाये। आपके पुत्र श्रीमान बापूसाहेब जयदेवसिंहजी भी विधायक रहे तथा पोते कुंवर जयकुमार रावल विद्यमान भाजपा सेना सरकार में कैबिनेट मंत्री है जिन्हें पर्यटन, रोजगार मंत्रालय की जिम्मेदारी सौपी गयी है। स्व.इन्द्रसिंहजी सिसोदिया तीन बार विधायक रहे। शिवसेना के आर.ओ तात्या ; </span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">जनता दल </span></span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">महेन्द्रसिंहजी;</span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;"> कॉंग्रेस के </span></span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">दिलीपकुमार </span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">सानंदा</span></span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"> भी विधायक रहे थे। </span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;"> पाचोरा से श्री आर ओ पाटिल शिवसेना के विधायक थे ! अब की बार पाचोरा से उन्ही के भतीजे शिवसेना के श्री किशोरसिंह पाटील भी वर्तमान विधायक है। उत्तमसिंह पंवार सांसद रह चुके है। नंदुरबार के श्री बटेसिंहजी तथा उनके सुपुत्र श्री चन्द्रकांतजी रघुवंशी महाराष्ट्र विधान परिषद </span></span><span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">के दो बार सदस्य रहे। </span><span style="line-height: 28.7999992370605px; text-align: left;"><span style="color: #252525; font-family: "mangal";">कई भाई -बहन सरपंच ,पार्षद , नगराध्यक्ष ,जिला परिषद सदस्य , विभिन्न स्थानिक स्वराज्य संस्थाओ मे पदाधिकारी के रूप मे भी मौजूदगी बरकरार है …। </span></span></div>
<span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span><br />
<div style="text-align: justify;">
<span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><br /></span></div>
<span style="color: #252525; font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span>
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<div style="text-align: justify;">
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">खान्देश प्रदेश में ज्यादातर राजपूत ''गिरासे'' टाइटल का प्रयोग करते है। जिन्हे शासक द्वारा जमीन प्रदान की जाती थी और गिरासदार अपने क्षेत्र के कुनबियों द्वारा खेती किया करते थे वे गरासदार मतलब गिरासे कहलाये जाते थे। फारुकी ;मराठा; होलकर ;पेशवा आदि शासन समय में कुछ जादौन परिवारों को देशमुख; पाटिल; चौधरी; जामदार आदि खिताब प्रदान किये गए थे और उन्हें प्रांतीय तथा ग्रामीण प्रशासन में महत्वपूर्ण अंग माना गया था। राज बदलते थे --तख़्त पलटते थे लेकिन इनके अधिकार को किसीने नहीं छिना। दिल्ली की ओर से या गुजरात की ओर से जब दक्षिण की और बड़े आक्रमण होते थे तब खान्देश </span></span><span style="font-family: "mangal";"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">कि जनता को </span></span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;"> काफी कष्ट झेलने पड़ते थे। ऐसे कठिन समय में वे अपने परिवार तथा प्रजा के साथ सुरक्षित जंगलो </span></span><span style="font-family: "mangal";"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">में </span></span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"> चले जाते थे। कई राजपूत अपने भाईयों से बिछड़ गए वे सुदूर महाराष्ट्र के दक्षिण </span><span style="font-family: "mangal";"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">कि ओर चले गए। अपने गाँव ;स्वभाव ;मूलपुरुष के नामों पर उनके परिवार पहचाने लगे। </span></span></div>
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span>
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<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">मध्य युग के इस संक्रमण काल में इस शूरवीर प्रजाति ने काफी संकटों का सामना किया। उन्हें कई बार अपनी बस्तिया उजाड़कर नयी बस्तियों का निर्माण करना पड़ा था.…। कई बार स्थलांतरित होना पड़ा था। घने पहाड़ों का सहारा लेकर इन्होने अपने धर्म तथा वंश को सुरक्षित रखा। इनके साथ अन्य जाती और जनजाति के लोग भी आये थे। उनकी सुरक्षा का जिम्मा भी इन परिवारों उठाया था। अंग्रेज के वक़्त बार उपेक्षा भी झेलनी पड़ी थी। अकाल के समय में अंग्रेज हुकूमत द्वारा लगान जब जबरन वसूल की जाती थी तब दोनों पक्ष में संघर्ष अटल होता रहा था। कई बार बार अंग्रेज सरकार का खजाना लूट लिया जाता था या उनकी टुकड़ियों पर हमले भी किये जाते थे। तब राजपूत को तथा तत्सम जनजातियों के लोगों को अंग्रेज सरकार काफी तकलीफ भी देती थी। बागियों को प्रताडा जाता था। कई बार स्थानीय शासकों की वजह से ; अकाल; भुखमरी; पानी की किल्लत; सुरक्षा आदि कारणों से उन्हें विस्थापित भी होना पड़ा था। समाज के चुनिंदा लोगों के पास धन तथा बल था लेकिन बहुत बड़ा वर्ग काफी कष्टमय जीवन बिताता था। </span></span></div>
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span>
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<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">{C} लेखक: श्री जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे [सिसोदिया] मूल ग्राम: वाठोडा </span></span></div>
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span>
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<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">पता : प्लॉट नं :५०; विद्याविहार कॉलोनी; शिरपुर जि: धुले [महाराष्ट्र]</span></span></div>
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span>
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<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="line-height: 28.7999992370605px;">संपर्क: ०९४२२७८८७४० </span></span></div>
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"></span>
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<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><span style="font-family: "mangal"; line-height: 28.7999992370605px;">ईमेल :jaypalg</span><span style="color: #222222; font-family: "calibri" , sans-serif; font-size: 11pt; line-height: 16.8666667938232px;">@</span><a href="http://gmail.com/" style="color: #1155cc; line-height: 28.7999992370605px;" target="_blank">gmail.com</a></span></div>
