रोज की भाग-दौड़ की जिंदगी से कुछ पल या दिन अगर कही पसंदीदा जगह पर जाकर बिताने का सुनहरा अवसर मिलता हो तो ''ना'' कौन कहेगा..? लोग ''सफ़र'' के लिए जाते है.....सफ़र के मजे भी लेते है......तरीका और सोच अलग-अलग होती है ...हर सफ़र जिंदगी का एक यादगार लम्हा भी बन जाती है...! सफ़र हमें भी बेहद पसंद है और आज-तक की जिंदगी इस देश के विभिन्न जगहों पर घुमते ही बीती हुई है! लेकिन हर सफ़र का कही कोई ना कोई उद्देश जरुर रहा है! कोलेज के दिनों छात्र आन्दोलन से जुड़े रहने से ऐसे अवसर प्राप्त होते थे! अधिवेशन अगर प्रयाग में होता था तो उत्तर प्रदेश के कई धार्मिक,प्राकृतिक एवं ऐतिहासिक स्थल के जरुर दर्शन हो जाते थे! देश के विभिन्न कोने में जाने के कई सुनहरे अवसर हमें इस बहाने से भी मिले! कभी छुट्टी के दिनों किसी भी पसंदीदा स्थल की यात्रा का आयोजन हो जाता था! रेल के सफ़र का मजा कुछ और ही मिलता था! केवल पचीस साल की उम्र में ही भारत के चार धाम में से दो , सप्त नदिया ,बारह में से नौ ज्योतिर्लिंग के दर्शन , सात राज्य की सफ़र हम ने पूरी कर दी थी! इतिहास में विशेष रूचि होने से और संशोधन कार्य के बहाने राजस्थान और देश के अन्य प्रान्तों की ऐतिहासिक धरोहर का सफ़र करने का मौका कई बार मिला! संघटन के कार्य --विस्तार हेतु भी कई जगह हम आज-तक पहुच पाए!
हमीरगढ़ की यात्रा भी बड़ी सुन्दर और चिर-स्मरणीय रहेगी! शब्दों में इसका वर्णन कर इस यात्रा के अनुभव एवं आनंद को सिमित नहीं किया जा सकता ! राव श्री युगप्रदिप सिंहजी हमीरगढ़ जी और श्री विनोद पंडित जी के निमंत्रण से हम ने हमीरगढ़ की यात्रा का कार्यक्रम बनाया! साथी कुंवर अतुलसिंह, कुंवर अमितसिंह,कुवर संदीपसिंह और कुंवर विश्वजीत सिंह भी इस यात्रा में हमारे साथ शरीक हुए! इंडिका गाड़ी से हमारी यात्रा शिरपुर से दोपहर ठीक २ बजे से शुरू हुई ....सेंधवा,धामनोद,धार,नागदा,रतलाम,नीमच,मंदसौर से गुजरते हुए ठीक रात के १ बजे हम वीरभूमि चित्तोड़ पहुचे....वहा पूर्व नियोजन के अनुसार हम सबने विश्राम किया! प्रात: वीरभूमि चित्तोडगढ की प्राचीर से उगते सूर्यनारायण जी का दर्शन कर हम ने ठिकाना हमीरगढ़ की और प्रस्थान किया! महाराज सा राव श्री जी के निर्देश के अनुसार आदरणीय श्री विनोद जी हाय-वे पर हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे! उन्हें साथ लेकर हमारी गाड़ी हमीरगढ़ की और चल दी! सिसोदिया परिवार के रणबांकुरे ठाकुरों की इस पवित्र धरती को प्रणाम कर .....प्रात:स्मरणीय महाराणा प्रताप सिंहजी के तृतीय बंधू वीर श्री विरमदेव जी को कृतज्ञता की भावना से याद कर.....उन्ही के वंशजो की इस धरती को वंदन करने हम और हमारे साथी जा रहे थे.....मन में विलक्षण उल्हास और हर्ष की भावना पनप रही थी ......