पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी .के सिंह जी का देश के युवाओ से एक अपील...

(न्यूज) 
देश के वर्तमान हालात पर कटाक्ष करते हुए पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वी.के.सिंह ने कहा कि व्यवस्था का...ले अजगर की तरह है और हम इसे दूध पिला रहे हैं !


जनरल सिंह ने कहा कि हमारा देश युवा है ! युवाओं की आबादी 71 फीसदी के लगभग है !जिस तरह पतझड़के बाद वसंत आता है और पेड़ों पर नई कोंपले फूटती हैं, उसी तरह जब तक युवा आगे नहीं आएंगे, पुराने लोग नहीं जाएंगे
अत: युवा आगे बढ़कर देश के लिए काम करें !अब प्रजातंत्र संविधान से हटकर दिखाई दे रहा है ! संविधान 'बी द पीपल' के लिए बना था, लेकिन अब संविधान का बीज पीपल खो गया है
उसे वापस लाना होगा !

उन्होंने कहा कि हम चिंतन करते रहेंगे और देश पीछे खिसकता रहेगा ! ऐसा नहीं होना चाहिए !ऐसा न हो कि देश की बोली लगने लगे !सिंह ने कहा कि सबके भीतर 'देश सर्वोपरि' की भावना होनी चाहिए ! जब सबके भीतर यह भावना होगी तभी हम देश को आगे बढ़ा पाएंगे !देश की आंतरिक स्थिति पर जनरल सिंह ने कहा कि इतिहास गवाह है, जब भी हमारा पतन हुआ या विदेशी आक्रांताओं को सफलता मिली वह सिर्फ हमारी वजह से और हमारे लोगों की मदद के कारण ही मिली ! हमें सोचना होगा कि आज हमारी स्थिति क्या है ? यह सोच-विचार का समय है !

कवि की पंक्तियों को उद्धृत करते हुए कहा- वी.के. सिंह जी ने....

'व्यवस्था काले अजगर की तरह है,

हम उसे दूध पिला रहे हैं,

समूचे राष्ट्र को कैंसर हो गया है,

हम टाइफाइड की दवाई देरहे हैं !

उन्होंने कहा कि सबको डॉक्टर बनना होगा और देश को बीमारी से उबारना होगा !जनरल सिंह ने कहा देश में भ्रष्टाचार और सामाजिक असामनता सबसे बड़ी समस्या है ! इसे दूर करने की जरूरत है ! उन्होंने कहा कि वर्ष 2010 में तत्कालीन गृहमंत्री ने कहा था कि नक्सली इलाकों में सेना तैनात करनी चाहिए तब मैंने कहा कि यह आपका मामला है ! इसे आपको सुलझाना चाहिए !उन्होंने कहा कि 1990 में 50 जिलों में नक्सलवाद की समस्या थी, लेकिन अब 272 से ज्यादा जिले नक्सलवाद की गिरफ्त में हैं ! उन्होंने कहा कि इन जिलों की स्थिति वैसी ही है, जैसी 200 साल पहले थी
ऐसी स्थिति में क्या हम उम्मीद कर सकते हैं कि वहां के लोग देश के साथ चलेंगे ??

जनरल सिंह ने कहा कि हम लेंगे तभी देश की विकृतियां और कुरीतियां दूर होंगी .......जिस दिन हम संकल्प के साथ काम करेंगे, सभी चीजें ठीक हो जाएंगी ! उन्होंने कहा कि 'सपने शायद सच नहीं होते, लेकिन संकल्प कभी अधूरे नहीं रहते' ....! बकौल वी.के.सिंह "इस भ्रष्ट सरकार के खिलाफ जितना मुखर विरोध मैंने अब शुरू किया है अगर ये शुरुवात जनरल पद पर रहते हुए किया होता इण्डिया गेट पर लाठियों से पीता नहीं जाता बल्कि इन देश के लुटेरों को संसद में लाठियों से पिटवाता ! अपने इस भूल पर मुझे जिंदगी भर अफ़सोस रहेगा....

लेकिन देर से ही सही शुरुवात मैंने कर दी है अब इस लडाई को देश के युवा आगे बढ़ाएं.....................!



