"भारतेश्वर सम्राट पृथ्वीराज चौहान और इतिहास के कुछ तथ्य"


         


                        

वर्तमान में सम्राट पृथ्वीराज चौहान के इतिहास के प्रति कई भ्रांतिया लोगों द्वारा फैलाई जा रही है।  अभी-अभी अक्षयकुमार द्वारा मुख्य भूमिका अभिनीत 'सम्राट पृथ्वीराज' नामक फिल्म के प्रदर्शित होने के बाद विवाद उठ रहे है।  प्रस्तुत फिल्म में न तो पृथ्वीराज चौहान जैसे महान शासक को न्याय दिया गया और न ही उनका सही इतिहास बताने का कोई प्रयास किया गया है।  इतिहास विकृतिकरण के जो षड़यंत्र वर्तमान में चल रहे है या चलाये जा रहे है उनमें इस फिल्म के माध्यम से एक और नाम जुड़ गया।  हालांकि इतिहास को विकृत कराने में तथा गलत धारणाएं बढ़ाने-फैलाने में फिल्म, धारावाहिक आदि की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।  आम जनमानस कभी इतिहास का अध्ययन नहीं करता है और न ही वह किसी विवादों की गहराई में जाता है।  उसपर जो थोपा जाता है वह उसपर विश्वास करने लगता है।  और यही भेड़चाल इतिहास विकृतिकरण गैंग आजकल कर रही है।  जो इतिहास या इतिहास के महान पात्रों की भूमिका या पहचान  मुग़ल-अंग्रेज काल में भी नहीं बदली जो आज के वर्तमान में खतरे में आ गयी है। महाराज जयचंद जैसे महान शासक को एक सोची-समझी साजिश की तरह देशद्रोही बताया गया , इतिहास में उनका नाम बदनाम किया गया। कई कतिपय लेखकों ने किवदंतियों के आधार पर भ्रामक जानकारिया पैदा की है जिन्हे इतिहास के कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है।  

कुछ ग्रंथों का अध्ययन कर यहां कुछ रोचक तथ्य समकालीन इतिहास के सन्दर्भ में प्रस्तुत है।  

 (१) कन्नौज नरेश महाराज जयचंद जी राठौड नहीं अपितु गहरवार राजपूत थे। 

(२) महाराज जयचंद एक बेहद धर्मपरायण तथा विशाल सेना के स्वामी थे। जिन्होंने तत्कालीन भारत के तीर्थक्षेत्रों पर कई घाट -किले और विशाल मंदिरों का निर्माण किया था।   

(३) उनकी 'संयोगिता' नामक कोई पुत्री नहीं थी।  संयोगिता चंदबरदाई की कविकल्पना मात्र है। सम्राट पृथ्वीराज चौहान अजमेर के शासक थे लेकिन उन्हें बाद में उनके नानाजी की दिल्ली की सत्ता भी प्राप्त हो गयी थी।  दो संयुक्त राज्यों के वे स्वामी बन गए थे।  स्वाभाविक है की कवी चंदबरदाई ने उन्हें संयुक्ता का हरण करनेवाला कहा होगा।  

(४) पृथ्वीराज चौहान तथा महाराज जयचंद के समकालीन काल के राजसूय यज्ञ या स्वयंवर आदि प्राचीन प्रथा विलुप्त हो गयी थी।  अगर राजसूय यज्ञ या स्वयंवर किया जाता तो समकालीन किसी न किसी ग्रंथ ,साहित्य, ऐतिहासिक दस्तावेज, शिलालेख आदि माध्यम से कुछ न कुछ जानकारी अवश्य प्राप्त होती।  यह प्रथा प्राचीन भारत में जीवित थी और न की मध्ययुगीन भारत में।  

