"राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह -एक अपराजित योद्धा "

 

"राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह --एक अपराजित योद्धा''


लेखक : श्री जयपालसिंह गिरासे


प्रकाशक : नोशन प्रेस पब्लिकेशन, चेन्नई (तमिलनाडु)


भाषा : हिंदी


कुल  पृष्ठसंख्या  : ३३६


मूल्य : ३९९  /- (शिपिंग चार्जेस एक्स्ट्रा)


ISBN NO :  978-1-64919-951-5


(C) Jaypalsingh Girase


आप सभी को बताते हुए अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है की , श्री जयपालसिंह गिरासे  द्वारा हिंदी भाषा में लिखित 'राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह---एक अपराजित योद्धा !' यह ग्रन्थ पाठकों के लिए लम्बी प्रतीक्षा के बाद उपलब्ध  हो गया है।  

मुग़ल साम्राज्यवाद के खिलाफ अपनी प्रजा का  साथ लेकर जनयुद्ध खड़ा करनेवाले तथा विपरीत परिस्थितियों में भी कड़ा संघर्ष कर अपराजित रहते हुए मृतवत राष्ट्र में नवप्राणों का संचार कर जन -जन को मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करनेवाले वीरशिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह हर पीढ़ी में विश्व के सभी स्वाभिमानी और स्वतंत्रताप्रेमी नागरिकों के लिए  प्रात :स्मरणीय है।  

राष्ट्रकवि पं. रामसिंहजी  सोलंकी ने महाराणा प्रतापसिंहजी के गौरव का बखान करते हुए यह कहा था :--

"जात -धरम तज वरग मन; वृद्ध -शिशु-नर-नारिह।

जद -जद भारत जुंझसि,पाथल जय थारिह।।"

 - अर्थात: हे प्रताप, जब-जब भारत वर्ष पर विपदा की स्थिति आएगी तब -तब भारत वर्ष के आबाल-वृद्ध तथा नर-नारी अपने जाति -धर्म-पंथ-प्रान्त की संकुचित भावना से ऊपर उठकर केवल तुम्हारे नाम का जयजयकार करेगी !

-        'या तो कार्य सिद्ध होगा या मृत्यु का वरन किया जायेगा ' महाराणा प्रतापसिंह का यह भीषण प्रण उस काल के क्रांतिकारी स्वर्णिम इतिहास का गौरव लिखने के लिए कलम को सदैव प्रेरित करता है। राष्ट्र के सत्व-स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए भीषण कष्टों का सामना कर लगातार २५ साल तक साम्राज्यवादी शक्ति के साथ कड़ा संघर्ष करनेवाले राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह जी का चरित्र केवल भारत राष्ट्र के लिए ही नहीं अपितु समस्त संसार के स्वतंत्रता और स्वाधीनता प्रेमी नागरिकों के लिए आज भी स्फूर्ति का स्रोत है।

-       जब भारत की कई हिन्दू-मुस्लिम शासकों  ने साम्राज्यवादी मुघल सल्तनत के सामने अपनी सार्वभौमिकता खो दी थी तब उसी प्रतिकूल संक्रमणकाल के दौरान महाराणा प्रतापसिंह मेवाड़ की धरती पर प्रखर विरोध का केंद्र बने रहे तथा सिमित संसाधन होकर भी गुरिल्ला और छापामार युद्धतंत्र का अवलंब कर अपनी स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता को कायम रखा। विश्व के इतिहास में यह अनोखा उदाहरण होगा जहाँ अपने राजा के साथ -साथ प्रजा ने भी वनवास तथा कष्टप्रद जीवन व्यतीत किया। स्वभूमि विध्वंस जैसे कठोर कदम उठाकर मुघल रणनीति को परास्त करनेवाली सामरिक रणनीति आज भी सामरिक शास्रों के अध्ययन कर्ता तथा संशोधकों का ध्यान आकृष्ट करती है।