जय हिन्द, जय भारत !!

"पूज्यमा की अर्चना का मै एक छोटा उपकरण हु ........!

"पूज्यमा की अर्चना का मै एक छोटा उपकरण हु ........!


चाहता हु ये मातृभू ...तुझे कुछ और भी दू .......!"

मेरे परिचय के और साथ में काम करनेवाले ऐसे कई अनगिनत समाजसेवी है ; जो स्वयंप्रकाशित होकर भी विनयशील है! ....जो दधिची के भांति अपनी निष्काम अहर्निश सेवा का कार्य कर रहे है ! ......जिनमे किसी स्वार्थ का संचार नहीं होता है और न ही रहता है कोई पुब्लिसिटी स्टंट .....जिनके कभी डिजिटल बोर्ड नहीं लगते है ; न ही किसी अखबार में उनकी तस्बीरे झलकती है .....न ही किसी मंच पर जा कर ये शोभा बढ़ाते है ......! वे किसी जातिगत ;दलगत, प्रांतीय या पंथिय जैसे संकीर्ण विचारधारा के लिए नहीं अपितु राष्ट्र-निर्माण के महान कार्य में अपने आप को नीव का पत्थर बना रहे है। जो व्यक्तिपूजा से दूर रहकर विचारधारा के प्रति अपनी निष्ठां रखते है। उनके रग -रग में भारतीयता की और स्वधर्म निष्ठां की झलक मिलती है .....ह्रदय में उन्नत मानवता के संचार का साक्षात्कार मिलता है। जिंदगी के मोड़ पर कई महान ;शक्तिशाली हस्तियोंकि मुलाकात भी हुई ... अपने कर्म से और धर्म से उन हस्तियों का मन भी जित लिया ......कुछ मांगते तो बहुत कुछ पा भी लेते .....लेकिन कुछ माँगा ही नहीं ....! क्यों मांगे? हमें तो जन-मन में इश्वर का अहसास सदैव होता रहता है .......हमारी कर्मनिष्ठता को देख इश्वर सदैव मुस्कुराता नजर आता है .......अगर कुछ मांगना पड़ा भी तो केवल उस महान प्रभु से उस शक्ति का आवाहन होगा जो इस शरिर ---मन में फिर से उमंग का निर्माण करे जो नीड़ के निर्माण में काम आये।

श्री शिवदास मिटकरी (लातूर) व् निरंजन काले (पुणे) जो स्वयं उच्च विद्याविभुषित होकर भी घरसे कई साल बाहर रहकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के प्रचार एवं प्रसार के लिए जुट गए थे। जिनके सानिध्य में ही मेरी वकृत्व कला का विकास हुवा।

श्री चैतराम पवार (बारीपाडा) जो आदिवासी समाज और आदिवासी गाव का युवा .....जिसने अपनी कर्मनिष्ठा से अपने गाव का चेहरा बदल दिया। जो गाव श्री अन्ना हजारे जी के रालेगन सिद्धि जैसा स्वयंपूर्ण तथा स्वावलंबी आदर्श गाव जाना जा रहा है।

जिस साथी के साथ कार्य का आरम्भ किया था .....जो बचपन से यौवन तक के सफ़र का हमसफ़र रहा .....वह सदाशिव चव्हाण(मालपुर) आज माय होम इंडिया जैसे स्वयंसेवी प्रकल्प के माध्यम से पूर्वांचल के युवाओं को जोड़ने का .....उन्हें राष्ट्रीय प्रवाह में लेन का कार्य कर रहा है। जो युवा राष्ट्र के मूल धरा से दूर जा रहे थे .....उन्हें फिरसे प्रवाह में लेन का महान कार्य कर रहा है।

श्री विनोद पंडित जो राजस्थान के रनवास नाम के छोटे से गाव के रहनेवाले है .....गरीब ब्राह्मण है फिर भी नए लोगों को जोड़ने का .....महान कार्य कर रहे है। राजस्थान के ज्यादातर संस्थानिक उन्हें निजी रूप से जानते भी है और सन्मान भी देते है ......जो गाव-गाव में जाकर एकता के मंत्र की मंत्रणा कर रहे है। वे उस राष्ट्रीय भाव को बढ़ावा दे रहे है जो आजकल लोग भूलते जा रहे है।

