किसी भाई ने आरक्षण के मसले पर तमाम समाज को एक साथ आने की और व्यवस्था के खिलाफ कड़ी जंग का ऐलान करने की बात फेसबुक पर हाल ही में कही है.....हम ने उस भाई के साथ अभी-अभी ही चर्चा की और उन्हें समझाने की कोशिश भी की! क्या रस्ते पर उतर कर सरकार या व्यवस्था से जंग का ऐलान कर यह संभव है? रस्ते पर उतर कर या लम्बा-चौड़ा भाषण देकर कोई क्रांतिकारी नहीं हो जाता है! हमारी बाते कुछ भी नहीं कर सकती है उल्टा आज की पीढ़ी के दरम्यान अराजकता का निर्माण कर सकती है और हमारी कौम की प्रतिमा राष्ट्रीय स्तर पर ख़राब कर सकती है! किसी भी प्रयास को आजकल सरकार के द्वारा कुचल दिया जाता है! समाज को भड़काकर कोई नेता भी बन जाता है या सत्ता की मंझिल तक का सफ़र भी कर लेता है और बाद में समाज को भी भूल जाता है! हालात ख़राब होते है आम आदमी के! वह कही का नहीं रहता....! किसी भी उपद्रव का पहला शिकार होता है आम आदमी.....! समाज के झंडे तले अगर किसी मोर्चा का गठन भी होता है तो उसमे हमारा नुकसान ही नुकसान होता है! जातिगत विद्वेष की भावना झेलनी पड़ती है आम आदमी को ही! या सबसे पहले कानून का शिकंजा भी आम आदमी के गले में ही फसाया जाता है! किसी पार्टी या अपने समाज के नेता को केवल दोष देकर या फिर फिर नए संघटन बना -बना कर यह कार्य संभव नहीं होगा.......!
सबसे पहले हमारे लोगों के बिच एक अदम्य विश्वास का निर्माण करना होगा !जो विश्वास उन्हें कार्यरत रहने की प्रेरणा देगा.....भिकारी लोग झगड़ते है....निर्बल और कायर लोग कटोरा लेकर किसी से उम्मीद रखते है.......अगर हम खुद को शेर मानते है तो हमें एक दुसरे की सहायता कर .....अपनी निजी आदते बदलकर.......स्वयंपूर्ण होकर फिर से आदर्श विश्व का निर्माण करना होगा......व्यवस्था को बदलने से पहले हम खुद बदले.........इस दिशा में कदम रखने के लिए कई तरीके है जो समाज को कई बार बता चूका हु.....सिर्फ राजनीती या सत्ता ही हमारा लक्ष नहीं हो सकता....सत्ता के लिए धर्म की सहायता लेनेवाले भी सत्ता पर जाकर अपना धर्म भूल जाते है......सत्ता एक विष के सामान है.....जो कलि की तरह व्यक्ति को पद्भ्रष्ट भी कर देती है ! क्या अम्बानी ने झगड़ने की बाते की थी? या आरक्षण के लिए वह रस्ते पर उतरे थे? आज अम्बानी कई लाख लोगों के घर चलते है...! अम्बानी जैसी कई हस्तिया इस देश में हर जगह हर समाज में मौजूद है.....! हमारे सामने मारवाड़ी,सिन्धी और सिख समाज के अच्छे उदाहरण है जिन्होंने सामूहिक योगदान से अपने ही हर एक भाई की सहायता कर उसे खड़ा किया है!