<span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
</span><span style="font-family: "mangal"; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;"><div style="text-align: justify;">
<span style="line-height: 28.7999992370605px;">[प्रस्तुत लेख श्री जयपालसिंह गिरासे की संशोधित बौद्धिक सम्पदा है और उनकी पूर्व अनुमति के बिना प्रकाशन तथा विनियोग कानूनन जुर्म है]</span></div>
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<div style="color: #252525; font-family: mangal; font-size: 16px; line-height: 28.7999992370605px;">
<span style="line-height: 28.7999992370605px;"></span></div>
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-87843374838811757842013-12-15T02:49:00.000-08:002013-12-15T03:09:06.668-08:00सारंगखेडा का विश्व प्रसिद्ध अश्व मेला शुरू ......<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjApEHcF3eifk7_0bhPsWtKDmNnd5x-QFdzavo50rJRCkeq-hujgK9fh9Hf2V1kvvsa71W4Ri7JKG25rKGbbdmWS7ZM5ATLuD7mnuOUO3L2U89-qvXwwybako6m61UzA_3Vd5427QyxaiU/s1600/DSC_4316.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjApEHcF3eifk7_0bhPsWtKDmNnd5x-QFdzavo50rJRCkeq-hujgK9fh9Hf2V1kvvsa71W4Ri7JKG25rKGbbdmWS7ZM5ATLuD7mnuOUO3L2U89-qvXwwybako6m61UzA_3Vd5427QyxaiU/s1600/DSC_4316.JPG" /></a></div>
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गुजरात कि सीमा से महज सौ किलोमीटर दूर पर शहादा --धुले रोड पर महाराष्ट्र में सूर्यकन्या तापी नदी के किनारे सारंगखेडा नाम का गाव है जो मध्ययुगीन काल से कभी रावल परिवार की जागीर का स्थल था। यहाँ मध्यकाल से दत्त जयंती के पर पावन अवसर पर एक विशाल मेले का आयोजन होता है। इस मेले का एक खास आकर्षण होता है यहाँ का विश्व प्रसिद्ध अश्व मेला ......... .<br />
यहाँ दूर -दूर से अश्वप्रेमी अश्व खरीदने के लिए आते है ; राजपूत--मराठा --जाट --सिख ---मुग़ल शासकोने यहाँ से मध्यकाल के समय में घोड़ो कि खरीदारी कि थी ;प्राचीन समय से यहाँ भगवन एकमुखी दत्त जी का मंदिर है। श्री दत्त जयंती के पावन अवसर पर यहाँ बहुत ही सुंदर मेले का आयोजन होता आया है। विभिन्न नस्लों के घोड़ों के लिए यह मेला दुनिया भर में मशहूर है। प्राचीन समय से भारत वर्ष के राजा-महाराजा; रथी -महारथी यहाँ अपने मन-पसंद घोड़ों की खरीद के लिए आते-जाते रहे है। आज भी देश के विभिन्न प्रान्तों से घोड़ों के व्यापारी यहाँ आते है। 16 दिसम्बर के दिन यात्रारंभ होगा। हर रोज लाखो श्रद्धालु भगवान दत्त जी के मंदिर में दर्शन करते है और यात्रा का आनंद भी लेते है। विभिन्न राजनेता, उद्योजक, फ़िल्मी हस्तिया यहाँ घोड़े खरीदने आते-जाते रहते है। आज भी देश के कोने-कोने से कई राजपरिवार ; अश्वप्रेमी लोग ; फिल्मी सितारे ; राजनेता यहाँ अपने मनपसंद घोड़ों कि तलाश में आते रहते है। <br />
इस मेले में कृषि प्रदर्शनी; कृषि मेला; बैल-बाजार; लोककला महोत्सव; लावणी महोत्सव तथा अश्व स्पर्धा आदि का आयोजन होता है।<br />
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी का घोडा "चेतक" तथा छत्रपति शिवाजी महाराज जी घोड़ी "कृष्णा" इतिहास में प्रसिद्ध है। महाराणा प्रतापसिंह जी के जीवन में चेतक घोड़े का साथ महत्वपूर्ण रहा था। कृष्णा घोड़ी ने भी छत्रपति शिवाजी महाराज के संघर्ष के काल में अभूतपूर्व योगदान दिया था। चेतक और कृष्णा के नाम से सारंगखेडा मेले में पुरस्कार दिए जाते है । दौड़ में सर्वप्रथम आनेवाले अश्व को चेतक पुरस्कार--11000 रु की नगद राशी .- चेतक स्मृति चिन्ह और रोबीले पण में सर्वप्रथम आनेवाले अश्व को कृष्णा पुरस्कार--11000 रु . की नगद राशी --कृष्णा स्मृतिचिन्ह प्रदान किया जायेगा। इस मेले में दोंडाईचा संस्थान के कुंवर विक्रांतसिंह जी रावल के अश्व -विकास केंद्र के घोड़े भी मौजूद रहते है। जिनमे फैला-बेला नाम की सिर्फ 2.5 फिट ऊँची घोड़ों की प्रजाति ख़ास आकर्षण का केंद्र रहेगी। सारंगखेडा के भूतपूर्व संस्थानिक तथा वर्तमान उपाध्यक्ष ( जि .प .नंदुरबार) श्री जयपालसिंह रावल साहब तथा सरपंच श्री चंद्रपालसिंह रावल के मार्गदर्शन में इस मेले की सफलता के लिए स्थानीय पदाधिकारीगन प्रयत्नरत है।<br />
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इस अभूतपूर्व अश्व मेले के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करे:<br />
http://www.youtube.com/watch?v=DTi4isKWU-w<br />
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http://www.youtube.com/watch?v=CcDlcXaX_hk<br />
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-25473070701716512702013-09-30T06:59:00.001-07:002013-09-30T06:59:01.940-07:00क्या है जोधा बाई की एतिहासिक सच्चाई ??<div class="_4_j7" dir="ltr" style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14.44444465637207px; font-weight: bold; line-height: 17.98611068725586px;"><a href="https://www.facebook.com/notes/kshatrani-kunwarani-nisha/%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%9C%E0%A5%8B%E0%A4%A7%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A4%BE%E0%A4%88-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%8F%E0%A4%A4%E0%A4%BF%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A4%9A%E0%A5%8D%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%88-/590825347643878" style="color: #232b37; cursor: pointer; text-decoration: none;">क्या है जोधा बाई की एतिहासिक सच्चाई ??</a></div><div class="mbm _5k3v _5k3y" style="background-color: white; color: #333333; font-family: 'Helvetica Neue', Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14.44444465637207px; line-height: 20px; margin-bottom: 10px; margin-top: 16px; word-wrap: break-word;"><div class="text_exposed_root text_exposed" id="id_524981df9e93d8453778856" style="display: inline;">क्या है जोधा बाई की एतिहासिक सच्चाई ??<br />