श्री प्रशांत पवार (मालपुर) जी ने गौ माता को बचाने के लिए गोशाला शुरू कर निष्काम सेवा का मार्ग दिखाया। वही हमारे साथी हेमराज राजपूत जो सेवाव्रत के माध्यम से अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को बखूबी निभा रहे है।

आदरणीय प्रा .डॉ .मधुकर पांडे (नाशिक) ,प्रा .प्रकाशजी पाठक (धुले) और श्री मदनलालजी मिश्र (धुले) हमारे पथ प्रेरक रहे है। उनके साथ बिताये हर एक पल ने हम सबको कई बाते सिखाई।

आदरणीय श्री कांतिलाल टाटिया (शहादा) जी के आदिवासी क्षेत्र के अहर्निश कार्य ने कई बार प्रेरणा भी दी।

हमने भी अध्यापक का पेशा अपनाकर आदिवासी क्षेत्र को अपना कार्यस्थल चुना। जिस क्षेत्र में राष्ट्रीय जीवन की विचारधारा का फैलाव हो ......अच्छी शिक्षा का प्रसार हो .......देशभक्त नागरिकोंका निर्माण हो। विवेकानंद केंद्र के माध्यम से भी कई आयामों का आरम्भ हो चूका है।

मातृभूमि की सेवा ही हमारा लक्ष्य हो .......आओ हम भी जहा है वही से समर्थ भारत के निर्माण का कार्यारम्भ करे। जिस चीज में इश्वर का वास होता है वह कभी नश्वर नहीं होती है। आपका कार्य अगर नेक हो तो उसे सफलता जरुर मिलेगी। इदं न ममं .....जैसी भावना ही उस कार्य को श्रेष्ठ बनाएगी।

क्या किसी गुनहगार को कोई जाती या मजहब होता है ....?



मानव और दानव में फर्क होता है। जो अन्य मानव;पशु-पक्षी-जिव-जंतु तथा प्रकृति के साथ मानवता से व्यवहार करे वही मानव कहलाने का अधिकारी है ....! और जो इस मर्यादा का उल्लंघन करता है वह होता है दानव। दानव का कोई धर्म ;पंथ; प्रान्त या जाती नहीं होती है। दानव हर जगह पनपते है और अपने कुकर्मों से समाज को तकलीफ देते है। दानवों के प्रति हमें कोई भी सहानुभूति नहीं चाहिए।



हाल ही में राजधानी दिल्ली में जो शर्मनाक घटना हुई वह हैवानियत की हद को पार करनेवाली करतूत थी। उन दरिंदो को कड़ी से कड़ी सजा सुनानी चाहिए और तुरंत उसपर अमल हो ताकि कोई भी माई का लाल आगे ऐसी जुर्रत न करे। साथ सभी समाज के लोग आगे आकर माँ-बहनों की सुरक्षा के हेतु यथोचित कदम भी बढ़ाये।



दरिंदगी करनेवाले हैवानों की कोई जात या मजहब नहीं होता है। किसी माँ का एक बेटा संत तो दूसरा खलनायक भी हो सकता है। कुसंस्कारों की वजह से ऐसी दरिंदगी का निर्माण होता है। उन दरिंदों में से एक दरिंदा अक्षय ठाकुर जो बिहार से है। हमें दु :ख होता है की वह जिस कौम से है उस कौम के लोग कभी महिलाओं की रक्षा हेतु अपने प्राणों तक को न्योछावर कर देते थे। महिलाओं की रक्षा के लिए जंग भी होती थी और प्राणोत्सर्ग भी किया जाता था। जो कौम स्री को शक्ति का रूप मानकर पूजा करती आयी है आज उसी कौम से पहचान पानेवाले उस नादाँ अक्षय ने अपनी बर्बरता से शर्म से सर निचा कर दिया। हम उसकी इस घिनौनी करतूत का कड़े शब्दों के साथ निंदा करते है और सरकार से मांग भी करते है की उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। देश और दुनिया का समस्त क्षत्रिय समाज इस घटना की कड़ी आलोचना करता है।



