भारत के हे महासपुत.....!




क्षत्रिय मंथन शिबिर I गुरगाव (हरियाणा)

क्षत्रियोंकी संख्या -शक्ति और प्रवृत्ति इस राष्ट्र पर अपना प्रभाव कायम करती है! क्षत्रियोने हर सदी में यह साबित भी किया है! धूर्त अंग्रेज जब इस देश में आये तो उनका लक्ष्य था क्षत्रियों से व्यर्थ पंगा ना लिया जाये और उनको प्रभाव शुन्य किया जाये....! उन्होंने अपनी कूट निति के अनुसार इस देश की सत्ता छीन ली! मगर इस हेतु उन्हें कई पापड़ भी बेलने पड़े थे! उन्होंने क्षत्रियोंको आपस में लडवाया! जब कोई शासक कमजोर हो गया तो उन के लिए अपनी तैनाती फौज रखी गई! राजकुमारों के लिए मेयो कॉलेज जैसी संस्था खोली गयी जहा उन्हें अंग्रेज तौर तरीके सिखाये गए! हमारे लोग पच्छिम की सभ्यता का अनुसरण करने लगे! उनके लिए प्राय्व्ही पर्स शुरू करा दी गयी! यहाँ तक की उनके शासन का कारोबार देखने की....संरक्षण की जिम्मेदारी भी अंग्रेजोने अपने हाथ ले ली! इन सब बातोंसे राजा और प्रजा दरम्यान दुरी बढ़ गयी! इसका फायदा धूर्त अंग्रेज ने उठाया!


क्षत्रिय भी अपना पुराना धर्म छोड़ जाती बिरादरी में बिखर गए!  प्रदेश...स्थानिक परम्पराए...भाषा...व्यवसाय जैसी बातो ने क्षत्रिय बिरादरी को बिखेर दिया! इस बात के लिए अंग्रेज भी जिम्मेदार थे! उन्होंने हर कौम के अन्दर अलग पहचान बनाने की और वैसी ही भावना जताने की लाख कोशिशे की! उनका मकसद ही था की हम कभी एक ना हो! हमारे इतिहास की तोड़-मरोड़ की गयी! अशिक्षित जनता भी अपने गौरवशाली अतीत को भुलाने लगी! स्वाधीनता के बाद की राज्यव्यवस्था ने भी वही परंपरा निभाई! उन्होंने भी कभी राजनीती....जातिगत प्रभाव...कभी आरक्षण के नाम पर क्षत्रिय जातियों को आपस में लडवाया! जाती में बँटे क्षत्रिय भी आपस में लड़ते रहे! इस लड़ाई में वे अपनी पुराणी पहचान भी भूल गए! बीते दिनों में उन समस्त क्षत्रिय जातियों को एक ही मंच पर लाने के कोई प्रयास भी ना हुए! हर जात अपनी ही श्रेष्ठता का बिगुल बजती रही....अपने स्वार्थ की ओर ही घुमती रही! धूर्त नेताओ ने हमें मुर्ख बनाने का काम जारी रखा! वर्त्तमान में भी यही अलग पहचान पर क्षत्रिय जातिया जोर देती आ रही है!

वास्तव में हमारी पुराणी और सही पहचान केवल..सूर्यवंशी....चंद्रवंशी....अग्निवंशी....नागवंशी जैसे वंश थे! समय के चक्र में हम वंश भावना...गोत्र भावना भूल गए और जाती भावना तेज हो गयी! हर कौम में अब आरक्षण के लिए झगडे लगाये जा रहे है!

इस झमेले में हम हमारा सही धर्म....हमारा सही कर्त्तव्य भी भूल गए!