<span style="font-size: 14.44444465637207px;">आदि-काल से क्षत्रियो के राजनीतिक शत्रु उनके प्रभुत्वता को चुनौती देते आये है !किन्तु क्षत्रिय अपने क्षात्र-धर्म के पालन से उन सभी षड्यंत्रों का मुकाबला सफलता पूर्वक करते रहे है !कभी कश्यप ऋषि और दिति के वंशजो जिन्हें कालांतर के दैत्य या राक्षस नाम दिया गया था ,क्षत्रियो से सत्ता हथियाने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से आडम्बर और कुचक्रो को रचते रहे </span> ! और कुरुक्षेत्र के महाभारत में जबकि अधिकांश ज्ञानवान क्षत्रियों ने एक साथ वीरगति प्राप्त कर ली ,उसके बाद से ही हमारे इतिहास को केवल कलम के बल पर दूषित कर दिया गया !इतिहास में भरसक प्रयास किया गया की उसमे हमारे शत्रुओं को महिमामंडित किया जाये और क्षत्रिय गौरव को नष्ट किया जाये ! किन्तु जिस प्रकार किसे हीरे के ऊपर लाख धूल डालो उसकी चमक फीकी नहीं पड़ती ठीक वैसे ही ,क्षत्रिय गौरव उस दूषित किये गए इतिहास से भी अपनी चमक बिखेरता रहा !फिर धार्मिक आडम्बरो के जरिये क्षत्रियो को प्रथम स्थान से दुसरे स्थान पर धकेलने का कुचक्र प्रारम्भ हुआ ,जिसमे आंशिक सफलता भी मिली,,,,किन्तु क्षत्रियों की राज्य शक्ति को कमजोर करने के लिए उनकी साधना पद्दति को भ्रष्ट करना जरुरी समझा गया इसिलिय्रे अधर्म को धर्म बनाकर पेश किया गया !सात्विक यज्ञों के स्थान पर कर्म्-कांडो और ढोंग को प्रश्रय दिया गया !इसके विरोध में क्षत्रिय राजकुमारों द्वारा धार्मिक आन्दोलन चलाये गए जिन्हें धर्मद्रोही पंडा-वाद ने धर्म-विरोधी घोषित कर दिया ,,इस कारण इन क्षत्रिय राजकुमारों के अनुयायियों ने नए पन्थो का जन्म दिया जो आज अनेक नामो से धर्म कहलाते है ,,,,,ये नए धर्म चूँकि केवल एक महान व्यक्ति की विचारधारा के समर्थक रह गए और मूल क्षात्र-धर्म से दूर होगये, इस कारण कालांतर में यह भी अपने लक्ष्य से भटक कर स्वयं ढोंग और आडम्बर से ग्रषित होगये ! इसके बाद इन्ही धर्मो में से इस्लाम ने बाकी धर्मो को नष्ट करने हेतु तलवार का सहारा लिया ,,,इस कारण क्षत्रियों ने इसका जम कर विरोध किया और इस्लाम के समर्थको ने राज्य सत्ता को धर्म विस्तार के लिए आसान तरीका समझ ,आदिकाल से स्थापित क्षत्रिय साम्राज्यों को ढहाना शुरू कर दिया ! क्षत्रियों ने शस्त्र तकनिकी को तत्कालीन वैज्ञानिक समुदाय यानि ब्राह्मणों के भरोसे छोड़ दिया तो, परिणाम हुआ क्षत्रिय तोप के आगे तलवारों से लड़ते रहे ,,,,,चंगेज खान से लेकर बाबर तक तो सिर्फ भारत को लूटते रहे किन्तु बाबर ने भारत में अपना स्थायी साम्राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली ! किन्तु भारत में पहले ही आचुके अफगानों ने हुमायु से सत्ता छीन ली और हुमायूँ दर-दर की ठोकरे खाता हुआ हुआ शरण के लिए अमरकोट के राजपूत राजा के यहाँ पहुंचा !अपनी गर्भवती बेगम को राजपूतों की शरण में छोड़ ,अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने की तैयारियों में जुट गया !वहीँ जलालुद्धीनका जन्म हुआ और १३ वर्ष तक उसकी परवरिश राजपूत परिवार में हुयी ! हुमायूँ जब बादशाह बना तब पर्शिया से कुछ परिवारों को अपने साथ भारत लाया था ! जो की मूलरूप से मीनाकारी का कार्य किया करते थे !उनके परिवारों में लड़कियों के विवाह का चलन नहीं था ,,इस कारण उनके कुछ परिवार अमरकोट और उसके आसपास कुछ पर्शियन लड़कियाँ दासियों का कार्य करती थी! इन्ही में से कुछ दासिया जोधपुर राजपरिवार में भी रहने लगी ! जोधपुर की राजकुमारी की एक निजी दासी जो पर्शियन थी ,जब उसके एक कन्या का जन्म हुआ तब वह रोने लगी की इस बच्ची का कोई भविष्य नहीं है 1 क्योंकि इसका विवाह नहीं होगा ,तब राजकुमारी ने उसे वचन दिया कि मै इसका विवाह किसी राजपरिवार में करूंगी !जब जोधपुर कि राजकुमारी जो कि आमेर के राजा भारमल की रानी बनी ,ने प्रथम मिलन की रात्रि को ही राजा भारमल से वचन लेलिया कि हरखू को मैंने अपनी धर्म बेटी बनाया हुआ है और मै चाहती हूँ कि उसका विवाह किसी राजपरिवार में हो ,,राजा भारमल ने जोधपुर की राजकुमारी को वचन देदिया कि वह उसका विवाह किसी राजपरिवार में कर देंगे ! किन्तु यह आसान कार्य नहीं था क्योंकि किसी भी राजपूत परिवार ने हरखू से विवाह करना उचित नहीं समझा इस कारण उसकी उम्र काफी होगई! किसी भी राजपरिवार तो दूर साधारण गैर राजपूत हिन्दू परिवार ने भी तत्कालीन परिस्थितियों में हरखू से विवाह करने से मना कर दिया ,,इसकारण रानी का राजा भारमल से अपना वचन नहीं निभाने का उलहना असहनीय होता जारहा था ! इससे पूर्व जलालुद्धीन अकबर जब बादशाह बना तब ढूँढार (आमेर) में नरुकाओं का विद्रोह चल रहा था, इस कारण राजा भारमल ने बाध्य होकर अकबर से संधि करली थी, ताकि नरुकाओं एवं अन्य सरदारों के विद्रोह को दबाया जासके !और अकबर से राजा भारमल की इस संधि में कोई वैवाहिक शर्त जैसा कि आज दिखाने का प्रयास किया जाता है, कुछ नहीं था !जब अकबर अजमेर शरीफ की यात्रा के लिए जा रहा था,तो रास्ते में राजा भारमल जी ने शिष्टाचार भेट कि तो वह कुछ चिंतित थे ,अकबर ने भारमल जी से चिंता का कारण जाना तो उन्होंने हरखू के के विवाह से सम्बंधित बात सविस्तार बतायी ,,अकबर ने पूंछा कि "महाराज उसका विवाह हिन्दू रीती से होगा या मुश्लिम रीति से?" भारमल जी ने बताया कि हिन्दू रीति से तब अकबर ने पूंछा कि कन्यादान कौन करेगा ? भारमल जी ने कहा कि हरखू मेरी धर्म पुत्री है और इस नाते कन्यादान मै ही करूँगा ! तब बादशाह अकबर ने कहा कि "मै राजपूत नहीं हूँ, किन्तु मेरा जन्म और परवरिश राजपूत परिवार में हुयी थी ,,,ठीक उसी तरह जैसे हरखू राजपूत नहीं है , किन्तु उसका भी जन्म और परवरिश भी राजपूत परिवार में हुयी है " अतः यदि आपको उसके पिता बनाने में कोई ऐतराज नहीं तो मुझे उसके साथ विवाह करने में भी कोई ऐतराज नहीं है ! इसके बाद हरखू का विवाह अकबर के साथ किया गया ! यह कोई शर्मिंदगी या बदनामी की बात नहीं थी ,बल्कि राजा भारमल की बुद्धिमानी और धर्म और नारी जाति के प्रति सम्मान था,जिसकी सर्वत्र प्रशंसा की गयी,खासतोर पर पर्शिया के धर्म गुरुओं ने राजा भारमल को पत्र लिखकर एक पर्शिया लड़की के जीवन को संवारने के लिए प्रशंसा पत्र भेजा !