आज ही पंजाब से हर्षवीर सिंह पंवार जी का फ़ोन आया ....उन्होंने हमें दी हिन्दू अखबार के खबर बारे में बताया। "दी हिन्दू " नामक अखबार में हमने उस खबर का जायजा लिया। जिस खबर में अक्षय का वर्णन करते हुए उसकी जाती का भी उल्लेख किया है। किसी गुनाहगार की जाती का या मजहब का वार्ता में उल्लेख करना अनुचित है। एक ठाकुर गलत राह पर चला गया तो उसकी कौम गलत नहीं हो सकती है। व्यक्ति गलत हो सकता है .......समाज नहीं। हमने उस पत्रिका के संपादक महोदय को तुरंत इ मेल करवा दिया है और उन्हें अवगत भी करवा दिया है। इस घटना के आधार पर किसी जाती के बारे में समाज में गलत सन्देश देने का यह प्रयास सम्बंधित पत्रकार या संपादक की जातिगत संकीर्णता का परिचय देता है।



निचे LINK पर CLICK कर आप उस खबर को पढ़ सकते है: http://www.thehindu.com/todays-paper/all-accused-in-delhi-rape-case-held/article4227692.ece

सारंगखेडा का विश्व प्रसिद्ध अश्व मेला: 'चेतक और कृष्णा' के नाम से दिए जायेंगे पुरस्कार ....!




गुजरात की सीमा से महज 100 कि .मी . के दुरी पर शहादा --धुले रोड पर महाराष्ट्र में सुर्यकन्या तापी नदी के किनारे बसा सारंगखेडा गाव जो कभी रावल परिवार की जागीर का स्थल था , अपने शानदार अश्व-मेला की वजह से विश्व-प्रसिद्ध है। प्राचीन समय से यहाँ भगवन एकमुखी दत्त जी का मंदिर है। श्री दत्त जयंती के पावन अवसर पर यहाँ बहुत ही सुंदर मेले का आयोजन होता आया है। विभिन्न नस्लों के घोड़ों के लिए यह मेला दुनिया भर में मशहूर है। प्राचीन समय से भारत वर्ष के राजा-महाराजा; रथी -महारथी यहाँ अपने मन-पसंद घोड़ों की खरीद के लिए आते-जाते रहे है। आज भी देश के विभिन्न प्रान्तों से घोड़ों के व्यापारी यहाँ आते है। आनेवाली 27 दिसम्बर के दिन यात्रारंभ होगा। हर रोज लाखो श्रद्धालु भगवान दत्त जी के मंदिर में दर्शन करते है और यात्रा का आनंद भी लेते है। विभिन्न राजनेता, उद्योजक, फ़िल्मी हस्तिया यहाँ घोड़े खरीदने आते-जाते रहते है। इस साल भी अभिनेता शक्ति कपूर , लावणी सम्राज्ञी सुरेखा पुणेकर, ईशा और अभिनेत्री सोनाली कुलकर्णी यहाँ महोत्सव में उपस्थिति दर्ज करने पधार रहे है। इस मेले में कृषि प्रदर्शनी; कृषि मेला; बैल-बाजार; लोककला महोत्सव; लावणी महोत्सव तथा अश्व स्पर्धा आदि का आयोजन होता है।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी का घोडा "चेतक" तथा छत्रपति शिवाजी महाराज जी घोड़ी "कृष्णा" इतिहास में प्रसिद्ध है। महाराणा प्रतापसिंह जी के जीवन में चेतक घोड़े का साथ महत्वपूर्ण रहा था। कृष्णा घोड़ी ने भी छत्रपति शिवाजी महाराज के संघर्ष के काल में अभूतपूर्व योगदान दिया था। चेतक और कृष्णा के नाम से इस साल सारंगखेडा मेले में पुरस्कार दिए जायेंगे। दौड़ में सर्वप्रथम आनेवाले अश्व को चेतक पुरस्कार--11000 रु की नगद राशी .- चेतक स्मृति चिन्ह और रोबीले पण में सर्वप्रथम आनेवाले अश्व को कृष्णा पुरस्कार--11000 रु . की नगद राशी --कृष्णा स्मृतिचिन्ह प्रदान किया जायेगा। इस मेले में दोंडाईचा संस्थान के कुंवर विक्रांत सिंह जी रावल जी के अश्व -विकास केंद्र के घोड़े भी मौजूद रहते है। जिनमे फैला-बेला नाम की सिर्फ 2.5 फिट ऊँची घोड़ों की प्रजाति ख़ास आकर्षण का केंद्र रहेगी। सारंगखेडा के भूतपूर्व संस्थानिक तथा वर्तमान उपाध्यक्ष (जि .प .नंदुरबार) श्री जयपालसिंह रावल साहब तथा सरपंच श्री चंद्रपालसिंह रावल के मार्गदर्शन में इस मेले की सफलता के लिए स्थानीय पदाधिकारीगन प्रयत्नरत है।

