"पूज्यमा की अर्चना का मै एक छोटा उपकरण हु ........!
चाहता हु ये मातृभू ...तुझे कुछ और भी दू .......!"
मेरे परिचय के और साथ में काम करनेवाले ऐसे कई अनगिनत समाजसेवी है ; जो स्वयंप्रकाशित होकर भी विनयशील है! ....जो दधिची के भांति अपनी निष्काम अहर्निश सेवा का कार्य कर रहे है ! ......जिनमे किसी स्वार्थ का संचार नहीं होता है और न ही रहता है कोई पुब्लिसिटी स्टंट .....जिनके कभी डिजिटल बोर्ड नहीं लगते है ; न ही किसी अखबार में उनकी तस्बीरे झलकती है .....न ही किसी मंच पर जा कर ये शोभा बढ़ाते है ......! वे किसी जातिगत ;दलगत, प्रांतीय या पंथिय जैसे संकीर्ण विचारधारा के लिए नहीं अपितु राष्ट्र-निर्माण के महान कार्य में अपने आप को नीव का पत्थर बना रहे है। जो व्यक्तिपूजा से दूर रहकर विचारधारा के प्रति अपनी निष्ठां रखते है। उनके रग -रग में भारतीयता की और स्वधर्म निष्ठां की झलक मिलती है .....ह्रदय में उन्नत मानवता के संचार का साक्षात्कार मिलता है। जिंदगी के मोड़ पर कई महान ;शक्तिशाली हस्तियोंकि मुलाकात भी हुई ... अपने कर्म से और धर्म से उन हस्तियों का मन भी जित लिया ......कुछ मांगते तो बहुत कुछ पा भी लेते .....लेकिन कुछ माँगा ही नहीं ....! क्यों मांगे? हमें तो जन-मन में इश्वर का अहसास सदैव होता रहता है .......हमारी कर्मनिष्ठता को देख इश्वर सदैव मुस्कुराता नजर आता है .......अगर कुछ मांगना पड़ा भी तो केवल उस महान प्रभु से उस शक्ति का आवाहन होगा जो इस शरिर ---मन में फिर से उमंग का निर्माण करे जो नीड़ के निर्माण में काम आये।
श्री शिवदास मिटकरी (लातूर) व् निरंजन काले (पुणे) जो स्वयं उच्च विद्याविभुषित होकर भी घरसे कई साल बाहर रहकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के प्रचार एवं प्रसार के लिए जुट गए थे। जिनके सानिध्य में ही मेरी वकृत्व कला का विकास हुवा।
श्री चैतराम पवार (बारीपाडा) जो आदिवासी समाज और आदिवासी गाव का युवा .....जिसने अपनी कर्मनिष्ठा से अपने गाव का चेहरा बदल दिया। जो गाव श्री अन्ना हजारे जी के रालेगन सिद्धि जैसा स्वयंपूर्ण तथा स्वावलंबी आदर्श गाव जाना जा रहा है।
जिस साथी के साथ कार्य का आरम्भ किया था .....जो बचपन से यौवन तक के सफ़र का हमसफ़र रहा .....वह सदाशिव चव्हाण(मालपुर) आज माय होम इंडिया जैसे स्वयंसेवी प्रकल्प के माध्यम से पूर्वांचल के युवाओं को जोड़ने का .....उन्हें राष्ट्रीय प्रवाह में लेन का कार्य कर रहा है। जो युवा राष्ट्र के मूल धरा से दूर जा रहे थे .....उन्हें फिरसे प्रवाह में लेन का महान कार्य कर रहा है।
श्री विनोद पंडित जो राजस्थान के रनवास नाम के छोटे से गाव के रहनेवाले है .....गरीब ब्राह्मण है फिर भी नए लोगों को जोड़ने का .....महान कार्य कर रहे है। राजस्थान के ज्यादातर संस्थानिक उन्हें निजी रूप से जानते भी है और सन्मान भी देते है ......जो गाव-गाव में जाकर एकता के मंत्र की मंत्रणा कर रहे है। वे उस राष्ट्रीय भाव को बढ़ावा दे रहे है जो आजकल लोग भूलते जा रहे है।