इसका परिणाम यह हुवा की क्षत्रियों की शक्ति और भी कम  हो गयी! हम मानते है की जो व्यवस्था है वह बनी रहे लेकिन इतिहास से सबक लेकर क्षात्र धर्म के लिए तो हम एक हो सकते है! क्षात्र धर्म कोई संकुचित जातिगत भावना नहीं! वह एक पवित्र बंधन है जिसने विश्व के इतिहास में अपनी महानता कायम की! अगर 'क्षत्रिय' नाम पर हम एक हो जाते है; तो इसका सकारात्मक असर राज्यव्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था पर दिखाई देगा! हम रामायण ---महाभारत के महान क्षत्रियों की संताने है! क्षत्रिय हमेशा प्रकृति पूजक रहे है! ज्ञान,तपस्या,त्याग इ. उनके शाश्वत  मूल्य थे! सत्ता का सञ्चालन उन्होंने निर्मोही प्रवृत्ति से किया था! अपराधी को दंड और गुणीजन का सन्मान यह उनकी व्यवस्था थी! कई चक्रवर्ती सम्राटो ने वानप्रस्थ का स्वीकार कर राजपद का त्याग किया था! आज ऐसी मिसाल कही  नहीं मिल सकती!
क्या वर्तमान के राजनेता अपनी उम्र हो जाने पर राजनीती से सन्यास लेकर वानप्रस्थ की ओर चल पड़ेंगे ?


क्या वर्त्तमान के शासक अपने बच्चे या स्वयं के अपराध के लिए दण्डित होना पसंद करेंगे?

जब भारत आजाद हुवा तो हमारे ५०० से ज्यादा संस्थान थे! लोह्पुरुष सरदार पटेल जी के आवाहन पर सभी शासकोने अपने राजपद, राज्य, किले, राजमहल आदि का त्याग कर स्वतंत्र राष्ट्र की लोकतान्त्रिक व्यवस्था का हिस्सा होना पसंद किया!

श्री विनोबा भावे जी के भूदान आन्दोलन के समय हमारे हजारो जमींदारो ने अपनी जमीनों का बहुत सा हिस्सा गरीब जनता को अर्पण कर दिया था .....कई जमींदारो की जमिनोंपर पाठशालाए, अस्पताल,धरमशालाये बन गयी! शासन ने बाद में सीलिंग एक्ट लगाया! उस वक़्त भी जिस जमीं पर क्षत्रिय जीते थे.....जो जमीं उनके पुर्खोने सम्भाल कर उन्हें विरासत में दी थी......शासन ने उसपर अधिकार कर लिया! क्षत्रिय कौम ने यह भी हसते- हसते स्वीकार कर लिया! क्षत्रिय तो दानी ही होते है! उनका सुख त्याग में ही लिखा होता है! आज के समय में भी राष्ट्र महंगाई...भूख....गरीबी .....बिमारिया जैसी विपदाए झेल रही है!

क्या आज के शासक अपनी जमीने---संस्था...धन देश को अर्पण कर सकते है? क्या वे राष्ट्र के विकास के लिए अपनी निजी संपत्ति का विनियोग करेंगे?

इन सभी सवालोंके जबाब असंभव है...! आधुनिक...सुविधाभोगी...सत्तालंपट राजनेता ऐसी कोई महान परंपरा का अनुसरण नहीं कर सकते!