इस अभूतपूर्व अश्व मेले के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करे:



दिमागी संतुलन को बनाये रखे।



पर्यावरण का असंतुलित होता चक्र आज-कल इंसान के भी दिमागी पर्यावरण को घातक साबित होता नजर आ रहा है ......... और ऐसे प्रदूषित दिमाग से प्रदूषित कल्पनाये भी पैदा होकर दुनिया में अपना रंग दिखाने एवं बिखेरनी लगी है .........जैसे हाल ही में जो अमीर बने है वह फुले नहीं समां रहे है वैसे ही कुछ तत्व किसी छुट-फुट दल या संघटन के पद को पाकर हवा में उड़ने लगे है। उन्हें देख हमें उस मानसरोवर के शुभ्र-धवल हंस और एक्क्यावन तरह की उड़ाने उडनेवाले कौवे की कहानी भी याद आ जाती है। किसी सड़क या चौक में डिजिटल फ्लेक्स लगवाना या अख़बारों में छाये रहने की कवायद करना ही कुछ लोगों की जिंदगी का अहम् पैलू हो जाता है। हम उनका मुख-रस-भंग नहीं करना चाहते है फिर भी उनके आत्म-अविष्कारी पाखंड को उजागर करने से हम अपने आप को रोक नहीं पाते है।

फेसबुक पर भी कुछ अल्प-मति महोदय इतने उतावले हो जाते है की मानो औरों की अब खैर ही नहीं। कथित नशे में चूर शराबी जैसे मादकता के आनंद -सागर में गोते लगता है ......वैसे ही ये अल्प-मति महाशय अपने बाल-सुलभ विचारोंकी एवं कल्पनाओं की दुनिया में डूबकिया लगाते रहते है।

कही से भी प्रकाशित या प्रदर्शित विचारोंको चुराकर समाज-उद्धारक के रूप में पोस्ट करना तो कोई इनसे ही सीखे। उनकी नजर में तो सारे राजनितिक दल और नेता तो चोर ही है। और दुनिया में अगर कोई सत्यवादी बचे है तो सिर्फ ये ही महाशय है। लगता है जब दुनिया डूब रही थी तो नोवा की नौका में सिर्फ उन्हीके आदी-पुरुष बच पाए हो। और अब उन आदि-पुरुषों के ये चाणाक्ष वंशज दुनिया में क्रांति की पहल कर रहे है। लेकिन अगर कोई बन्दर शराब का एक घूँट पि ले तो उसकी मर्कट लीला आरम्भ हो जाती है ....वैसे ही ये सज्जन अपनी शब्द-लीला का परिचय देने लगते है। कभी-कभी मदहोशी में ये महोदय आपे के बाहर भी हो जाते है तब उन्हें रोक पाना एक मुश्किल घडी बन जाती है।