श्री प्रशांत पवार (मालपुर) जी ने गौ माता को बचाने के लिए गोशाला शुरू कर निष्काम सेवा का मार्ग दिखाया। वही हमारे साथी हेमराज राजपूत जो सेवाव्रत के माध्यम से अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को बखूबी निभा रहे है।
आदरणीय प्रा .डॉ .मधुकर पांडे (नाशिक) ,प्रा .प्रकाशजी पाठक (धुले) और श्री मदनलालजी मिश्र (धुले) हमारे पथ प्रेरक रहे है। उनके साथ बिताये हर एक पल ने हम सबको कई बाते सिखाई।
आदरणीय श्री कांतिलाल टाटिया (शहादा) जी के आदिवासी क्षेत्र के अहर्निश कार्य ने कई बार प्रेरणा भी दी।
हमने भी अध्यापक का पेशा अपनाकर आदिवासी क्षेत्र को अपना कार्यस्थल चुना। जिस क्षेत्र में राष्ट्रीय जीवन की विचारधारा का फैलाव हो ......अच्छी शिक्षा का प्रसार हो .......देशभक्त नागरिकोंका निर्माण हो। विवेकानंद केंद्र के माध्यम से भी कई आयामों का आरम्भ हो चूका है।
मातृभूमि की सेवा ही हमारा लक्ष्य हो .......आओ हम भी जहा है वही से समर्थ भारत के निर्माण का कार्यारम्भ करे। जिस चीज में इश्वर का वास होता है वह कभी नश्वर नहीं होती है। आपका कार्य अगर नेक हो तो उसे सफलता जरुर मिलेगी। इदं न ममं .....जैसी भावना ही उस कार्य को श्रेष्ठ बनाएगी।
चाहता हु ये मातृभू ...तुझे कुछ और भी दू .......!"
मेरे परिचय के और साथ में काम करनेवाले ऐसे कई अनगिनत समाजसेवी है ; जो स्वयंप्रकाशित होकर भी विनयशील है! ....जो दधिची के भांति अपनी निष्काम अहर्निश सेवा का कार्य कर रहे है ! ......जिनमे किसी स्वार्थ का संचार नहीं होता है और न ही रहता है कोई पुब्लिसिटी स्टंट .....जिनके कभी डिजिटल बोर्ड नहीं लगते है ; न ही किसी अखबार में उनकी तस्बीरे झलकती है .....न ही किसी मंच पर जा कर ये शोभा बढ़ाते है ......! वे किसी जातिगत ;दलगत, प्रांतीय या पंथिय जैसे संकीर्ण विचारधारा के लिए नहीं अपितु राष्ट्र-निर्माण के महान कार्य में अपने आप को नीव का पत्थर बना रहे है। जो व्यक्तिपूजा से दूर रहकर विचारधारा के प्रति अपनी निष्ठां रखते है। उनके रग -रग में भारतीयता की और स्वधर्म निष्ठां की झलक मिलती है .....ह्रदय में उन्नत मानवता के संचार का साक्षात्कार मिलता है। जिंदगी के मोड़ पर कई महान ;शक्तिशाली हस्तियोंकि मुलाकात भी हुई ... अपने कर्म से और धर्म से उन हस्तियों का मन भी जित लिया ......कुछ मांगते तो बहुत कुछ पा भी लेते .....लेकिन कुछ माँगा ही नहीं ....! क्यों मांगे? हमें तो जन-मन में इश्वर का अहसास सदैव होता रहता है .......हमारी कर्मनिष्ठता को देख इश्वर सदैव मुस्कुराता नजर आता है .......अगर कुछ मांगना पड़ा भी तो केवल उस महान प्रभु से उस शक्ति का आवाहन होगा जो इस शरिर ---मन में फिर से उमंग का निर्माण करे जो नीड़ के निर्माण में काम आये।