जैसे ही गाड़ी रफ़्तार से दौड़ रही थी हमारा मन इतिहास की गलियों में ;गौरवशाली विरासत की वादियों में खो रहा था! मध्ययुगीन काल का "भाखरौल'' ठिकाना जो महाराणा हमीर जी की याद में आज हमीरगढ़ नाम से जाना जाता है! हमीरगढ़ मेवाड़ के १६ उमराव और ३२ ठिकानों में से एक है! विरमदेव के वंशज होने से वे विरमदेवोत कहलाते है! वीर श्री विरमदेव जिन्होंने मुग़ल बादशाह अकबर के खिलाफ चल रहे स्वतंत्रता रणसंग्राम के कठिन समय में महाराणा के परिवार और वंशजो की रक्षा की थी! श्री विरमदेव जी के कंधोंपर यह जिम्मेदारी रख महाराणा शत्रु से दो हाथ कर रहे थे! विरमदेव जी के वही वंशज कई पीढ़ियों तक चित्तोड़ की किलेदारी भी निभाते रहे! सन १७६६ में भाखरौल की स्थापना हुई थी! सन १८२३ में इस कसबे का महाराणा हमीरसिंह ( द्वितीय ) के नाम से हमीरगढ़ रखा गया था ! राव धीरत सिंहजी हमीरगढ़ के संस्थापक थे! जिन्हें मेवाड़ राज्य में फासी की सजा देने का अधिकार; ८४ गावों की जागीरी(जो आखरी दौर में १२ गाव तक सिमित हो गयी थी) ; गढ़ चित्तोड़ की किलेदारी एवं क्षेत्र में सैनिकी तथा न्यायिक अधिकार बहाल किया गया था! हमीरगढ़ की जागीर में सेंकडो एकड़ जमीं अस्पताल;स्कुल;धर्मशाला,मकान;कचहरी बनाने .....खेती करने हेतु श्री राव सा ने दान में दी है! आज भी उनकी हवेलियों में दो स्कुल चल रही है! अपने निजी खर्चे से वे एक भव्य गोशाल भी बनवा रहे है! विद्वान्, गो-ब्राह्मन का सन्मान वहा नित्य होता आया है! इलाखे के कई मंदिरों को उन्होंने आश्रय भी दिया है! वर्तमान में भी २५० प्लाट गरीब लोगों को मकान बनवाने दान में दिए गए है! आधा गाव तो उन्ही का ही है! उनके पिताश्री स्वर्गीय राव श्री मानसिंह जी ने किसी किसान को डेढ़ एकड़ जमीं दान में दे दी थी......आज राव सा को वही जमीं औद्योगिक कार्य के लिए जरुरी थी! वह किसान विनम्रता से अपनी ज़मीन लौटने को तैयार था....लेकिन अपने वचन पर अडिग रहते हुए राव साहब ने आज के बाजार भाव के अनुसार उचित मूल्य देकर वह ज़मीन फिर से स्वीकृत की! राव साहब के इस आचरण से फिर से एकबार वह महान क्षत्रिय परंपरा पुनरुज्जीवित हुई!
आज वही गौरवशाली विरासत के रखवाले परिवार को ......श्री विरमदेव जी के वंशजो से मिलने हम जा रहे थे! जैसे ही गाव को प्रारंभ हुवा , हमारा ध्यान समाप्त हुवा और हम वास्तव में आ पहुंचे.....श्री विनोद जी हमें हमीरगढ़ गाव के बारे में बताते जा रहे थे.....हमारे साथी सुनते जा रहे थे....उनके हर एक शब्द को अपनी स्मृति में संरक्षित करते जा रहे थे! अब हमीरगढ़ के महलों के पास गाड़ी पहुच गयी .....प्राचीन ऐतिहासिक द्वार से हम ने अन्दर की और प्रवेश किया....महल के बाहर ही छोटे बन्ना श्री हर्षप्रदिप सिंहजी(राव श्री हमीरगढ़ जी के छोटे भाई) अपने साथियों के साथ हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे! सुहास्य-वदन से फूलमालाए पहनाकर उन्होंने हम सबका स्वागत किया.....हमीरगढ़ ठिकाने की आतिथ्यशिलता का एक सुन्दर और शानदार दर्शन हुवा! दरिखाने में हमारी पहली बैठक हुयी.....जहा यात्रा के बारे में चर्चा हुई.....बाद में राव श्री युगप्रदिप सिंहजी का दरिखाने में आगमन हुवा..... राव श्री युग प्रदीप सिंहजी एक विलक्षण प्रभावशाली व्यक्तित्व है! पहली नजर में ही उन्हें देखकर हर कोई प्रभावित हो जाता है! ऊँचा कद, रोबदार मुछे, और किसी मल्ल की तरह शरीर...! जन्म नाम भरतसिंह था...लेकिन पिताश्री स्व.रावत मानसिंह जी के कहने पर उनका शुभ नाम युग प्रदीप सिंह रखा गया था!