आज इस कौम के लोग हर क्षेत्र में प्रभावशाली है ! हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए! जो आमिर है वह अपनी ही मस्ती में और शान में खोया है उसे अपने ही भूके-प्यासे भाई की तड़प नहीं दिखती! जो नेता है उसे सिर्फ अपने ही चंद रिश्तेदारोंकी फ़िक्र है......उसकी नजर में तो समाज को मारो गोली....! कोई भाई इस दिशा में कदम भी रखता है तो समाज के ही कुछ स्वार्थी तत्व उसके अहित के लिए शक्ति लगते है! क्या हम उद्योग के विश्व का निर्माण कर अपने आर्थिक हालत पर हल नहीं निकल सकते है? क्या हम शिक्षा के आधुनिक शिखर को प्राप्त कर अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकते है? क्या हम अपने ही निर्बल भाई का सहारा देकर उसमे फिर से स्वाभिमान से जीने की उम्मीद नहीं दे सकते है? संयुक्त कुटुंब व्यवस्था कई समस्यओंका हल है! आज वह व्यवस्था डूबने की कगार पर खड़ी है !!! हम अपने ही महान मुल्योंको भुलाने लगे है!पुना-मुंबई या दिल्ली-बेन्गालोरू की चकाचुन्ध में रहने वाले युवा आजकल अपने माँ-बाप तक को घर से बाहर निकालने लगे है....वो समाज की भलाई में क्या योगदान दे सकते है....? जो सिर्फ गाड़ी-बंगला-पार्टी और दौलत के पीछे भाग रहा हो राष्ट्र का निर्माण कैसे कर सकता है.......पैसा जरुर प्राप्त करो....लेकिन उसका विनियोग ऐसा करो की तुम्हारी आनेवाली पुश्ते उस धन-राशी का सदुपयोग करे....और न की दुरुपयोग.....! पैसा केवल साधन हो सकता है.......साध्य नहीं! जो लोग अपने आत्मविश्वास को खो बैठते है वे लोग नीड़ का निर्माण नहीं कर सकते है......जरुरी है की अपने समाज के खोये हुए आत्मविश्वास को जगाओ........फिर से भेदभाव भुलाकर उदार दिल से हमें फिर से एक ही मंच पर एक ही सूत्र में समाज को बाँधने के लिए एक होना होगा! आपसी सहयोग ....सामाजिक राशी....सामाजिक शक्तिकेंद्र का निर्माण करना होगा.....जो केंद्र अस्थिपंजर समाज को फिर से शक्तिशाली बननेकी उम्मीद देगा......और भविष्य के अंधकार में खोनेवाले हमारे भाई-बहनोंको फिर से प्रकाश की किरण दिखायेगा.....आनंद----उल्हास का निर्माण फिर से होगा! जब फेसबुक जैसे साधन हमारे पास है तो उसका विनियोग नफरत फ़ैलाने के लिए नहीं अपितु चेतना जगाने के लिए करो.....उम्मीद के निर्माण के लिए करो....एक दुसरे के मार्गदर्शन के लिए करो! ख्याल रहे की किसी की निंदा से हमारा भला नहीं हो सकता ........हम ही एक आशा की ऐसी किरण बने जिसकी रौशनी इस जगत में जगमगाए.....जो पथ-दर्शी बने जो अँधेरे को टटोल रही है!