(५) जयचंद गहरवार और पृथ्वीराज चौहान मौसेरे भाई नहीं थे।  उनके बिच कोई निजी शत्रुता नहीं थी।  दो भिन्न शासकों के खेमे में साम्राज्यविस्तार की महत्वाकांक्षा का प्रबल होना स्वाभाविक है लेकिन फिर भी जयचंद द्वारा घोरी को निमंत्रित किया जाना इसके लिए समकालीन इतिहास या अन्य ग्रंथों में कोई भी पुख्ता प्रमाण नहीं है।  दुनिया के कई महान इतिहासकारों ने महाराज जयचंद के निर्दोष होने के प्रमाण दिए है।   

(६)  युद्ध की सहायता के किए गए आव्हान को गंभीरता से तभी लिया जाता है जब सैनिकी सहायता या आर्थिक सहायता की पहल की गयी हो।  

(७) महाराज जयचंद ने घोरी को निमंत्रण दिया यह मिथक है जिसके कोई आधार नहीं। महाराज जयचंद की सेना इतनी विशाल थी की वे अकेले  सम्राट पृथ्वीराज चौहान से लड़ सकते थे। क्योंकि घोरी ने महाराज जयचंद पर भी आक्रमण किया और उस युद्ध में महाराज जयचंद भी वीरगति को प्राप्त हो गए थे।  

(८) सम्राट पृथ्वीराज चौहान और  घोरी के बिच केवल २ युद्ध हुए थे। सन ११९१ के  प्रथम युद्ध में सम्राट पृथ्वीराज चौहान की विजय हुई थी और ११९२ में संपन्न तराई के मैदान में हुए द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान वीरगति को प्राप्त हो गए थे।  घोरी की मृत्यु वर्तमान पाकिस्तान के दमैक में १२०६ में हुई थी। घोरी सम्राट पृथ्वीराज को बंदी बनाकर अफगानिस्तान नहीं ले गया था।     

(८) क्षत्रिय चौहानों के वंशजों के अजयमेरु(अजमेर), दिल्ली, ढूंढाड़, नाडौल , लाट प्रदेश , धौलपुर, परबतगढ़, जालौर, सिरोही, बूंदी , अवध, गोडवाड़, हाड़ौती, नीमराना , कोटा, मैनपुरी, तुलसीपुर, देवगढ़ बारिया आदि जगहों पर राज्य स्थापित किए थे तथा  बनकोड़ा, बेदला ,बंसिया , भादैया राज, बिश्रामपुर, चंद्रपुर-पदमपुर, चंगभाकर, देआरा धामी, धरधारा, डोडियाली, गढ़ी , जरासिंघा, जशपुर, झारग्राम, करौड़िया , खारीघर ,कोरिया, कोठारिया, कुचिअकोल , लोडावल, मांडव, मोटागांव, नीमखेड़ा, पलानहेड़ा, परदा माताजी, पारसोली, पटना, पिपलोद, राय गोविंदपुर, रायपुर रानी, राजगढ़, संजेली , सरसवा , राघौगढ़ , संवत्सर, शेरगढ़, सिंगवाल ,सिंगरौली, सोनपुर, सुजाजी का गुढ़ा, तम्बोलिया, ठाकरडा , वडथाळी, वागेरी , वनवास, वाव आदि जगहों पर  प्रिंसली स्टेटस, जागीरे और जमींदारी के रूप में चौहान राजपूतों की सत्ता सन १९४७ तक कायम थी।  

                                                                         - जयपालसिंह गिरासे  (इतिहास अभ्यासक तथा लेखक) 


सन्दर्भ : (१)  कन्नौज का इतिहास --लेखक :आनंद स्वरुप मिश्र ( IAS) उत्तर प्रदेश सरकार के सेवानिवृत्त सचिव 

            (२) गैजेट रिपोर्ट्स ऑफ़ प्रिंसली स्टेट्स  


निवेदन : कृपया अत्याधिक लोगों तक यह जानकारी प्रसारित की जाए और अपने गौरवशाली इतिहास के प्रति फैलाई जा रही भ्रांतियों को मिटाने में सहयोग दे।