उनके साथ वार्तालाप एवं अल्पाहार का सौभाग्य प्राप्त हुवा! शिरपुर शहर एवं अन्य जगहों पर हुए विभिन्न समारोह/आन्दोलन/सामाजिक उपक्रम के बारे में उन्होंने बड़े रूचि के साथ चर्चा की! राष्ट्रीय आन्दोलन एवं संघटन की रुपरेखा के बारे में भी चर्चा हुई! राव साहब के साथ कई विषयों पर चर्चा हुई!
राजपरिवार में जन्म लेकर.....इतनी बड़ी विरासत पाकर भी एक विलक्षण सादगी,विनयशीलता,विनम्रता की झलक हमें उनके व्यक्तित्व में मिल रही थी! इसी दौरान हमीरगढ़ ठिकानो में सम्मिलित विभिन्न गावों से वहा के ग्रामीण विवाह के निमंत्रण देने दरिखाने आ रहे थे ...स्वयं राव साहब उन ग्रामिनोंका विनय के साथ स्वागत कर रहे थे...उनका मुजरा ,नजराना और विवाह के निमंत्रण का स्वीकार कर रहे थे.....उन सबको नाश्ता और चाय का आग्रह भी कर रहे थे!
आज उन्हें देर रात तक कई जगहों पर जाकर विभिन्न विवाह समारोह में सम्मिलित भी होना था! अपने खास आदमियों को निर्देश देकर हमसे विदा होकर वे चल दिए.......बाद में मनोनीत नियोजन एवं राज शिष्टाचार के अनुसार श्री विनोद जी साथ ठिकाना हमीरगढ़ की गाड़ी से माँ चामुंडा के दर्शन के लिए हम चल पड़े! गाव के बाहर जंगल में एक ऊँचे पर्वत पर बना हुवा यह ऐतिहासिक मन्दिर इस नगरी का खास आकर्षण है! श्री विनोद जी ने मंदिर के इतिहास के बारे में परिचय दिया! माँ चामुंडा के दर्शन से ह्रदय में एक पवित्र सी लहर दौड़ने का आभास हुवा! श्री विनोद ने मंदिर के पुजारी जी को हमारा परिचय दिया....उन्होंने भी मंदिर प्रशासन की और से हम सबका स्वागत किया और आशीर्वाद भी दिया! वहा से हमारा काफिला बोरडा ग्राम की और निकल पड़ा जहाँ महाराज श्री किर्तिवर्धन सिंहजी राणावत जी के विवाह के शुभ अवसर पर मनुहार की रस्म थी ! गाव के बाहर मैदान में एक विशाल पेंडोल लगा हुवा था! समारोह के यजमान एवं बोरडा का शेखावत परिवार आतिथ्य की वर्षा कर रहे थे.....! पेंडोल के एक कोने में बने मंच पर पारंपरिक एवं आधुनिक संगीत की धुन पर सुन्दर नर्तकियां अपने विलोभनीय पदन्यास से उपस्थित अतिथियोंका मनोरंजन कर रही थी.....मनुहार के प्यालो से भरे टेबल विशेष आतिथ्य कर रहे थे! जहाँ सुन्दर तरीके से रखे हुए मदिरसव के विभिन्न प्रकार इस वातावरण की गरिमा और भी बढ़ा रहे थे! रजवाड़ों के इस समारोह में भी विलक्षण विनम्रता एवं आतिथ्यशिलता हर एक चेहरे पर छाई हुई थी! जोधपुरी,जयपुरी,मेवाड़ी, मारवाड़ी पगड़िया और राजपूती पोशाख वातावरण की शोभा बढ़ा रहे थे ....चारो ओर इत्र और फूलों की खुशबु.......मधुर संगीत की धुन.... मंडरा रही थी! हमीरगढ़ राव श्री युगप्रदिप सिंहजी मंडप में उपस्थित अतिथियों से मिल रहे थे....सब से हमारा परिचय भी करवा रहे थे! जिनमे कई बड़े अफसर, राजनेता एवं विभिन्न ठिकानों के ठाकुर ,रजवाड़े थे ! उन्ही में से राजस्थान के वरिष्ठ कांग्रेस नेता , भूतपूर्व कृषि मंत्री एवं राजस्थान विधान सभा के पूर्व उपाध्यक्ष श्री देवेन्द्रसिंह जी बद्लियास जी भी थे जिन्होंने विशेष आस्था से बातचीत कर हमें और भी प्रभावित कर दिया ! महाराष्ट्र के सामाजिक रीतिरिवाजों के प्रति , समाज के प्रति विशेष आस्था से वार्तालाप कर रहे थे! वहा से श्री राव साहब अन्य जगहों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने हम से विदा लेकर चल दिए !उन्हें अपने जागीर के गावों में होनेवाली हर एक शादी में उपस्थिति दर्ज करना जरुरी होता है! भगवन गणेश जी के आशीर्वाद के बाद विरम देवोत राव का आशीर्वाद वहा मूल्यवान माना जाता है!