सिक्खों के गुरुओं ने भी इसकी प्रशंसा की और राजा भारमल की बुद्धिमानी के लिए साधुवाद दिया ! यह कहना गलत है कि यह हरखू जीवन भर हिन्दू रही,, ,वह कभी भी हिन्दू नहीं थी ,,,हां जब वह आमेर में रहती थी तब आमेर राजपरिवार के इष्ट देव श्री गोविन्देव जी की पूजा किया करती थी, इस कारण वह गोविन्द देव जी की पुजारी जरुर थी वरन तो वह फिर कभी भी जीवन में हरखू नहीं कहलाई उसका नाम मरियम बेगम पड़ गया और उसे बाकायदा इस्लाम रीति से ही कब्र में दफनाया गया था !जहाँगीर उसी मरियम उज्जमानी का बेटा था ! जोधा नाम से जो प्रसिद्द थी वह जोधपुर की एक दासिपुत्री जगत गुसाईं (जो कि हरखू के ही भाई कि बेटी थी), जिसका निकाह जहाँगीर के साथ हुआ था और शाहजहाँ की माँ थी ,वह चूँकि जोधपुर से सम्बंधित थी और उसका कन्यादान मोटा राजा उदय सिंह जी ने किया था , इस कारण जोधा भी कहलाती थी ! रही बात आज लोग उस जगत गुसाईं उर्फ़ जोधा को अकबर से क्यों जोड़ बैठे ??तो यह तो सिर्फ फ़िल्मी जगत की उपज है ,जब पहली बार हरखू को जोधा बाई बना दिया गया, वह थी मुगले-आजम फिल्म ,,उस समय फिल्मों को कोई गंभीरता से नहीं लेता था !इस कारण फिल्म की प्रसिद्धि के बाद जोधा का नाम अकबर से जुड़ गया !और इस फिल्म के बाद जो छोटे मोटे इतिहासकार हुए उन्होंने भी अकबर के साथ जोधा का नाम जोड़ने का ही दुष्कृत्य किया है ! और रही सही कसर पूरी कर दी आशुतोष गोवोरकर ने "जोधा-अकबर" नाम से फिल्म बनाकर !अब इसे आगे बढ़ा रही है ,नारी के नाम पर धब्बा ,एकता कपूर जो एक बदनाम सीरियल को जी टी वी पर प्रसारित लगातार प्रसारित किये जारही है ! अब हम बात करते है कि यह सब अनायास हुआ या किसी साजिश के जरिये ???? बहुत सी डीबेटों में हम से यह भी पूंछा गया गया कि आखिर फिल्म ,टी.वी.और मिडिया ,शासन-प्रशासन और तमाम प्रचार प्रसार के साधन राजपूत -क्षत्रिय संस्कृति के विरोधी क्यों होगये ?? इसका बिलकुल साफ-साफ उत्तर है कि देश के विभाजन से पूर्व तक लगभग सभी स्थानीय निकाय या शासन तंत्र पर क्षत्रियों का ही अधिकार था और यदि राजपूत-क्षत्रियों की छवि को धूमिल नहीं किया जाता तो, हमसे जिन लोगो ने सत्ता केवल झूंठ और लोगो को सब्जबाग दिखाकर प्राप्त की थी, उसे शीघ्र ही क्षत्रिय समाज पुनः वापिस लेलता !और होसकता है कि राष्ट्र को आज तक के ये दुर्दिन देखने ही नहीं पड़ते !इसलिए राजनीतिक षड़यंत्र के तहत क्षत्रिय समाज की संस्कृति ,इतिहास और छवि को मटियामेट करने के लिए समस्त साधन एकजुट होकर हमला करने लगे ,,,,ताकि क्षत्रिय होना कोई गौरव की बात नहीं रहे बल्कि शर्म की बात होजाये,,,,,किन्तु क्षत्रिय समाज ने अपने पुरुषार्थ के बल पर न केवल अपनी प्रसान्सगिकता ही बनाये रखी बल्कि तमाम दुश्चक्रो को तोड़ने में सक्षमता दिखाई है ,,,,,,इस कारण यह समस्त विरोधी शक्ति एक साथ अब पुनः क्षत्रिय स्वाभिमान और गौरव को नष्ट करने में जुट गयी है !जहाँ तक इतिहास का सवाल है तो वर्तमान समय में उपलब्द्ध इतिहास दो तरह के लोगो के द्वारा लिखा गया है ,,,,एक तो चारणों ,भाटों और राजपुरोहितों द्वारा लिखा गया है, इसमें यह कमी रही है कि यह या तो अपने स्वामी की प्रशंसा में या अपने स्वामी के शत्रु की छवि को धूमिल करने के लिए लोखा गया था !दूसरी तरफ लिखा गया इतिहास विदेशी आक्रान्ताओं और हमारे राजनितिक शत्रुओं ने अपने स्वामी मुगलों और आतातायियों के पक्ष में इतिहास लिखा और हमारे चारणों और भाटों ने हमारे लिए इतिहास लिखा किन्तु देश के विभाजन के बाद पंडित नेहरू जैसे लोगों ने हमारे राजनितिक शत्रुओं और विदेशी आक्रान्ताओं के लिखे इतिहास को मान्यता दी ताकि क्षत्रियो की छवि को धूमिल किया जासकें और हमारे परम्परागत इतिहासकारों के इतिहास को ख़ारिज कर दिया ताकि क्षत्रियो में स्वाभिमान के पुनर्जीवन का अवसर ही नहीं मिल पाए ! !,,,,,फिर भी लोकगीतों,भजनों,लोक-कथाओं,स्वतन<wbr></wbr><span class="word_break" style="display: inline-block;"></span>्त्र कहानीकार और साहित्यकार मुंशी प्रेम चंद जैसे लोगों, मंदिर के शिलालेखो,के जरिये आमजनता के समक्ष क्षत्रिय गौरव पहुँच गया है !इसलिए शिक्षा के नाम पर जो इतिहास पढाया जाता है ,और मनोरंजन के नाम पर टी.वी. पर जो दिखाया जाता है वह असत्य के आलावा और कुछ नहीं है !!!! ऐसे में हम क्षत्रिय जो समस्त चर-अचर ब्रह्मांड के रक्षक है, क्या केवल अपने धर्म ,संस्कृति और गौरव की रक्षा के लिए भी नहीं जागेंगे ????<span class="fbUnderline"><strong> तब धिक्कार है ऐसे कायरता और नपुंसकता भरे जीवन को ,,,,,,,,,</strong></span><br />
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"जय क्षात्र-धर्म"<br />
कुँवरानी निशा कँवर चौहान </div></div></div>क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-75716793786528659742013-05-30T01:43:00.003-07:002013-05-30T01:43:33.975-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<span style="background-color: white; color: #37404e; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;">हम आप सभी से निवेदन करते ही कि आप सभी जोधा-अकबर नामक कथित धारावाहिक का विरोध करे …। यह इतिहास कि तोड-मरोड कर मन-गढत रची -रचाई झुटी कहानी है जो हमारा राष्ट्रप्रेमी समाज बर्दाश्त नही कर सकता है.…. जोधा नाम के पात्र को इतिहास मे पुष्टी नही है</span><span class="text_exposed_show" style="background-color: white; color: #37404e; display: inline; font-family: 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 13px; line-height: 18px;"> ! वह जयपूर के राजा कि दासी कि पुत्री थी जिसका नाम हरका था……जिस तथ्य को इतिहास में प्रमाण न हो .... जो कहानी आधारहीन तथा विवादस्पद हो उसका समर्थन क्यों किया जा रहा है? किवदंतियों को प्रमाणित इतिहास मत बनाओ .......आप राजपूताने के धधकते जौहर की ज्वालाओं को क्यों नजर-अंदाज कर रहे हो .......? स्वयं प्रिंस तुसी जी (हैदराबाद) ने भी इस बात का विरोध जताया था ! यह कोई जात-धर्म के सांप्रदायिक आधार पर संकीर्ण विचार-धारा फ़ैलाने का प्रयास बिलकुल नहीं है ....लेकिन मन-गढ़त कल्पनाओं का और झूटी कहानियों का स्वीकार क्यों करे???? चाटुकार लोगो ने ही ऐसी काल्पनिक किवदंतियों को जन्म देकर लोगों में भ्रम पैदा करने की कोशिश की है जो आज की बुद्धि को प्रमाण माननेवाली पीढ़ी कदापि स्वीकार नहीं करेगी। ऐसी कई धारावाहिक तथा फिल्मे भी अक्सर आती-जाती रहती है जिसमे ठाकुरों को खलनायक की भूमिका में दिखाया जाता है हम सबको इस बात का भी कड़ा विरोध करना चाहिए ..........