-       

 महाराणा के इसी शौर्य से परिपूर्ण , कुशल रणनीतिकार और प्रजाहितैषी व्यक्तित्व को सुलभ भाषा के माध्यम से शब्दांकित करने का लेखक श्री जयपालसिंह गिरासे द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रयास किया गया है। श्री जयपालसिंहजी ने मेवाड़ धरा के हर एक स्थल पर प्रत्यक्ष जाकर प्रमाणों के साथ अध्ययन किया है।  मेवाड़ राजपरिवार तथा विभिन्न ठिकानेदार परिवारों से प्रत्यक्ष चर्चा कर उन्होंने सन्दर्भ जुटाए है।  मूल राजस्थानी लोकसाहित्य, विभिन्न ख्यात साहित्य, प्रशस्तियाँ , ऐतिहासिक दस्तावेज, शिलालेख, ताम्रपट्ट ,पट्टे -परवाने , दरबारी दस्तावेज , मुग़ल कालीन ग्रन्थ तथा समकालीन इतिहास से संबंधित हिंदी, अंग्रेजी , फ़ारसी तवारीखे , विभिन्न समीक्षा ग्रंथों, स्मरणिकाएँ , शोधप्रबंधों आदि  ग्रंथों का अध्ययन कर कालक्रम को सुगम और सुसंगत कर प्रस्तुत ग्रन्थ को लिखा गया है।  महाराणा प्रतापसिंह के जीवनकाल के बारे में कई प्रचलित किवदंतियों को टालकर एक राष्ट्रप्रेरक चरित्र को उजागर करने का लेखक ने प्रयास किया है।    प्रस्तुत ग्रन्थ के अंत में महाराणा प्रतापसिंह के जीवनक्रम , हल्दी घाटी युद्ध , सहयोगी साथी तथा परिवार के सदस्यों की विस्तृत जानकारी स्वतंत्र परिशिष्टों के रूप में दी गयी है।  आशा है यह ग्रन्थ पाठकों को निश्चित रूप से पसंद आएगा।

'मुग़ल-मेवाड़ संघर्ष' को 'साम्राज्यवाद के खिलाफ जनयुद्ध'  के रूप में वर्णित कर ग्रन्थ की रचना उत्तमोत्तम बनाने का प्रयास लेखक ने किया है।  अनगिनत संघर्षों के इतिहास की बखान करते समय संयत तथा मर्यादित भाषा का प्रयोग लेखक ने किया है। प्रताप  की युद्धकुशलता और सामरिक रणनीति का  अत्यंत सटीक- समर्पक भाषा में वर्णन तो किया ही है लेकिन साथ-साथ प्रताप की दूरदर्शिता , प्रजावत्सलता , सादगी , धर्मनिरपेक्षता, मानवतावादी दृष्टिकोण और प्रशासनिक गुण आदि पहलुओं पर भी सोदाहरण प्रकाश डाला है।

      प्रस्तुत ग्रन्थ का आमुख  मेवाड़ के लिए  शत्रु से लोहा लेकर प्राणोत्सर्ग करनेवाले वीर झाला मान के वंशज तथा महाराणा मेवाड़ परिवार के अत्यंत करीबी और विश्वसनीय व्यक्तित्व श्री प्रतापसिंह झाला (तलावदा , उदयपुर) ने लिखी है।  लगभग २९ पृष्ठों की व्यापक आमुख (प्रस्तावना) में गुहिल --बाप्पा रावल के काल से अर्थात मेवाड़ राज्य की स्थापना से लेकर महाराणा प्रतापसिंह के काल तक विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं का संक्षेप में परामर्श लेकर कई तथ्यों का सप्रमाण पुष्टिकरण किया है। 

      ग्रन्थ में ४३ स्वतंत्र प्रकरण है जिनमे ४ सूचि है। ग्रन्थ की आकर्षक छपाई , निर्दोष मुद्रण और अंतरंग की रचना आदि के लिए नोशन प्रेस की टीम ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अवलंब किया है।  ग्रन्थ में कुल ३३६ पृष्ट है तथा साइज़ 5.5 x 8.5  की है।  ग्रन्थ के मुखपृष्ठ का प्रकार पेपरबैक है तथा ग्लॉस लैमिनेटेड है।   ग्रन्थ के अंदर के पृष्ट 70 GSM Seshai NS प्रकार के है।  

     राष्ट्र में स्वाधीनता तथा सार्वभौमिकता की प्रेरणा निरंतर जीवित रखनेवाले महाराणा प्रतापसिंह जैसे अपराजित योद्धा की संघर्षमयी कहानी पाठक जरूर पढ़े।  यह मेरा विशेष सुझाव है।

 


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प्रात:स्मरणीय महाराणा प्रतापसिंहजी के जीवन पर अत्यंत सुन्दर तथा परिपूर्ण ग्रन्थ !



"राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह --एक अपराजित योद्धा''

लेखक : श्री जयपालसिंह गिरासे 

प्रकाशक : नोशन प्रेस पब्लिकेशन, चेन्नई (तमिलनाडु)

भाषा : हिंदी 

एकूण पृष्ट : ३३६ 

मूल्य :  ३९९ /- (शिपिंग चार्जेस के साथ) 

ISBN NO :  978-1-64919-951-5


        "राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह --एक अपराजित योद्धा''  इस हिंदी भाषा में  प्रकाशित ग्रन्थ  में मेवाड़ के महान सपूत तथा हर सदी में जन -जन को स्वाभिमान , सार्वभौमिकता  और स्वतंत्रता की प्रेरणा देनेवाले  प्रखर राष्ट्रभक्त हिंदुवा सूरज वीरशिरोमणि महाराणा प्रतापसिंहजी के जन्म से मृत्यु तक के समग्र घटना क्रमों का वर्णन है।   प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन चेन्नई-सिंगापूर-मलेशिया  स्थित अंतर्राष्ट्रीय प्रकाशन संस्था 'नोशन प्रेस पब्लिकेशन' द्वारा किया गया है तथा विश्व के १६ प्रमुख  देशों में लगभग ३०००० से ज्यादा बुकस्टॉल्स और विभिन्न ऑनलाइन वेबसाइट्स के माध्यम से बिक्री के लिए उपलब्ध होगा।  किंडल बुक के माध्यम से अमेजॉन , फ्लिपकार्ट , नोशन प्रेस.कॉम , स्नैपडील आदि वेबसाइट्स पर भी यह ग्रन्थ उपलब्ध रहेगा।  प्रारम्भ में मेवाड़ के त्याग-तप-बलिदान से समृद्ध  गौरवशाली ऐतिहासिक पूर्वपीठिका का संक्षेप में  उल्लेख किया गया है जिससे महाराणा प्रतापसिंह के जीवनकाल में उभरे संघर्ष की पार्श्वभूमि समझना सुलभ होता है।  जिसमे सन १५६८ में चितौड़ पर मुघलों  द्वारा किये गए प्रलयंकारी आक्रमण, चितौड़ के तीसरे साके -जौहर  और महाराणा के द्वारा  अरावली के दुर्गम पहाड़ों को प्राकृतिक वनदुर्गों का स्वरुप देकर गुरिल्ला --छापामार युद्धतंत्र का प्रभावी अवलंब करना आदि घटनाएं भविष्य के कड़े संघर्ष को ध्वनित करती है। 
         महाराणा प्रतापसिंह ने अपने पूर्वजों के पगचिन्हों पर चलने का निश्चय किया तथा अपने इस प्रण को निभाने के लिए अत्यंत प्रतिकूल स्थिति में सिमित संसाधनों के साथ अनगिनत कष्टों का सामना कर अपनी प्रजा के ह्रदय में स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता की जो असाधारण ऊर्जा भर दी जिसके चलते तत्कालीन विश्व की शक्तिशाली साम्राज्यवादी मुघल सल्तनत के साथ लगातार २५ साल तक भीषण संघर्ष किया। 
       मुघल शासक अकबर द्वारा महाराणा प्रताप सिंह को झुकाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद के प्रयोग किये गए। आरम्भ में  जलाल खान कोरची , कुँवर  मानसिंह , राजा भगवंत दास और राजा टोडरमल को सन्धिवार्ता के लिए भेजा लेकिन अपने दादा राणा सांगा के काल से चले आ रहे इस संघर्षमयी परंपरा के मद्देनजर और अपनी मातृभुमि के सत्व -स्वत्व -स्वाभिमान और स्वाधीनता की रक्षा के लिए महाराणा प्रतापसिंह ने इन प्रस्तावों को ठुकरा दिया था।  मुघलों से किसी भी तरह का समझौता स्वयं के साथ-साथ मातृभुमि की स्वतंत्रता को भी नष्ट कर देनेवाला था इसलिए महाराणा प्रतापसिंह ने उसी भूमिका का निर्वहन किया जो अपेक्षित थी। 