मेवाड़ घराने का जनाना जब भी कभी बाहर जाता था तब विरम देवोत राव या उनके घराने से कोई भी व्यक्ति जब तक डोली के पास नहीं जाते थे तब-तक मेवाड़ की रानी या राजकुमारी डोली के बहार अपना कदम नहीं रखती थी! कितना अटूट है यह विश्वास....जो महाराणा प्रताप जी के समय से भाई विरम देवोत के वंशज निभाते आये है ! कैसा है यह अनोखा सन्मान....! वहा मनुहार का प्याला और खाना खाकर सबसे विदा होकर विश्राम के लिए निकले! फिर शुरू हुई चित्तोड़ की यात्रा..... जहाँ हमारी कुलस्वामिनी बाण माता जी का दर्शन जो करना था! ठिकाना हमीरगढ़ की गाड़ी को देख लोग विनय के साथ खम्मा घन्नी कर रहे थे! जनता के ह्रदय में हमीरगढ़ राव के प्रति विशेष आस्था और आदर है.....प्रेम और लगाव है....जो हम स्वयं अनुभव कर रहे थे......! किसी मंत्री को भी इतना सन्मान नहीं मिलता जो जनता हमीरगढ़ राव को देती है!
चित्तोड़ से हम हमीरगढ़ की और वापस आये ! वहां से खुली जिप में बैठकर रात्रि के विश्राम के लिए ऊँची चोटी पर स्थित हमीरगढ़ किले पर गए! वहा श्री राजमाता माईसा आनंद्कुंवर बा जी और महाराणी सौ. दिव्यकुंवर बाईसा जी का दर्शन हुवा! राजमाता जी सिरोही के झाला परिवार से है और महाराणी सा आगरिया के राठोड परिवार से ! आप के विनयशीलता ने हमें और भी प्रभावित कर दिया! राजकुमारी पयेश्वरी कुमारी और लावन्यप्रिया कुमारी अपनी मधुर मुस्कान लिए वहा खेल-कूद में व्यग्र थे! किले से राजपरिवार महलों की और चला गया! अब किले पर बाकि थे हम, हमारे साथी, श्री विनोद पंडित जी, श्री देवीलाल पुरोहित जी, श्री गोपालसिंह, श्री महेंद्रसिंह दरोगा, श्री रणजीतसिंह राठोड, श्री फिरोज मुह्हमद डायर, श्री भेरुलाल वैष्णव, श्री बाबूसिंह आदि ! यह सब साथी सभी कार्यों में एवं कृतियों में विशेष रूप से प्रवीण है और रात-दिन साये की तरह श्री राव हमीरगढ़ की सेवा में उपस्थित रहती है! जो हमेशा साथ रहते है तो उन्हें "साथी'' शब्द से पुकारना ही सार्थ और यथार्थ सिद्द होगा!
रात के अँधेरे में हम किले का सफ़र कर रहे थे! श्री विनोद पंडित जी हमें किले के हर अंगों का परिचय दे रहे थे! किले के अन्दर राव साहब की एक घोड़ी है! जो किले के भीतर मुक्त रूप से घुमती है! अगर कोई उसके सामने आ गया तो उसकी खैर नहीं! विलक्षण तेज है यह घोड़ी! पुरोहित बनना के इशारों को बखूबी समझती है! वहा श्री राव साहब की एक कुत्तिया भी मौजूद रहती है जिसका नाम है ''सूजी'' जो ग्रेट दें प्रजाति की क्रोस -ब्रीड है! किले के अंतर्द्वार से हम सबसे पहले पुरोहित देवीलाल जी अन्दर गए और उन्होंने उस अबलख घोड़ी का लगाम अपने हाथों में ले लिया! उसे बांध दिया गया फिर हम अन्दर की और टहलने लगे! इतिहास के झरोखे के बाहर जाकर भी कई चर्चाये हुई! किले पर रोमांचक सफ़र का अनुभव कर हम किलेपर बने रहे नविन महलों की और आ गए जहा हमारा रात का खाना एवं विश्राम तय था! हम सबने रात का खाना खाया! फिर एक बुर्ज पर कुर्सिय राखी गयी जहाँ देर रात तक हमारी चर्चाये जारी रही! देर रात श्री राव हमीरगढ़ जी किसी देहात से वापस लौट आये ....वे अपने महलों में न जाकर सीधे किले पर आ गए.....वहा हम फिर बातचीत करने बैठ गए! हम सुबह जल्दी लौटने वाले है तो चर्चा करने के लिए वे थके होने के बावजूद भी किले पर आ गए थे! वे भी हमारे साथ किले पर बने महल में ही सो गए!