श्री शिवदास मिटकरी (लातूर) व् निरंजन काले (पुणे) जो स्वयं उच्च विद्याविभुषित होकर भी घरसे कई साल बाहर रहकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के प्रचार एवं प्रसार के लिए जुट गए थे। जिनके सानिध्य में ही मेरी वकृत्व कला का विकास हुवा।
श्री चैतराम पवार (बारीपाडा) जो आदिवासी समाज और आदिवासी गाव का युवा .....जिसने अपनी कर्मनिष्ठा से अपने गाव का चेहरा बदल दिया। जो गाव श्री अन्ना हजारे जी के रालेगन सिद्धि जैसा स्वयंपूर्ण तथा स्वावलंबी आदर्श गाव जाना जा रहा है।
जिस साथी के साथ कार्य का आरम्भ किया था .....जो बचपन से यौवन तक के सफ़र का हमसफ़र रहा .....वह सदाशिव चव्हाण(मालपुर) आज माय होम इंडिया जैसे स्वयंसेवी प्रकल्प के माध्यम से पूर्वांचल के युवाओं को जोड़ने का .....उन्हें राष्ट्रीय प्रवाह में लेन का कार्य कर रहा है। जो युवा राष्ट्र के मूल धरा से दूर जा रहे थे .....उन्हें फिरसे प्रवाह में लेन का महान कार्य कर रहा है।
श्री विनोद पंडित जो राजस्थान के रनवास नाम के छोटे से गाव के रहनेवाले है .....गरीब ब्राह्मण है फिर भी नए लोगों को जोड़ने का .....महान कार्य कर रहे है। राजस्थान के ज्यादातर संस्थानिक उन्हें निजी रूप से जानते भी है और सन्मान भी देते है ......जो गाव-गाव में जाकर एकता के मंत्र की मंत्रणा कर रहे है। वे उस राष्ट्रीय भाव को बढ़ावा दे रहे है जो आजकल लोग भूलते जा रहे है।
श्री प्रशांत पवार (मालपुर) जी ने गौ माता को बचाने के लिए गोशाला शुरू कर निष्काम सेवा का मार्ग दिखाया। वही हमारे साथी हेमराज राजपूत जो सेवाव्रत के माध्यम से अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को बखूबी निभा रहे है।
आदरणीय प्रा .डॉ .मधुकर पांडे (नाशिक) ,प्रा .प्रकाशजी पाठक (धुले) और श्री मदनलालजी मिश्र (धुले) हमारे पथ प्रेरक रहे है। उनके साथ बिताये हर एक पल ने हम सबको कई बाते सिखाई।
आदरणीय श्री कांतिलाल टाटिया (शहादा) जी के आदिवासी क्षेत्र के अहर्निश कार्य ने कई बार प्रेरणा भी दी।
हमने भी अध्यापक का पेशा अपनाकर आदिवासी क्षेत्र को अपना कार्यस्थल चुना। जिस क्षेत्र में राष्ट्रीय जीवन की विचारधारा का फैलाव हो ......अच्छी शिक्षा का प्रसार हो .......देशभक्त नागरिकोंका निर्माण हो। विवेकानंद केंद्र के माध्यम से भी कई आयामों का आरम्भ हो चूका है।
मातृभूमि की सेवा ही हमारा लक्ष्य हो .......आओ हम भी जहा है वही से समर्थ भारत के निर्माण का कार्यारम्भ करे। जिस चीज में इश्वर का वास होता है वह कभी नश्वर नहीं होती है। आपका कार्य अगर नेक हो तो उसे सफलता जरुर मिलेगी। इदं न ममं .....जैसी भावना ही उस कार्य को श्रेष्ठ बनाएगी।
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