हजारो साल तक इस राष्ट्र- संस्कृति की रक्षा के लिए अपने सर्वस्व को न्योछावर कर .....प्राणों का बलिदान देनेवाले नायकों की कौम को खलनायक बतानेवाली तमाम साजिशे हम सबको रोकनी चाहिए .....! उन तमाम निर्माता-दिग्दर्शकों को हमारा गौरवशाली इतिहास तथा अनुपम त्याग का अध्ययन करने की सख्त जरुरत है .....पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति की चकाचौंध में रहनेवाले ये लोग क्या जाने उस महान विरासत का महत्त्व?<br />हम अभिव्यक्ति की आज़ादी का अत्यंत सन्मान करते है लेकिन कला और अभिव्यक्ति के नाम पर किसी समुदाय को आहत करने के प्रयास की कड़ी निंदा भी करते है ....!<br />हम सब लोकतान्त्रिक एवं शांतिपूर्ण मार्ग से इस प्रयास का विरोध करे .....यह हम सबका मुलभुत अधिकार है ....! ख्याल रहे ----उचित शब्दों का आधार लेकर ही अपनी राय दे .......गलत भाषा या तरीका इस मिशन को गलत राह्पर ले जाता है ......सावधानी जरुर बरते .....इस मिशन में सभी राष्ट्रप्रेमी नागरिक तथा संघटन अपनी यथार्थ भूमिका निभाए ..........<br /><br />SOME FACTS:<br /><br />1) अकबरनामा में जोधा बाई का उल्लेख नहीं है।<br /><br />2) तजुक ए जहांगीरी जिसमें जहांगीर की आत्मकथा है उसमें जोधा बाई का उल्लेख नहीं है।<br /><br />3) अरब की कई सारे किताबों में ऐसा वर्णित है "ونحن في شك حول أكبر أو جعل الزواج راجبوت الأميرة في هندوستان آرياس كذبة لمجلس" (हमें यकिन नहीं है इस निकाह पर)<br /><br />4) ईरान के " Malik National Museum and Library" की किताबों में भारतीय मुगलों का दासी से निकाह का उल्लेख मिलता है।<br /><br /><br />5)अकबर ए महुरियत में स्पस्ट रूप से लिखा है,"ہم راجپوت شہزادی یا اکبر کے بارے میں شک میں ہیں" (हमें राजपुत विवाह पर संदेह है क्योंकि राजभवन में किसी की आँखों में आँसु नहीं था तथा ना ही हिन्दु गोद भराई की रस्म हुई थी )<br /><br />6) सिख धर्म के गुरू अर्जुन देव जी तथा हरगोविन्द जी ने ये बात स्वीकार किया था कि छत्रियों ने आज अपने बुद्धि का सदुपयोग करना सिख लिया है, “ਰਾਜਪੁਤਾਨਾ ਆਬ ਤਲਵਾਰੋ ਓਰ ਦਿਮਾਗ ਦੋਨੋ ਸੇ ਕਾਮ ਲੇਨੇ ਲਾਗਹ ਗਯਾ ਹੈ “ ( राजपुताना अब तलवार तथा बुद्धि दोनों का प्रयोगकरने लग गया है। )<br /><br />कृपया आप निम्नलिखित मेल कॉपी कर bccc@ibfindia.com , response@zeenetwork.com , ibf@ibfindia.com , media@zeenetwork.com , jairajputanasangh@gmail.com इन पते पर भेजे …….<br /><br /><br />Respected Sir;<br />The Rajput Community is strongly opposing the serial named JODHA-AKBAR. This serial is based on the fake story which had no strong evidence. It is based on some baseless and imaginary literature. The eminent historians hadn't proved it. Rajputs had shaded their blood to protect the motherland from the foreign invaders. This serial dishonours our pride so it is our birth right to oppose it. We request you on the behalf of Rajput community and the Rajput organzations to stop making and broadcasting this serial. Rajput community is one of the major community in this Nation and so their feelings should be regarded and respected. The warrior race couldn't bear the distorting with their history.<br />We hope that the concerned authorities should understand our feelings and stop this effort.<br />THANKING YOU.......</span><br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPAF0FSEksDgYwT1B9HwRCypebtKQgB4qrzOMwnh6YBU5Xf226OINoZcATscNRiFSzhiC8DwHPOcycW-AaU5L7S266ueVBLSgmwA9RxPAsirOmRsCkX_K072WCI6M8MDEQKymPyJRJJJw/s1600/jodha.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="640" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiPAF0FSEksDgYwT1B9HwRCypebtKQgB4qrzOMwnh6YBU5Xf226OINoZcATscNRiFSzhiC8DwHPOcycW-AaU5L7S266ueVBLSgmwA9RxPAsirOmRsCkX_K072WCI6M8MDEQKymPyJRJJJw/s640/jodha.jpg" width="360" /></a></div>
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-62722931853978496722013-02-15T05:10:00.001-08:002013-02-15T05:10:31.060-08:00जागो मेवाड़ .....!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
भीलवाडा (राजस्थान) में कल (ता:14) एक कार्यक्रम सम्पन्न हुवा। उस कार्यक्रम में राजस्थान भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता शिरकत कर रहे थे जो मेवाड़ की ऐतिहासिक भूमि का प्रतिनिधित्व करते है। अपने भाषण में सन्माननीय नेता महोदय (जो पार्टी वुईथ डिफ़रन्स के इमानदार लोकसेवक है) कई मुद्दों पर मार्गदर्शन किया। हमें उनसे कोई शिकायत नहीं है। शिकायत करे तो ऐसी एक बात उन्होंने वहा कही जिसे लेकर दुःख है। उन्होंने कहा; "हम जो लढाई आज लड़ रहे है; वह राजा -महाराजाओं के कार्यकाल में भी लड़ रहे थे। वह काल किसी राक्षस राज से कम नहीं था।" <br />
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मित्रो; सन्माननीय नेताजी उस भूमि का प्रतिनिधित्व कर रहे है जिन्होंने अपने ऐसे बयान से उस भूमि के इतिहास के प्रति अपना अज्ञान दर्शाया है। मेवाड़ के वीरों ने सदियों तक प्राणों की बाजी लगाकर हिंदुत्व ; संस्कृती; मानवता और भारतीय स्वतंत्रता जैसे महान मूल्यों की रक्षा की है। विद्रोही विश्वासघाती बनवीर को छोड़ ऐसा कोई शासक नहीं हुवा जिसपर ऊँगली उठाई जा सके ! क्या वे नेता महोदय महाराणा सांगा ,महाराणा प्रताप के प्रण को भूल गए? उनके अपूर्व त्याग और बलिदान से ही मेवाड़ की धरा दुनिया भर में मशहूर हुई और स्वाधीनता के मन्त्र की प्रेरणा स्थली बनी रही है। हम पूछना चाहते है की है ;राजा-महाराजाओं के खिलाफ उनकी ऐसी कौनसी लड़ाई थी? उन्होंने उनका क्या बिगाड़ा था? और ऐसा कौनसा वर्तन था जिसे ये महोदय राक्षस राज कह रहे है? क्या ये हाड़ी राणी का बलिदान; पन्ना का त्याग भूल गए? क्या उसे यह भी नहीं मालूम की मेवाड़ के रणसंग्राम में राजा के साथ उनकी प्रजा भी लड़ी थी ....! ;अपने राजा के साथ जनता ने भी सुख त्याग दिए थे ....!<br />