प्रात: दूर के मंदिर की घंटी बज रही थी! महाशिवरात्रि का दिन था! भगवन एकलिंग जी का नामस्मरण कर हम तैयार हो गए! एक बार फिर श्री राव हमीरगढ़ के साथ विशेष वार्तालाप को प्रारंभ हुवा....जिस वार्तालाप में श्री राव साहब जी ने हमें हमीरगढ़ के भुत, वर्तमान तथा भविष्यत् के बारे में जानकारी दी! हमारे विभिन्न कार्यक्रमों के अल्बम देखकर वे प्रभावित हो गए! शिरपुर आकर हमारे कार्यक्रम में जरुर उपस्थित रहने की इच्छा भी उन्होंने प्रकट की! भविष्य में सामाजिक संघटन के माध्यम से रचनात्मक समाज के नवनिर्माण के लिए अपने अनमोल विचारों के साथ हमें मार्गदर्शन भी किया तथा इस नेक कार्य के लिए अपने आशीर्वाद के साथ सहयोग का भी वादा किया! श्री राव साहब हमीरगढ़ वन सुरक्षा समिती के अध्यक्ष भी है! उन्ही की पहल से १०० हिरन हमीरगढ़ संक्चुरी में छोड़े गए है! आगे चल कर यह संक्चुरी विकसित हो और देश-विदेश के यात्री वहा की सफ़र का आनंद प्राप्त करे यह उनका सपना है! जिसे पूरा करने के लिए वे निरंतर कोशिश भी कर रहे है! उन्होंने हमें वहा के जंगल की भी सफ़र करवाई ! बाद में हमीरगढ़ संस्थान के विभिन्न हथियार भी हम ने देखे...! छोटे बन्ना सा जी ने हमें विभिन्न हथियारों का परिचय भी दिया! सामंती राजपरिवार में जन्म लेकर भी किसी आम नागरिक की तरह वे अपने कम में व्यग्र रहते है! निरंतर दूर-दूर के गावों की यात्राओं के, समारोह की व्यस्तता के बावजूद भी अपने कारोबार---खेती के लिए भी वक्त निकाल लेते है! पुरखों से प्राप्त विरासत में मिले महल और किले पर हेरिटेज पार्क बनाकर वहा देश-विदेश के टूरिस्ट को आकर्षित करने की भी उनकी योजना है! एन.जी.ओ संस्था के द्वारा वे अपने जागीर के गावों के गरीब परिवार, बालक एवं महिलाओं के लिए विभिन्न रूप से कार्य आरम्भ करने वे चाहते है! अपने महल;गाडिया, घोड़े शाही शान के बावजूद भी विनयशीलता और सेवाभाव से उनके व्यक्तित्व का और भी गौरव बढ़ता है! हर रोज प्रात: समय में जागकर महल में स्थित कुलदेवी बाण माता जी की शाही तरीके से पूजा अर्चना नित्य होती है! पूजा के बाद घुड़सवारी, १००० डिप्स, रनिंग आदि कसरत कर अपने स्वास्थ्य को मजबूत रखते है! बाद में दरिखाने में उपस्थिति देकर लोगों से मिलना होता है! उनकी हर सुबह ऐसे ही प्रारंभ होती है!
दोपहर में श्री राव साहब के साथ शिवरात्रि का पवित्र भोज का लाभ लेकर हम शिरपुर के लिए चल दिए! हमें विदाई देने के लिए स्वयं श्री राव साहब , छोटे बन्ना श्री हर्षप्रदीप सिंहजी ,श्री विनोद जी और सारे साथी मौजूद थे! हमीरगढ़ के महलों से बाहर निकलते वक्त वहा की अविस्मरनीय यादे अपने ह्रदय में साथ लिए हम शिरपुर की और चल पड़े.....! गाड़ी के शीशे में महलों के पास खड़े श्री रावसाहब का अलविदा कहता हाथ दिखाई दे रहा था! वह दो दिन मानो दस साल जैसे लग रहे थे! आँखे उनकी प्रतिमा को आश्वस्त कर रहे थे....हम फिर एकबार आयेंगे.....! अलविदा....हमीरगढ़....!!!
(c) लेखक: श्री. ठा.जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे (सिसोदिया)
५०, विद्याविहार कोलोनी, शिरपुर ,महाराष्ट्र
मो. ०९४२२७८८७४०