आपका हितैषी: जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे(शिरपुर)
सबसे पहले हमारे लोगों के बिच एक अदम्य विश्वास का निर्माण करना होगा !जो विश्वास उन्हें कार्यरत रहने की प्रेरणा देगा.....भिकारी लोग झगड़ते है....निर्बल और कायर लोग कटोरा लेकर किसी से उम्मीद रखते है.......अगर हम खुद को शेर मानते है तो हमें एक दुसरे की सहायता कर .....अपनी निजी आदते बदलकर.......स्वयंपूर्ण होकर फिर से आदर्श विश्व का निर्माण करना होगा......व्यवस्था को बदलने से पहले हम खुद बदले.........इस दिशा में कदम रखने के लिए कई तरीके है जो समाज को कई बार बता चूका हु.....सिर्फ राजनीती या सत्ता ही हमारा लक्ष नहीं हो सकता....सत्ता के लिए धर्म की सहायता लेनेवाले भी सत्ता पर जाकर अपना धर्म भूल जाते है......सत्ता एक विष के सामान है.....जो कलि की तरह व्यक्ति को पद्भ्रष्ट भी कर देती है ! क्या अम्बानी ने झगड़ने की बाते की थी? या आरक्षण के लिए वह रस्ते पर उतरे थे? आज अम्बानी कई लाख लोगों के घर चलते है...! अम्बानी जैसी कई हस्तिया इस देश में हर जगह हर समाज में मौजूद है.....! हमारे सामने मारवाड़ी,सिन्धी और सिख समाज के अच्छे उदाहरण है जिन्होंने सामूहिक योगदान से अपने ही हर एक भाई की सहायता कर उसे खड़ा किया है!आज इस कौम के लोग हर क्षेत्र में प्रभावशाली है ! हमें उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए! जो आमिर है वह अपनी ही मस्ती में और शान में खोया है उसे अपने ही भूके-प्यासे भाई की तड़प नहीं दिखती! जो नेता है उसे सिर्फ अपने ही चंद रिश्तेदारोंकी फ़िक्र है......उसकी नजर में तो समाज को मारो गोली....! कोई भाई इस दिशा में कदम भी रखता है तो समाज के ही कुछ स्वार्थी तत्व उसके अहित के लिए शक्ति लगते है! क्या हम उद्योग के विश्व का निर्माण कर अपने आर्थिक हालत पर हल नहीं निकल सकते है? क्या हम शिक्षा के आधुनिक शिखर को प्राप्त कर अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकते है? क्या हम अपने ही निर्बल भाई का सहारा देकर उसमे फिर से स्वाभिमान से जीने की उम्मीद नहीं दे सकते है? संयुक्त कुटुंब व्यवस्था कई समस्यओंका हल है! आज वह व्यवस्था डूबने की कगार पर खड़ी है !!! हम अपने ही महान मुल्योंको भुलाने लगे है!पुना-मुंबई या दिल्ली-बेन्गालोरू की चकाचुन्ध में रहने वाले युवा आजकल अपने माँ-बाप तक को घर से बाहर निकालने लगे है....वो समाज की भलाई में क्या योगदान दे सकते है....? जो सिर्फ गाड़ी-बंगला-पार्टी और दौलत के पीछे भाग रहा हो राष्ट्र का निर्माण कैसे कर सकता है.......पैसा जरुर प्राप्त करो....लेकिन उसका विनियोग ऐसा करो की तुम्हारी आनेवाली पुश्ते उस धन-राशी का सदुपयोग करे....और न की दुरुपयोग.....! पैसा केवल साधन हो सकता है.......साध्य नहीं! जो लोग अपने आत्मविश्वास को खो बैठते है वे लोग नीड़ का निर्माण नहीं कर सकते है......जरुरी है की अपने समाज के खोये हुए आत्मविश्वास को जगाओ........फिर से भेदभाव भुलाकर उदार दिल से हमें फिर से एक ही मंच पर एक ही सूत्र में समाज को बाँधने के लिए एक होना होगा! आपसी सहयोग ....सामाजिक राशी....सामाजिक शक्तिकेंद्र का निर्माण करना होगा.....जो केंद्र अस्थिपंजर समाज को फिर से शक्तिशाली बननेकी उम्मीद देगा......और भविष्य के अंधकार में खोनेवाले हमारे भाई-बहनोंको फिर से प्रकाश की किरण दिखायेगा.....आनंद----उल्हास का निर्माण फिर से होगा! जब फेसबुक जैसे साधन हमारे पास है तो उसका विनियोग नफरत फ़ैलाने के लिए नहीं अपितु चेतना जगाने के लिए करो.....उम्मीद के निर्माण के लिए करो....एक दुसरे के मार्गदर्शन के लिए करो! ख्याल रहे की किसी की निंदा से हमारा भला नहीं हो सकता ........हम ही एक आशा की ऐसी किरण बने जिसकी रौशनी इस जगत में जगमगाए.....जो पथ-दर्शी बने जो अँधेरे को टटोल रही है!
आपका हितैषी: जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे(शिरपुर)
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