कडुवी बात पार्ट :३ "मुझे डर है कही मैं असहिष्णु ना कहलाऊ !"

  आज उत्तरप्रदेश के सैफई में समाजवाद के वर्तमान संरक्षक आदरणीय नेताजी श्री मुलायमसिंहजी का जन्मदिन बड़े ही शानो-शौकत के साथ मनाया गया। सैफई में विशेष महोत्सव का आयोजन किया गया। लगभग ७० लाख रुपये के फूल मंगवाए गए ; कानपुर से १५ क्विंटल बनारसी लड्डू मंगवाए गए ; ७७ किलो का केक बनवाया गया ; २.५ करोड़ की लागत से खास मंच बनवाया गया। नृत्य ,संगीत और रोशनाई से सारा सैफई झगमगा उठा ! अतिविशिष्ट अतिथियों के लिए आलिशान होटलों के ५०० से ज्यादा कमरे आरक्षित किये गए। उत्तर प्रदेश की सरकार स्वयं इस महोत्सव के आयोजन-नियोजन में सैफई में मौजूद रही। मध्ययुग में किसी राजा -महाराजा ने भी अपना जन्मदिन इतनी धूमधाम से मनाया नहीं होगा। मै भी आदरणीय नेताजी को जन्मदिन की शुभकामनाएं देता हु। नेताजी के जन्मदिन का जलसा देख मुझे जलन नहीं हो रही है। लेकिन मै अस्वस्थ जरूर हु। मुझे समाजवाद ने रातभर सोने नहीं दिया। राममनोहर लोहिया ;जयप्रकाश नारायण ; लोकनायक बापूजी अणे जैसे समाजवाद के दिवंगत पुरोधा मुझे सोने नहीं दे रहे थे। वे मुझे लगातार पूछ रहे थे की क्या तुम समाजवाद के वर्तमान रूप से खुश हो ? क्या तुम ने इसी समाजवाद का अध्ययन किया था ? … अतीत के महान लोग मुझे सवाल कर रहे थे। मै भला उनको क्या जबाब देता ? स्वयं राम मनोहर लोहिया जी मेरे सामने खड़े थे , मैं हड़बड़ा गया था। मैं सिर्फ हां या ना सूचक वृत्ति से अपना सर हिला रहा था। मेरे मन की भावना जानकर वे अदृश्य हो गए। अपना टी व्ही शुरू किया। सैफई महोत्सव के बारे में इंटरनेट से ज्यादा जानकारियाँ प्राप्त की। मैं सोच में डूब गया। सैफई का स्वर्ग से भी सुन्दर वैभव देखकर बार बार अतीत के त्यागी समाजवादी दिख रहे थे।
ए आर रहमान के संगीत की धुन पर नांच रहे बॉलीवुड के कलाकारों का जोश देखकर मैं अपना होश खो बैठा। संगीत की धुन पर सुन्दर सुन्दर ललनाएँ अपने अनुपम चित्ताकर्षक नृत्याविष्कार का विलोभनीय प्रदर्शन दर्शकों को इसी जन्म में रंभा --उर्वशी का साक्षात्कार दिलवा रही थी। समाजवाद के तमाम सैनिक झूम रहे थे। मानो समाजवाद ने अपने उगम से लेकर आजतक के सफर में जो ऊँचाई हासिल की इसी ख़ुशी में यह आयोजन हुवा हो। ऐसा प्रतीत होने लगा की अब देश में ''सब बराबर '' हो गए ; विषमता की समाप्ती हो गयी; देश में सभी वर्गों तक विकास की गंगा पहुँच गयी। ध्येयपथ की ओर चलते चलते अपने संघर्ष भरे कर्तव्य की इतिश्री देखकर तमाम समाजवादियों को कृतकृत्य होना स्वाभाविक है। देश भर से विभिन्न दलों के नेता आदरणीय नेताजी को बधाईयाँ देने सैफई पहुँचे। उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाखों से समाजवादी सैनिक सैफई पहुँचे। नेताजी