        मूल भारतवासियों की स्वतंत्रता नष्ट कर उन्हें अंकित कर अपने साम्राज्य में विलीन करना और सम्पूर्ण भारतवर्ष में अपने साम्राज्य का निर्माण करना मुघल सल्तनत का मुख्य उद्देश्य था।  महाराणा प्रतापसिंह ने अपनी मेवाड़ की प्रजा तथा दुर्गम पहाड़ियों के आदिवासी समुदाय के ह्रदय में प्रखर राष्ट्रभक्ति की भावना का निर्माण किया।   धन-अस्र-शस्र और सैन्य बल आदि  संसाधन सिमित थे फिर भी स्वामीनिष्ठ साथीयों  और प्रजा का असाधारण सहयोग प्राप्त कर महाराणा प्रतापसिंह ने इस संघर्ष को ''साम्राज्यवाद के खिलाफ जनयुद्ध'' का स्वरुप दिया। सिरोही , ईडर, बांसवाड़ा ,बूंदी और डूंगरपुर जैसे  पडोसी शासको के साथ गठबंधन कर साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ने की प्रेरणा जीवित रखी।   स्वभूमि- विध्वंस के जरिये समतल इलाकों में खेती करना बंद कर दिया गया और  समस्त प्रजा अपने राजा के साथ दुर्गम पहाड़ों की शरण में चली गयी। प्रजा शांतिकाल में पहाड़ों में खेती करती थी और संघर्षकाल में सैनिक बन शत्रु का मुकाबला करती थी।  सांकेतिक आवाजों वाली गुप्त सांकेतिक भाषा का विकसन कर पहाड़ों में तथा शत्रु के प्रदेशो में गुप्तचरों का जाल बिछाया।  दुर्गम पहाड़ों में प्राकृतिक गुफाओं में आश्रय स्थान बनाये गए।   सभी बस्तिया खाली करवाई गयी जिससे दो फायदे हुए : या तो प्रजा शत्रु के भयंकर आक्रमणों से सुरक्षित रही और मुघल सेना को स्थानीय स्तर पर अनाज या घांस का मिलना दुर्लभ हो गया जिस प्रतिकूल स्थिति में उन्हें केवल दिल्ली या अजमेर से आनेवाली रसद पर निर्वहन करना बाध्य हो जाता था जो महाराणा के छापामार सैन्य टुकड़ियां  लूट लेती थी।  मुघल सेना पर घात लगाकर बैठे मेवाड़ के सैनिक अचानक हमले कर उनकी दयनीय अवस्था कर देते थे जिसकी वजह से बड़े से बड़े मुघल सेनानायक और उनकी तमाम रणनीतियाँ महाराणा प्रतापसिंह की रणनीति के सामने परास्त हो जाती थी। 
        महाराणा प्रतापसिंह  की शक्ति को परास्त करने के लिए कुँवर  मानसिंह , स्वयं मुघल बादशाह अकबर , शाहबाज खान ,जगन्नाथ कछवाहा , अब्दुर्रहीम खानखाना आदि के नेतृत्व में अस्र -शस्र -धन बल से सुसज्जित विशाल मुघल सेना ने कई बार प्रदीर्घ समय तक आक्रमण किये लेकिन किसी भी मुहीम को सफलता नहीं मिल सकी।  मेवाड़ के शासक अपराजित रहे। 
       महाराणा प्रतापसिंह के कार्यकाल में 'हल्दी घाटी का युद्ध' तथा 'दिवेर का युद्ध' अत्यंत महत्वपूर्ण माने जाते  है।   हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रतापसिंह के रूप में एक प्रचंड आत्मशक्ति वाले  आक्रमक योद्धा का दर्शन होता है तो 'दिवेर के युद्ध ' में अपने बलाढ्य शत्रु के सभी इरादों को सदा के लिए ध्वस्त करनेवाले और शत्रु दल को भयकंपित कर देनेवाले  सुनियोजित रणनीतिकार नजर आते है। 