उनकी राजनितिक और जातिगत भावनाए इतनी तीव्र हो जाती है की कही ये साक्षात् ब्रह्म देव को न पूछ बैठे की अन्य लोग इस धरती पर क्यों है ? हमें कभी-कभी ऐसी आशंका भी सताने लगती है। कभी एक महोदय ने ऐसी ही टिपण्णी की थी की ,"जो अपनी जात का न हुवा वह अपने बाप का नहीं।" .....हम काफी देर तक उस की ऐसी हरकत पर हसते रहे। उसका उद्देश क्या था उसका अर्थ हमारा अंतर्मन नहीं लगा सका लेकिन हम उस निष्कर्ष तक पहुचने में कामयाब हो गए की ...उस महाशय ने उस दिन एक-दो घूँट ज्यादा ही उतार लिए होगे। वह चाहता था की फेसबुक पर जाती के बजाय  अन्य कोई बात ही ना हो। अज्ञान के अन्धकार में अंधे बनकर दिशा टटोलने का वृथा कष्ट करनेवाले उस बालक की वैचारिक क्षमता पर हमें तरस आया। और हम ने उसे समझाया भी की भाई, "क्षत्रिय केवल एक जाती-विशेष नहीं जो सिर्फ अपनी ही सोचे .....बल्कि ये एक महान व्रत है जो अपने साथ-साथ इस सृष्टि एवं चराचर का भी कल्याण सोचती है।" किसी क्षत्रिय शब्द पर बल देनेवाली सभा का एक सदस्य जिसे क्षत्रिय का अर्थ पता नहीं था और वह क्षत्रिय की बात बड़े ही आक्रमकता के साथ कर रहा था। हमने उस कथित जिज्ञासु की जिज्ञासा का हल निकलने के लिए उन्हें श्री क्षत्रिय वीर ज्योति के मंथन शिबिर में या श्री क्षत्रिय युवक संघ के किसी शिबिर में उपस्थित रहने का निमंत्रण भी दिया लेकिन अपने अहं के आत्म-तुष्टि में मग्न उस महोदय ने उस वक्त अपने भ्रमण-ध्वनी यन्त्र तक को सिमाँपरोक्ष कर के रखा।

हमारा कहने का उद्देश यह है की , सिर्फ अपनी ही परिसीमा को ही विश्व मत समझो .....हर एक नेक विचार का स्वागत करो .....और अपने आप को अगर एक महान विरासत का वंशज मानते हो तो हमें अपनी मर्यादा का उचित ख्याल भी रहे तो अच्छा होगा। हमारी भाषा-व्यवहार-आचरण से ही हमारी संस्कृति महान बनती है और विश्व के आदर के पात्र बनती है। उसे ठेंच न पहुचे। बोलने के बाद सोचने से बेहतर है की सोच कर बोलो। अपने आप को उतावले होकर आपे से बाहर मत करो। हम मध्य-युग में नहीं बल्कि वर्तमान युग में जी रहे है।

वरण गाव (जि .जलगाव ,महाराष्ट्र) के निवासी .......वारकरी संप्रदाय द्वारा दीक्षा प्राप्त बाल अनुरागी ......बाल कीर्तनकार ......जिनकी उम्र केवल 15 साल है  ......जिनकी वाणी से हजारो लोग प्रभावित होकर भजन-सुमिरन और कीर्तन के माध्यम से भक्तिरस  का  आनंद लेने लगे ......संत मीराबाई- संत ज्ञानेश्वर ---संत तुकाराम महाराज के चरित्र से प्रेरणा लेकर --अपने गुरु के मार्गदर्शन के अनुसार ज्ञान प्राप्त कर अब समाज के प्रबोधन एवं भक्ति मार्ग के प्रचार के कार्य में जुट गए -----ह .भ .प .अमरसिंह महाराज राउल जी का कीर्तन हाल ही में हमारे गाव वाठोडा में सम्पन्न हुवा! 


क्या राष्ट्र गौरव के सम्मान की चिंता सिर्फ राजपूत समुदाय को ही करनी चाहिए ?