क्षत्रियों की वजह से यह देश-संस्कृति और व्यवस्था जीवित रह सकी!उनकी हजारो पीढियों ने इस धरती को अपने लहू से सींचा! इसका फल हमें क्या मिला? हमें आरक्षण से वंचित रखा गया....हमारे प्रभावशाली नेताओंको ज्यादा ताकदवर नहीं बनाने दिया गया! फिल्मे....उपन्यास..आदि में क्षत्रिय को खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया! हर बार हमें निचा दिखाने की कोशीशे की गयी! हमें अन्यायी....अत्याचारी बताया गया..! क्या समाज में जातिभेद हमने निर्माण किये थे? हरगिज नहीं....! महाराणा प्रताप के तो अरावली के भील साथी थे और छत्रपति शिवाजी महाराज तो सह्याद्री के मावलों में पले बढे..! भगवान राम ने तो शबरी के झूटे बेर खाए थे! क्षत्रिय कभी जातिवादी नहीं थे.! उस व्यवस्था के निर्माता कोई और थे ! ब्राह्मण हर बार यही समझते है की भगवान परशु राम जी ने इस धरा से क्षत्रियों का निर्मूलन कर दिया है! क्षत्रियों को धार्मिक कर्मकांड में बंदिस्त करने की कोशिशे की गयी! क्षत्रिय राजा बलि को वामन ने मारा! बलि का क्या अपराध था? रावन और हिरन्य कश्यपू ब्रह्मण ही थे! ब्रह्मण समुदाय ने तो शिवाजी महाराज को भी क्षत्रिय माननेसे इंकार कर दिया था! उन्होंने ही अन्य जातियोंको मंदिर प्रवेश ...वेद अध्ययन से रोक दिया था! इसी वजह से अन्य जातिया सनातन धर्म को छोड़ किसी अन्य धर्म में चली गयी! धर्म लोगोंको प्यार देता है! जिन के हाथ धर्मं की बागडोर थी वे ही धर्म जान नहीं सके....!पहचान नहीं सके !  यह किसी जातिविरोधी या जातिगत भावना  से नहीं बल्कि राष्ट्रीय भावना से हम लिख रहे है! आज की सामाजिक विषमता कैसी पनपी?  कहा गया हमारा राष्ट्रवाद? जातिवाद को बढ़ावा किसी जाती ने नहीं बल्कि राजनीति ने दिया है!

इस अव्यवस्था को जितने क्षत्रिय उतने पंडित  भी जिम्मेदार  है!

आज तरह तरह की अनुचित फिल्मे---.T.V. हमें और हमारी पीढ़ियों को बर्बाद कर रही है!राजनैतिक व्यवस्था से जनता का विश्वास टूट रहा है! शासन से कोई उम्मीद रखना जैसे किसी बैल  से दूध की उम्मीद रखने के बराबर होती है! आंतकवाद- नक्षलवाद जैसे जहरीले सापों का खतरा और भी गहरा होता जा  रहा है! शासन प्रणाली में घूंसे चूहे शासन को सरेआम लूट रहे है! भ्रष्टाचार एक शिष्टाचार  बन गया है! गुंडे---लुटेरों को प्रतिष्ठा मिल रही है और सज्जन गर्रिबों का जीना हराम हो रहा है! इस देश में आम नागरिक असुरक्षित महसूस कर रहा है! इन सभी समस्याओं के हल के लिए क्षत्रिय समाज को  और भी मजबूत होना जरुरी है!