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यह दुर्भाग्यपूर्ण टिपण्णी है। सदियों तक क्षत्रियों ने प्राणों की बाजी लगाकर हिंदुत्व की रक्षा है। अगर क्षत्रिय न होते तो यह महान संस्कृति भी बच नहीं पाती। उनकी अलग ही पहचान होती जिसे लेकर ये लोग वर्तमान में घूम रहे है। क्षत्रियों का हिंदुत्व पाखंडी हिंदुत्व नहीं था; जो केवल सत्ता पाने के लिए इस्तेमाल किया जाये। मेवाड़ का इतिहास केवल राष्ट्र के लिए ही नहीं अपितु विश्व के लिए प्रेरक रहा है! भारत भूमि ; हिन्दू धर्म ; संस्कृति; मानवता की रक्षा हेतु मेवाड़ के वीरों ने जो अद्वितीय त्याग किया है जिसकी तुलना नहीं की जा सकती। एक समय था की सम्पूर्ण भारत में केवल मेवाड़ ही बचा था जिसने स्वाधीनता के मन्त्र को जीवित रखा था। <br />
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आदरणीय नेता जी ऐसी महान भूमि का प्रतिनिधित्व करते है जिसपर उन्हें गर्व होना चाहिए। केवल जाती-पाती की क्षुद्र राजनीती और चंद लोगों को खुश करने के लिए कुछ भी उल्टा-पुल्टा बयान देना आजकल नेताओं की प्रवृत्ति हो गयी है। मेवाड़ की जनता अब गंभीरता से सोचे की वह कैसे लोगों को अपना प्रतिनिधित्व सौपती है! राजा-महाराजों के समय उनकी प्रजा कभी रोजगार के लिए अपना वतन छोड़ कर नहीं जाती थी जो इन के ज़माने में और शासन के कार्यकाल में रोजी-रोटी के लिए बाहरी मुल्कों में वतन छोड़ कर जा रही है। जो जनता अपनी भूमि के गौरव के खातिर बलिदान की होड़ लगाती थी उस जनता के बिच जाती-पाती की दीवारे किन्होने खड़ी की? राजा-महाराजा के प्रति आज भी सर्व सामान्य जनता के दिल में अभूतपूर्व सन्मान है जिस कारन ये नेता लोग दुखी रहते है। शायद इन्हें अक्सर भय भी होता हो की कही राजपरिवार की लोकप्रियता उनकी कुर्सी न छीन ले .....! और ऐसे बयान देने वाले महोदय को मेवाड़-केसरी जैसी उपाधि से भी कुछ मान्यवरो ने शब्द-अलंकृत किया! यह विधि की विडम्बना ही है। नेताजी से ऐसी उम्मीद नहीं थी जो किसी भूमि के सन्मान को ठेंच पहुचाये।<br />
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-8616780451110512842012-12-29T10:21:00.002-08:002012-12-29T10:21:37.240-08:00पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी .के सिंह जी का देश के युवाओ से एक अपील...<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
(न्यूज) <br />
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg83EpwkDcqqoVMLW-6bJtDKG58a_u_TpSFr8dNmNccq49XIGMzZPXoz740VwZd313YJ9KVdn1OYU60DYLDwGJsbKZj30jGi5m94CycldA66o-zdnEsO4uL6Wqpl8bFNxqlk6eK5n1V-cs/s1600/vk+singh.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" eea="true" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg83EpwkDcqqoVMLW-6bJtDKG58a_u_TpSFr8dNmNccq49XIGMzZPXoz740VwZd313YJ9KVdn1OYU60DYLDwGJsbKZj30jGi5m94CycldA66o-zdnEsO4uL6Wqpl8bFNxqlk6eK5n1V-cs/s1600/vk+singh.jpg" /></a></div>
देश के वर्तमान हालात पर कटाक्ष करते हुए पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह ने कहा कि व्यवस्था का...ले अजगर की तरह है और हम इसे दूध पिला रहे हैं !<br />
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जनरल सिंह ने कहा कि हमारा देश युवा है ! युवाओं की आबादी 71 फीसदी के लगभग है !जिस तरह पतझड़के बाद वसंत आता है और पेड़ों पर नई कोंपले फूटती हैं, उसी तरह जब तक युवा आगे नहीं आएंगे, पुराने लोग नहीं जाएंगे <br />
अत: युवा आगे बढ़कर देश के लिए काम करें !अब प्रजातंत्र संविधान से हटकर दिखाई दे रहा है ! संविधान 'बी द पीपल' के लिए बना था, लेकिन अब संविधान का बीज पीपल खो गया है <br />
उसे वापस लाना होगा !<br />
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उन्होंने कहा कि हम चिंतन करते रहेंगे और देश पीछे खिसकता रहेगा ! ऐसा नहीं होना चाहिए !ऐसा न हो कि देश की बोली लगने लगे !सिंह ने कहा कि सबके भीतर 'देश सर्वोपरि' की भावना होनी चाहिए ! जब सबके भीतर यह भावना होगी तभी हम देश को आगे बढ़ा पाएंगे !देश की आंतरिक स्थिति पर जनरल सिंह ने कहा कि इतिहास गवाह है, जब भी हमारा पतन हुआ या विदेशी आक्रांताओं को सफलता मिली वह सिर्फ हमारी वजह से और हमारे लोगों की मदद के कारण ही मिली ! हमें सोचना होगा कि आज हमारी स्थिति क्या है ? यह सोच-विचार का समय है !<br />
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कवि की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा- वी.के. सिंह जी ने....<br />
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'व्यवस्था काले अजगर की तरह है, <br />
<br />
हम उसे दूध पिला रहे हैं, <br />
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समूचे राष्ट्र को कैंसर हो गया है, <br />
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हम टाइफाइड की दवाई देरहे हैं !<br />
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उन्होंने कहा कि सबको डॉक्टर बनना होगा और देश को बीमारी से उबारना होगा !जनरल सिंह ने कहा देश में भ्रष्टाचार और सामाजिक असामनता सबसे बड़ी समस्या है ! इसे दूर करने की जरूरत है ! उन्होंने कहा कि वर्ष 2010 में तत्कालीन गृहमंत्री ने कहा था कि नक्सली इलाकों में सेना तैनात करनी चाहिए तब मैंने कहा कि यह आपका मामला है ! इसे आपको सुलझाना चाहिए !उन्होंने कहा कि 1990 में 50 जिलों में नक्सलवाद की समस्या थी, लेकिन अब 272 से ज्यादा जिले नक्सलवाद की गिरफ्त में हैं ! उन्होंने कहा कि इन जिलों की स्थिति वैसी ही है, जैसी 200 साल पहले थी <br />
ऐसी स्थिति में क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि वहां के लोग देश के साथ चलेंगे ??<br />
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जनरल सिंह ने कहा कि हम लेंगे तभी देश की विकृतियां और कुरीतियां दूर होंगी .......जिस दिन हम संकल्प के साथ काम करेंगे, सभी चीजें ठीक हो जाएंगी ! उन्होंने कहा कि 'सपने शायद सच नहीं होते, लेकिन संकल्प कभी अधूरे नहीं रहते' ....! बकौल वी.के.सिंह "इस भ्रष्ट सरकार के खिलाफ जितना मुखर विरोध मैंने अब शुरू किया है अगर ये शुरुवात जनरल पद पर रहते हुए किया होता इण्डिया गेट पर लाठियों से पीता नहीं जाता बल्कि इन देश के लुटेरों को संसद में लाठियों से पिटवाता ! अपने इस भूल पर मुझे जिंदगी भर अफ़सोस रहेगा....<br />
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लेकिन देर से ही सही शुरुवात मैंने कर दी है अब इस लडाई को देश के युवा आगे बढ़ाएं.....................!<br />