By - Ratan Singh Bhagatpura
दिल्ली के बादशाह अकबर के साथ अपने स्वातंत्र्य संघर्ष के दौरान महाराणा प्रताप को चितौड़गढ़ छोड़कर वर्षों तक जंगलों व पहाड़ों में विस...्थापित जीवन जीना पड़ा!
उनके उसी संघर्ष से आजादी की प्रेरणा लेकर भारत के लोगों ने अंग्रेज सत्ता से मुक्ति पाई!
आज भी महाराणा प्रताप राष्ट्र में स्वाधीनता के प्रेरणा श्रोत व राष्ट्र नायक माने जाते है!
स्वाधीनता संघर्ष के लिए जब भी किसी वक्ता को कोई उदाहरण देना होता है तब राष्ट्र नायक महाराणा प्रताप का नाम सर्वोपरि लिया जाता है!
देश की राजधानी दिल्ली में इस राष्ट्र गौरव को सम्मान देने व उनकी स्मृति बनाये रखने हेतु कश्मीर गेट स्थित अंतर्राज्य बस अड्डे का नामकरण महाराणा प्रताप के नाम पर किया गया!
साथ ही अंतर्राज्य बस अड्डे के साथ लगे कुदसिया पार्क में महाराणा की एक विशाल प्रतिमा स्थापित की गई! जो उधर से आते जाते हर व्यक्ति को दिखाई देती थी! पर कश्मीरी गेट के पास बन रहे मेट्रो रेल के निर्माण के बीच में आने की वजह से उस मेट्रो रेल ने जिसने एक खास समुदाय की भावनाओं का ख्याल रखते हुए अपना निर्धारित रेल लाइन का रूट तक बदल दिया था---- ने महाराणा प्रताप की इस प्रतिमा को उखाड़ कर एक कोने में रख विस्थापित कर दिया जिसे राजस्थान व देश के अन्य भागों के कुछ राजपूत संगठनों व दिल्ली के ही एक विधायक के विरोध करने के बाद मूल जगह से दूर कुदसिया पार्क में अस्थाई चबूतरा बनाकर अस्थाई तौर पर स्थापित किया!
पर आज प्रतिमा को हटाये कई वर्ष होने के बावजूद मेट्रो रेल प्रशासन ने इस प्रतिमा को सम्मान के साथ वापस लगाने की जहमत नहीं उठाई...................!
जबकि मेरी एक आर.टी.आई. के जबाब में मेट्रो रेल ने प्रतिमा वापस लगाने की जिम्मेदारी भी लिखित में स्वीकार की है साथ ही निर्माण पूरा होने के बाद प्रतिमा सही जगह वापस स्थापित करने का वायदा भी किया पर इस कार्य के लिए मेरे द्वारा पूछी गई समय सीमा का गोलमाल उतर दिया.........!
शहर के विकास कार्यों के बीच में आने के चलते प्रतिमा हटाने में किसी को कोई आपत्ति नहीं पर उसे वापस समय पर न लगाना चिंता का विषय तो है ही साथ ही राष्ट्र गौरव के प्रतीक महाराणा प्रताप का अपमान भी है.....!.
पर अफ़सोस राष्ट्र गौरव के प्रतीक के अपमान के खिलाफ देश के कुछ राजपूत संगठनों के अलावा किसी ने कोई आवाज नहीं उठाई......!
अपने आपको राष्ट्रवादी कह प्रचारित करने वाले संगठन भी इस मुद्दे पर मौन है.....!
लज्जाजनक बात तो यह है राष्ट्रवाद का दम भरने व अपने कार्यक्रमों में महाराणा प्रताप के चित्रों का इस्तेमाल करने वाली भाजपा जो दिल्ली के स्थानीय निकाय दिल्ली नगर निगम में काबिज है और जो इस प्रतिमा के लिए उपयुक्त जगह का इंतजाम कर सकती है एकदम निष्क्रिय है......!
क्या भाजपा व राष्ट्रवादी संगठन सिर्फ अपने कार्यक्रमों में महाराणा का चित्र लगाकर और उनकी वीरता का बखान करने तक ही सीमित है ?
क्या राष्ट्र गौरव के सम्मान की चिंता सिर्फ राजपूत समुदाय को ही करनी चाहिए ?
क्या महाराणा की प्रतिमा को मेट्रो रेल की सुविधानुसार व उसकी मर्जी से पुन: स्थापित करने तक उसे कुदसिया पार्क में विस्थापित स्थित में ही छोड़ देना चाहिए ?