दुनिया में भारत ही एक ऐसी धरती है जहाँ नारी का सन्मान होता है! नारी तो यहाँ देवता स्वरुप माना गया है! एक सीता के लिए रामायण और एक द्रौपदी के लिए महाभारत हुवा था! जिस संस्कृति में नारी का सन्मान ना होता हो वह संस्कृति संस्कृति नहीं बल्कि विकृति होती है! आज के आधुनिक समाज और सभ्यता में नारी का सन्मान कम हो गया है! इसके लिए जीतनी व्यवस्था का बदलाव दोषी है उतनी ही आज की नारी! आज की नारी को अगर सन्मान चाहिए तो उसमे सीता...पद्मिनी या रानी लक्ष्मी जैसे गुण भी चाहिए! नारी ही अगर अर्धनग्न अवस्था में अपना शरिर जनता के सामने पेश कराती हो तो उसे सन्मान कहा से मिलेगा? यह कोई तालिबानी जैसा विचार नहीं;बल्कि एक संस्कृति और सन्मान की बाते है! इन सारी बातों से आज की नारी असुरक्षित महसूस करती है.....! सरकार भी उसकी हिफाजत नहीं कर सकती ! औरत पर अत्याचार करनेवाले कायर सरेआम घूमते है! कानून की उनपर कोई दहशत नहीं रही! इतिहास गवाह है की, महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज ने शत्रु की नारियों का भी सन्मान किया था और उनकी रक्षा की थी! नारी पर बुरी निगाह डालने वालों को उन क्षत्रियो ने करारा सबक सिखाया था! अगर आज भी शासन व्यवस्था पर क्षत्रियों का अंकुश रहा तो स्थिति में बदलाव संभव है! आज भी किसी कसबे में आम लोग न्याय के हेतु क्षत्रियों के पास आते है और समस्याओ के हल प्राप्त कर लेते है! यह बात सिद्ध करती है की आम लोगों का क्षत्रिय लोगो पर कितना विश्वास है! क्षत्रियो में भी कुछ अनुचित लोग हो सकते है! जो संस्कार विहीन होते है वे अनुचित ही माने जाते है! उनसे कोई उम्मीद नहीं रख सकता! केवल क्षत्रिय जाती में जन्म लेने से कोई महान नहीं बन जाता...क्षत्रिय एक व्रत है जो इसका सही दिशा में पालन करेगा वह क्षत्रिय कहलाने का हक़दार होगा!इसलिए जरुरी है की हर क्षत्रिय का संस्कार सिद्ध होना! हमें हमारे महान पूर्वजों के महान ज्ञान, परम्पराए और संस्कारों से वंचित रखने का प्रयास किया गया! मेकाले की शिक्षा ने हमें पच्छिम के संस्कार सिखा दिए! हमे अपने गौरवशाली अतीत के बजाय पच्छिम का फिरंगी इतिहास पढाया गया! हमें आधुनिक सभ्यता के नाम पर भी संस्कारविहीन किया गया!

आज की व्यवस्था क्षत्रिय और ब्राहमण को दोष देती है! दोनों को अपने कर्त्तव्य सिद्ध करने होंगे! इस राष्ट्र का महान अतीत फिरसे प्राप्त करने के लिए दोनों को अथक प्रयास करने होंगे!

क्षत्रिय संस्कारों को पुनरुज्जीवित करने हेतु गुरुकुल की स्थापना जरुरी है! गुरुकुल क्षत्रिय बालक और बालाओं को क्षत्रिय धर्म की शिक्षा और दीक्षा देंगे! गुरगाव {हरियाणा} में सम्पन्न प्रथम क्षत्रिय मंथन शिबिर में हमने इसी विषय पर जोर दिया! क्षत्रिय दानी थे...है और रहेंगे! वे किसी की भिक्षा पर निर्भर नहीं रहते है! इस जगत में फैले सभी क्षत्रिय भाई इस मिशन में अपना योगदान देंगे! उसी योगदान से गुरुकुल की स्थापना होगी! जो गुरुकुल क्षत्रिय समाज को उचित संस्कार...मार्ग और दिशा देगा! संस्कारित क्षत्रिय इस राष्ट्र का भविष्य तय करेंगे! अपने स्नाकारों से अपनी निजी, पारिवारिक तथा सामाजिक जिंदगी को प्रभावित करेंगे! भारत एक स्वस्थ ...तंदुरुस्त महासत्ता बन सकेगा!
[यह सारांश है "क्षत्रिय संसद" के गुडगाँव में सम्पन्न प्रथम चरण की चर्चा का]

गुरगाव[हरियाणा] में क्षत्रिय संसद की बैठक सम्पन्न!

क्षत्रिय संसद के प्रथम पहल के लिए हरियाणा स्थित गुरगाव में चर्चा हुई! कुंवर राजेन्द्रसिंह नरुका के निमत्रण पर देश के कोने से सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता इस बैठक में शामिल थे!
एक तस्बीर: (लेफ्ट से कु.राजेन्द्रसिंह नरुका, श्री चौहान ,श्री भवानीसिंह ,श्री राठोड, श्री गिरासे, श्री जालिमसिंह राठोड,श्री संदीपसिंह)