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जय हिन्द, जय भारत !!</div>
क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-5558717817687503382012-12-29T10:08:00.002-08:002012-12-29T10:08:41.804-08:00"पूज्यमा की अर्चना का मै एक छोटा उपकरण हु ........!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
"पूज्यमा की अर्चना का मै एक छोटा उपकरण हु ........!<br />
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चाहता हु ये मातृभू ...तुझे कुछ और भी दू .......!"<br />
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मेरे परिचय के और साथ में काम करनेवाले ऐसे कई अनगिनत समाजसेवी है ; जो स्वयंप्रकाशित होकर भी विनयशील है! ....जो दधिची के भांति अपनी निष्काम अहर्निश सेवा का कार्य कर रहे है ! ......जिनमे किसी स्वार्थ का संचार नहीं होता है और न ही रहता है कोई पुब्लिसिटी स्टंट .....जिनके कभी डिजिटल बोर्ड नहीं लगते है ; न ही किसी अखबार में उनकी तस्बीरे झलकती है .....न ही किसी मंच पर जा कर ये शोभा बढ़ाते है ......! वे किसी जातिगत ;दलगत, प्रांतीय या पंथिय जैसे संकीर्ण विचारधारा के लिए नहीं अपितु राष्ट्र-निर्माण के महान कार्य में अपने आप को नीव का पत्थर बना रहे है। जो व्यक्तिपूजा से दूर रहकर विचारधारा के प्रति अपनी निष्ठां रखते है। उनके रग -रग में भारतीयता की और स्वधर्म निष्ठां की झलक मिलती है .....ह्रदय में उन्नत मानवता के संचार का साक्षात्कार मिलता है। जिंदगी के मोड़ पर कई महान ;शक्तिशाली हस्तियोंकि मुलाकात भी हुई ... अपने कर्म से और धर्म से उन हस्तियों का मन भी जित लिया ......कुछ मांगते तो बहुत कुछ पा भी लेते .....लेकिन कुछ माँगा ही नहीं ....! क्यों मांगे? हमें तो जन-मन में इश्वर का अहसास सदैव होता रहता है .......हमारी कर्मनिष्ठता को देख इश्वर सदैव मुस्कुराता नजर आता है .......अगर कुछ मांगना पड़ा भी तो केवल उस महान प्रभु से उस शक्ति का आवाहन होगा जो इस शरिर ---मन में फिर से उमंग का निर्माण करे जो नीड़ के निर्माण में काम आये। <br />
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श्री शिवदास मिटकरी (लातूर) व् निरंजन काले (पुणे) जो स्वयं उच्च विद्याविभुषित होकर भी घरसे कई साल बाहर रहकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के प्रचार एवं प्रसार के लिए जुट गए थे। जिनके सानिध्य में ही मेरी वकृत्व कला का विकास हुवा। <br />
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श्री चैतराम पवार (बारीपाडा) जो आदिवासी समाज और आदिवासी गाव का युवा .....जिसने अपनी कर्मनिष्ठा से अपने गाव का चेहरा बदल दिया। जो गाव श्री अन्ना हजारे जी के रालेगन सिद्धि जैसा स्वयंपूर्ण तथा स्वावलंबी आदर्श गाव जाना जा रहा है। <br />
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जिस साथी के साथ कार्य का आरम्भ किया था .....जो बचपन से यौवन तक के सफ़र का हमसफ़र रहा .....वह सदाशिव चव्हाण(मालपुर) आज माय होम इंडिया जैसे स्वयंसेवी प्रकल्प के माध्यम से पूर्वांचल के युवाओं को जोड़ने का .....उन्हें राष्ट्रीय प्रवाह में लेन का कार्य कर रहा है। जो युवा राष्ट्र के मूल धरा से दूर जा रहे थे .....उन्हें फिरसे प्रवाह में लेन का महान कार्य कर रहा है। <br />
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श्री विनोद पंडित जो राजस्थान के रनवास नाम के छोटे से गाव के रहनेवाले है .....गरीब ब्राह्मण है फिर भी नए लोगों को जोड़ने का .....महान कार्य कर रहे है। राजस्थान के ज्यादातर संस्थानिक उन्हें निजी रूप से जानते भी है और सन्मान भी देते है ......जो गाव-गाव में जाकर एकता के मंत्र की मंत्रणा कर रहे है। वे उस राष्ट्रीय भाव को बढ़ावा दे रहे है जो आजकल लोग भूलते जा रहे है।<br />
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श्री प्रशांत पवार (मालपुर) जी ने गौ माता को बचाने के लिए गोशाला शुरू कर निष्काम सेवा का मार्ग दिखाया। वही हमारे साथी हेमराज राजपूत जो सेवाव्रत के माध्यम से अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को बखूबी निभा रहे है। <br />
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आदरणीय प्रा .डॉ .मधुकर पांडे (नाशिक) ,प्रा .प्रकाशजी पाठक (धुले) और श्री मदनलालजी मिश्र (धुले) हमारे पथ प्रेरक रहे है। उनके साथ बिताये हर एक पल ने हम सबको कई बाते सिखाई। <br />
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आदरणीय श्री कांतिलाल टाटिया (शहादा) जी के आदिवासी क्षेत्र के अहर्निश कार्य ने कई बार प्रेरणा भी दी। <br />
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हमने भी अध्यापक का पेशा अपनाकर आदिवासी क्षेत्र को अपना कार्यस्थल चुना। जिस क्षेत्र में राष्ट्रीय जीवन की विचारधारा का फैलाव हो ......अच्छी शिक्षा का प्रसार हो .......देशभक्त नागरिकोंका निर्माण हो। विवेकानंद केंद्र के माध्यम से भी कई आयामों का आरम्भ हो चूका है। <br />
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मातृभूमि की सेवा ही हमारा लक्ष्य हो .......आओ हम भी जहा है वही से समर्थ भारत के निर्माण का कार्यारम्भ करे। जिस चीज में इश्वर का वास होता है वह कभी नश्वर नहीं होती है। आपका कार्य अगर नेक हो तो उसे सफलता जरुर मिलेगी। इदं न ममं .....जैसी भावना ही उस कार्य को श्रेष्ठ बनाएगी।</div>
क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-46987272263640839462012-12-22T02:09:00.001-08:002012-12-22T02:09:06.448-08:00क्या किसी गुनहगार को कोई जाती या मजहब होता है ....? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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मानव और दानव में फर्क होता है। जो अन्य मानव;पशु-पक्षी-जिव-जंतु तथा प्रकृति के साथ मानवता से व्यवहार करे वही मानव कहलाने का अधिकारी है ....! और जो इस मर्यादा का उल्लंघन करता है वह होता है दानव। दानव का कोई धर्म ;पंथ; प्रान्त या जाती नहीं होती है। दानव हर जगह पनपते है और अपने कुकर्मों से समाज को तकलीफ देते है। दानवों के प्रति हमें कोई भी सहानुभूति नहीं चाहिए। <br />