       महाराणा प्रतापसिंह प्रखर राष्ट्रभक्त , पराक्रमी योद्धा , प्रजावत्सल शासक के साथ-साथ कला -साहित्य के आश्रयदाता भी थे।  निसारदी (नसीरुद्दीन )नामक महान चित्रकार को उन्होंने आश्रय दिया था जिसने चावंड में प्राचीन रागमाला चित्रशैली का विकास किया।  वीर हकीमखान सूरी हल्दी घाटी के युद्ध के समय महाराणा के सेनापति थे जिन्होंने मुघल सेना के साथ लड़ते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थी।  महान जैन मुनि हेमरतन सूरी को उन्होंने अपना गुरु माना था।  महाराणा प्रतापसिंह ने अपने पूर्वजों की तरह 'सब समाज को लिए साथ में ,आगे है बढ़ते जाना ' इस उक्ति के अनुसार मानवता धर्म का सदैव अनुपालन किया था।  पंडित चक्रपाणि मिश्र जैसे मूर्धन्य विद्वान के सहयोग से 'मुहूर्तमाला ', 'विश्ववल्लभ और 'राज्याभिषेक पद्धति' जैसे महान ग्रंथों का निर्माण करवा लिया। 
       महाराणा के इसी शौर्य से परिपूर्ण , कुशल रणनीतिकार और प्रजाहितैषी व्यक्तित्व को सुलभ भाषा के माध्यम से शब्दांकित करने का लेखक श्री जयपालसिंह गिरासे द्वारा प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रयास किया गया है। श्री जयपालसिंहजी ने मेवाड़ धरा के हर एक स्थल पर प्रत्यक्ष जाकर प्रमाणों के साथ अध्ययन किया है।  मेवाड़ राजपरिवार तथा विभिन्न ठिकानेदार परिवारों से प्रत्यक्ष चर्चा कर उन्होंने सन्दर्भ जुटाए है।  मूल राजस्थानी लोकसाहित्य, विभिन्न ख्यात साहित्य, प्रशस्तियाँ , ऐतिहासिक दस्तावेज, शिलालेख, ताम्रपट्ट ,पट्टे -परवाने , दरबारी दस्तावेज , मुग़ल कालीन ग्रन्थ तथा समकालीन इतिहास से संबंधित हिंदी, अंग्रेजी , फ़ारसी तवारीखे , विभिन्न समीक्षा ग्रंथों, स्मरणिकाएँ , शोधप्रबंधों आदि  ग्रंथों का अध्ययन कर कालक्रम को सुगम और सुसंगत कर प्रस्तुत ग्रन्थ को लिखा गया है।  महाराणा प्रतापसिंह के जीवनकाल के बारे में कई प्रचलित किवदंतियों को टालकर एक राष्ट्रप्रेरक चरित्र को उजागर करने का लेखक ने प्रयास किया है।   महाराणा प्रतापसिंह के चरित्र ने भारत के कोने-कोने में हजारों वीरों को स्वतंत्रता की प्रेरणा दी है। अंग्रेज साम्राज्यवाद के  खिलाफ लड़नेवाली भारतीय जनता के भी महाराणा प्रतापसिंह प्रेरणापुंज रहे है। 
     प्रस्तुत ग्रन्थ के अंत में महाराणा प्रतापसिंह के जीवनक्रम , हल्दी घाटी युद्ध , सहयोगी साथी तथा परिवार के सदस्यों की विस्तृत जानकारी स्वतंत्र परिशिष्टों के रूप में दिए गए है।  आशा है यह ग्रन्थ पाठकों को निश्चित रूप से पसंद आएगा।
     प्रस्तुत ग्रन्थ के लेखक श्री जयपालसिंह गिरासे  ''आर.सी. पटेल शिक्षण संकुल ,शिरपुर'' में अंग्रेजी विषय के अध्यापक के रुप में कार्यरत है।   अंग्रेजी विषय के शिक्षक तथा टीचर्स ट्रेनर होने के साथ -साथ आप को इतिहास में भी अत्यंत रूचि है।  