की एक झलक पाकर --अपनी बधाईयाँ देकर कृतकृत्य हो गए। समाजवाद भी ख़ुशी से झूम रहा था। बार बार मेरी ओर देख रहा था। दिवंगत नेताओं को मैं बता रहा था की आपके जमाने के समाजवाद से आज के समाजवाद ने काफी तरक्की कर ली है। आप तो घर में बनी रोटी साथ लेकर ;खादी के उबड़-खाबड़ कपडे पहनकर ;कभी पैदल या कभी जनता गाडी की सवारी कर अपनी लड़ाईया लड़ रहे थे लेकिन आज देखो आप ही द्वारा बोया गया समाजवाद हवा-हवाई का अत्यानन्द ले रहा है। आपको तो समाजवाद की तरक्की देखकर खुश होना चाहिए। दिवंगत नेता मेरी ओर क्रुद्ध होकर देखने लगे। मुझे डाँटने लगे। मैं फिर एकबार घबरा गया ;हड़बड़ा गया। मैंने उन्हें कहा की, '' ना तो मैं समाजवादी पार्टी का कार्यकर्ता हु और ना ही किसी राजनितिक दल से जुड़ा हुवा। मैं तो एक साधारण अध्यापक हु जो बच्चों को समाजवाद से परिचित करवाता हूँ। 'मेरा उत्तर सुनकर दिवंगत नेता खुश हो गए लेकिन उन्होंने आदेश दिया की इसपर लिखो। दुनिया को बतावो की समाजवाद का असली स्वरुप क्या है ? मैंने उन्हें समझाया की जनता को तो सब पता है। जब राजेश खन्ना की ''रोटी'' फिल्म आयी थी ,तभी से देश की पब्लिक सबकुछ जानने लगी है। इस अकेले जयपाल सर के चिल्लाने से क्या फायदा ? हमारे आभासी संवाद को फिर एक बार विचलित किया आजतक के न्यूज हेड़लाईन ने : ब्रेकिंग न्यूज ---एक्सक्ल्यूसिव खबर के नाम पर नेताजी श्रीमान मुलायमसिंह जी का मंतव्य प्रसारित किया जा रहा था। नेताजी काफी भावुक थे , उत्तरप्रदेश तथा देश के कोने कोने से सैफई में उपस्थित तमाम हितचिंतकों को उन्होंने धन्यवाद दिया। जो सन्मान मिला उसके लिए धन्यवाद अर्जित कर उम्र के ७६ साल पार कर चुके नेताजी बोले की अब युवाओं को रोजगार देने के लिए हमें काम करना है। कोई भूखा ना रहे इसलिए मिलकर हाथ बढ़ाना है। नेताजी बोल ही रहे थे अचानक किसी का मोबाईल खनक उठा ,रिंगटोन भी सुन्दर थी ,समाजवाद के बिलकुल अनुरूप ! ''साथी हाथ बढ़ाना ; एक अकेला थक जाएगा ----" उस रिंगटोन ने मेरा ध्यान आकर्षित किया लेकिन सैफई के स्टेज पर बॉलीवुड के डी जे ध्वनि का आवाज इतना बढ़ गया की उस आवज ने ''साथी हाथ बढ़ाना ---'' के आवाज को दबा दिया। दिवंगत नेता बार बार कह रहे थे ,मेरी ख़ामोशी को धिक्कार रहे थे। मैं तो अपने मौन पर फिर एकबार कायम हो गया। आखिर में तीनो दिवंगत नेताओं ने मुझे कान में पूछा : " जयपाल ;तुम्हारी ख़ामोशी का राज क्या है ?" मैंने तुरंत जबाब दिया : "मैं खामोश हु क्यों की मुझे डर है कही मैं भी असहिष्णु ना कहलाऊ !" मेरा जबाब सुनकर वे फिर अदृश्य हो गए !----

लेखक : जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे ,शिरपुर ९४२२७८८७४०
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