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हाल ही में राजधानी दिल्ली में जो शर्मनाक घटना हुई वह हैवानियत की हद को पार करनेवाली करतूत थी। उन दरिंदो को कड़ी से कड़ी सजा सुनानी चाहिए और तुरंत उसपर अमल हो ताकि कोई भी माई का लाल आगे ऐसी जुर्रत न करे। साथ सभी समाज के लोग आगे आकर माँ-बहनों की सुरक्षा के हेतु यथोचित कदम भी बढ़ाये। <br />
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दरिंदगी करनेवाले हैवानों की कोई जात या मजहब नहीं होता है। किसी माँ का एक बेटा संत तो दूसरा खलनायक भी हो सकता है। कुसंस्कारों की वजह से ऐसी दरिंदगी का निर्माण होता है। उन दरिंदों में से एक दरिंदा अक्षय ठाकुर जो बिहार से है। हमें दु :ख होता है की वह जिस कौम से है उस कौम के लोग कभी महिलाओं की रक्षा हेतु अपने प्राणों तक को न्योछावर कर देते थे। महिलाओं की रक्षा के लिए जंग भी होती थी और प्राणोत्सर्ग भी किया जाता था। जो कौम स्री को शक्ति का रूप मानकर पूजा करती आयी है आज उसी कौम से पहचान पानेवाले उस नादाँ अक्षय ने अपनी बर्बरता से शर्म से सर निचा कर दिया। हम उसकी इस घिनौनी करतूत का कड़े शब्दों के साथ निंदा करते है और सरकार से मांग भी करते है की उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। देश और दुनिया का समस्त क्षत्रिय समाज इस घटना की कड़ी आलोचना करता है।<br />
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आज ही पंजाब से हर्षवीर सिंह पंवार जी का फ़ोन आया ....उन्होंने हमें दी हिन्दू अखबार के खबर बारे में बताया। "दी हिन्दू " नामक अखबार में हमने उस खबर का जायजा लिया। जिस खबर में अक्षय का वर्णन करते हुए उसकी जाती का भी उल्लेख किया है। किसी गुनाहगार की जाती का या मजहब का वार्ता में उल्लेख करना अनुचित है। एक ठाकुर गलत राह पर चला गया तो उसकी कौम गलत नहीं हो सकती है। व्यक्ति गलत हो सकता है .......समाज नहीं। हमने उस पत्रिका के संपादक महोदय को तुरंत इ मेल करवा दिया है और उन्हें अवगत भी करवा दिया है। इस घटना के आधार पर किसी जाती के बारे में समाज में गलत सन्देश देने का यह प्रयास सम्बंधित पत्रकार या संपादक की जातिगत संकीर्णता का परिचय देता है। <br />
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निचे LINK पर CLICK कर आप उस खबर को पढ़ सकते है: http://www.thehindu.com/todays-paper/all-accused-in-delhi-rape-case-held/article4227692.ece<br />
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7588693803021281065.post-39987836349942774342012-12-16T09:39:00.000-08:002012-12-16T09:39:00.735-08:00सारंगखेडा का विश्व प्रसिद्ध अश्व मेला: 'चेतक और कृष्णा' के नाम से दिए जायेंगे पुरस्कार ....!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiM22ncLZa5xa0pefdj_qdc4j-99iP-Ui71V55m9cSYAVDJQFYTYzCgWkAZ92HjuCMjM3yXIfwB8QG_GiVIYQXhpUH_PuV-V7oKMbiJfVf9e4ZatN9dFq2ac4O2saT8WSFBUQ5Uc9emknw/s1600/DSC_4316.JPG" imageanchor="1" style="clear: left; cssfloat: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img bea="true" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiM22ncLZa5xa0pefdj_qdc4j-99iP-Ui71V55m9cSYAVDJQFYTYzCgWkAZ92HjuCMjM3yXIfwB8QG_GiVIYQXhpUH_PuV-V7oKMbiJfVf9e4ZatN9dFq2ac4O2saT8WSFBUQ5Uc9emknw/s1600/DSC_4316.JPG" /></a></div>
गुजरात की सीमा से महज 100 कि .मी . के दुरी पर शहादा --धुले रोड पर महाराष्ट्र में सुर्यकन्या तापी नदी के किनारे बसा सारंगखेडा गाव जो कभी रावल परिवार की जागीर का स्थल था , अपने शानदार अश्व-मेला की वजह से विश्व-प्रसिद्ध है। प्राचीन समय से यहाँ भगवन एकमुखी दत्त जी का मंदिर है। श्री दत्त जयंती के पावन अवसर पर यहाँ बहुत ही सुंदर मेले का आयोजन होता आया है। विभिन्न नस्लों के घोड़ों के लिए यह मेला दुनिया भर में मशहूर है। प्राचीन समय से भारत वर्ष के राजा-महाराजा; रथी -महारथी यहाँ अपने मन-पसंद घोड़ों की खरीद के लिए आते-जाते रहे है। आज भी देश के विभिन्न प्रान्तों से घोड़ों के व्यापारी यहाँ आते है। आनेवाली 27 दिसम्बर के दिन यात्रारंभ होगा। हर रोज लाखो श्रद्धालु भगवान दत्त जी के मंदिर में दर्शन करते है और यात्रा का आनंद भी लेते है। विभिन्न राजनेता, उद्योजक, फ़िल्मी हस्तिया यहाँ घोड़े खरीदने आते-जाते रहते है। इस साल भी अभिनेता शक्ति कपूर , लावणी सम्राज्ञी सुरेखा पुणेकर, ईशा और अभिनेत्री सोनाली कुलकर्णी यहाँ महोत्सव में उपस्थिति दर्ज करने पधार रहे है। इस मेले में कृषि प्रदर्शनी; कृषि मेला; बैल-बाजार; लोककला महोत्सव; लावणी महोत्सव तथा अश्व स्पर्धा आदि का आयोजन होता है। <br />
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वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी का घोडा "चेतक" तथा छत्रपति शिवाजी महाराज जी घोड़ी "कृष्णा" इतिहास में प्रसिद्ध है। महाराणा प्रतापसिंह जी के जीवन में चेतक घोड़े का साथ महत्वपूर्ण रहा था। कृष्णा घोड़ी ने भी छत्रपति शिवाजी महाराज के संघर्ष के काल में अभूतपूर्व योगदान दिया था। चेतक और कृष्णा के नाम से इस साल सारंगखेडा मेले में पुरस्कार दिए जायेंगे। दौड़ में सर्वप्रथम आनेवाले अश्व को चेतक पुरस्कार--11000 रु की नगद राशी .- चेतक स्मृति चिन्ह और रोबीले पण में सर्वप्रथम आनेवाले अश्व को कृष्णा पुरस्कार--11000 रु . की नगद राशी --कृष्णा स्मृतिचिन्ह प्रदान किया जायेगा। इस मेले में दोंडाईचा संस्थान के कुंवर विक्रांत सिंह जी रावल जी के अश्व -विकास केंद्र के घोड़े भी मौजूद रहते है। जिनमे फैला-बेला नाम की सिर्फ 2.5 फिट ऊँची घोड़ों की प्रजाति ख़ास आकर्षण का केंद्र रहेगी। सारंगखेडा के भूतपूर्व संस्थानिक तथा वर्तमान उपाध्यक्ष (जि .प .नंदुरबार) श्री जयपालसिंह रावल साहब तथा सरपंच श्री चंद्रपालसिंह रावल के मार्गदर्शन में इस मेले की सफलता के लिए स्थानीय पदाधिकारीगन प्रयत्नरत है।<br />
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इस अभूतपूर्व अश्व मेले के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करे: <br />
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<a href="http://www.youtube.com/watch?v=CcDlcXaX_hk">http://www.youtube.com/watch?v=CcDlcXaX_hk</a></div>
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क्षत्रिय संस्थानhttp://www.blogger.com/profile/11286918694151220010noreply@blogger.com0