राष्ट्रीय वक्ता के रूप में महाराणा प्रतापसिंह , राजस्थान के जौहर और साके , महाराणी पद्मिनी की अमर कथा , छत्रपति शिवाजी महाराज , महाराजाधिराज हर्षवर्धन, वीरमदेव और जालौर , स्वामी विवेकानंद , भारत -उत्थान ,पतन और पुनरुत्थान  आदि विषयों पर विभिन्न राज्यों में अबतक सैकड़ौ प्रकट व्याख्यान कर चुके है तथा विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में आपके लेख-कविता-व्यंग निरंतर प्रकाशित होते  रहते है। आप श्री विवेकानंद केंद्र,शिरपुर के नगरप्रमुख के रूप में कार्यरत है तथा स्वामी विवेकानंद सार्ध शति वर्ष में 'स्वामी विवेकानंद' केंद्र शिरपुर के माध्यम से सम्पूर्ण वर्षभर विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन में मुख्य भूमिका निभाई थी।  आपने भारत देश के अधिकांश राज्यों के विभिन्न ऐतिहासिक स्थलों का दौरा किया है।  अहिरानी बोलीभाषा में प्रकाशित होनेवाले  '' उबगेलवाड़ी.कॉम '' नामक ब्लॉग का निर्माण तथा संचालन  कर बोलीभाषा का संवर्धन करने में आपका विशेष योगदान रहा है। 
      आप के द्वारा लिखित  राष्ट्रगौरव महाराणा प्रतापसिंह के जीवन पर आधारित १ ग्रन्थ (मराठी भाषा ) २०१५ ई. में प्रकाशित हो चूका है तथा मराठी भाषा में एक कवितासंग्रह, अहिरानी भाषा में एक व्यंग और हिंदी में 'महाराजाधिराज हर्ष' के जीवन पर एक उपन्यास  प्रकाशनाधीन है।
      'मुग़ल-मेवाड़ संघर्ष' को 'साम्राज्यवाद के खिलाफ जनयुद्ध'  के रूप में वर्णित कर ग्रन्थ की रचना उत्तमोत्तम बनाने का प्रयास लेखक ने किया है।  अनगिनत संघर्षों के इतिहास की बखान करते समय संयत तथा मर्यादित भाषा का प्रयोग लेखक ने किया है। प्रताप  की युद्धकुशलता और सामरिक रणनीति का  अत्यंत सटीक- समर्पक भाषा में वर्णन तो किया ही है लेकिन साथ-साथ प्रताप की दूरदर्शिता , प्रजावत्सलता , सादगी , धर्मनिरपेक्षता, मानवतावादी दृष्टिकोण और प्रशासनिक गुण आदि पहलुओं पर भी सोदाहरण प्रकाश डाला है।
      प्रस्तुत ग्रन्थ का आमुख  मेवाड़ के लिए हर पीढ़ी में शत्रु से लोहा लेकर प्राणोत्सर्ग करनेवाले वीर झाला मान के वंशज तथा महाराणा मेवाड़ परिवार के अत्यंत करीबी और विश्वसनीय व्यक्तित्व श्री प्रतापसिंह झाला (तलावदा , उदयपुर) ने लिखी है।  लगभग २९ पृष्ठों की व्यापक आमुख (प्रस्तावना) में गुहिल --बाप्पा रावल के काल से अर्थात मेवाड़ राज्य की स्थापना से लेकर महाराणा प्रतापसिंह के काल तक विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं का संक्षेप में परामर्श लेकर कई तथ्यों का सप्रमाण पुष्टिकरण किया है। 
      ग्रन्थ में ४३ स्वतंत्र प्रकरण है जिनमे ४ सूचि है। ग्रन्थ की आकर्षक छपाई , निर्दोष मुद्रण और अंतरंग की रचना आदि के लिए नोशन प्रेस की टीम ने अंतर्राष्ट्रीय मानकों का अवलंब किया है।  ग्रन्थ में कुल ३३६ पृष्ट है तथा साइज़ 5.5 x 8.5  की है।  ग्रन्थ के मुखपृष्ठ का प्रकार पेपरबैक है तथा ग्लॉस लैमिनेटेड है।   ग्रन्थ के अंदर के पृष्ट 70 GSM Seshai NS प्रकार के है।  
     राष्ट्र में स्वाधीनता तथा सार्वभौमिकता को प्रेरणा निरंतर जीवित रखनेवाले महाराणा प्रतापसिंह जैसे अपराजित योद्धा की संघर्षमयी कहानी पाठक जरूर पढ़े।  यह मेरा विशेष सुझाव है।

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