सारंगखेडा का विश्व प्रसिद्ध अश्व मेला शुरू ......


गुजरात कि सीमा से महज सौ किलोमीटर दूर पर शहादा --धुले रोड पर महाराष्ट्र में सूर्यकन्या तापी नदी के किनारे सारंगखेडा नाम का गाव है जो मध्ययुगीन काल से कभी रावल परिवार की जागीर का स्थल था। यहाँ मध्यकाल से दत्त जयंती के  पर पावन अवसर पर एक विशाल मेले का आयोजन होता है। इस मेले का एक खास आकर्षण होता है यहाँ का विश्व प्रसिद्ध अश्व मेला ......... .
यहाँ दूर -दूर से अश्वप्रेमी अश्व खरीदने के लिए  आते है ;  राजपूत--मराठा --जाट --सिख ---मुग़ल शासकोने यहाँ से मध्यकाल के समय में  घोड़ो कि खरीदारी कि थी ;प्राचीन समय से यहाँ भगवन एकमुखी दत्त जी का मंदिर है। श्री दत्त जयंती के पावन अवसर पर यहाँ बहुत ही सुंदर मेले का आयोजन होता आया है। विभिन्न नस्लों के घोड़ों के लिए यह मेला दुनिया भर में मशहूर है। प्राचीन समय से भारत वर्ष के राजा-महाराजा; रथी -महारथी यहाँ अपने मन-पसंद घोड़ों की खरीद के लिए आते-जाते रहे है। आज भी देश के विभिन्न प्रान्तों से घोड़ों के व्यापारी यहाँ आते है। 16 दिसम्बर के दिन यात्रारंभ होगा। हर रोज लाखो श्रद्धालु भगवान दत्त जी के मंदिर में दर्शन करते है और यात्रा का आनंद भी लेते है। विभिन्न राजनेता, उद्योजक, फ़िल्मी हस्तिया यहाँ घोड़े खरीदने आते-जाते रहते है।  आज भी देश के कोने-कोने से कई राजपरिवार ; अश्वप्रेमी लोग ; फिल्मी सितारे ; राजनेता यहाँ अपने मनपसंद घोड़ों कि तलाश में आते रहते है।
 इस मेले में कृषि प्रदर्शनी; कृषि मेला; बैल-बाजार; लोककला महोत्सव; लावणी महोत्सव तथा अश्व स्पर्धा आदि का आयोजन होता है।
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी का घोडा "चेतक" तथा छत्रपति शिवाजी महाराज जी घोड़ी "कृष्णा" इतिहास में प्रसिद्ध है। महाराणा प्रतापसिंह जी के जीवन में चेतक घोड़े का साथ महत्वपूर्ण रहा था। कृष्णा घोड़ी ने भी छत्रपति शिवाजी महाराज के संघर्ष के काल में अभूतपूर्व योगदान दिया था। चेतक और कृष्णा के नाम से  सारंगखेडा मेले में पुरस्कार दिए जाते है ।  दौड़ में सर्वप्रथम आनेवाले अश्व को चेतक पुरस्कार--11000 रु की नगद राशी .- चेतक स्मृति चिन्ह और रोबीले पण में सर्वप्रथम आनेवाले अश्व को कृष्णा पुरस्कार--11000 रु . की नगद राशी --कृष्णा स्मृतिचिन्ह प्रदान किया जायेगा। इस मेले में दोंडाईचा संस्थान के कुंवर विक्रांतसिंह जी रावल  के अश्व -विकास केंद्र के घोड़े भी मौजूद रहते है। जिनमे फैला-बेला नाम की सिर्फ 2.5 फिट ऊँची घोड़ों की प्रजाति ख़ास आकर्षण का केंद्र रहेगी। सारंगखेडा के भूतपूर्व संस्थानिक तथा वर्तमान  उपाध्यक्ष ( जि .प .नंदुरबार) श्री जयपालसिंह रावल साहब तथा सरपंच श्री चंद्रपालसिंह रावल के मार्गदर्शन में इस मेले की सफलता के लिए स्थानीय पदाधिकारीगन प्रयत्नरत है।

इस अभूतपूर्व अश्व मेले के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करे:
http://www.youtube.com/watch?v=DTi4isKWU-w

http://www.youtube.com/watch?v=CcDlcXaX_hk



क्या है जोधा बाई की एतिहासिक सच्चाई ??

क्या है जोधा बाई  की एतिहासिक सच्चाई ??
आदि-काल से क्षत्रियो के राजनीतिक शत्रु उनके प्रभुत्वता  को चुनौती  देते  आये है !किन्तु क्षत्रिय अपने क्षात्र-धर्म के पालन से उन सभी षड्यंत्रों का मुकाबला सफलता पूर्वक करते रहे है !कभी कश्यप ऋषि और दिति के वंशजो जिन्हें कालांतर के दैत्य या राक्षस नाम दिया गया था ,क्षत्रियो से सत्ता हथियाने के लिए भिन्न भिन्न प्रकार से आडम्बर और कुचक्रो को रचते रहे  ! और कुरुक्षेत्र के महाभारत में जबकि  अधिकांश ज्ञानवान क्षत्रियों ने एक साथ वीरगति प्राप्त कर ली ,उसके बाद से ही हमारे इतिहास को केवल कलम के बल पर दूषित कर दिया गया !इतिहास में भरसक प्रयास किया गया की उसमे हमारे शत्रुओं को महिमामंडित  किया जाये और क्षत्रिय गौरव को नष्ट किया जाये   ! किन्तु जिस प्रकार किसे  हीरे  के ऊपर लाख  धूल डालो उसकी चमक फीकी नहीं पड़ती ठीक वैसे ही ,क्षत्रिय गौरव उस दूषित किये गए इतिहास से भी अपनी चमक  बिखेरता रहा !फिर धार्मिक आडम्बरो के जरिये क्षत्रियो को प्रथम स्थान से दुसरे स्थान पर धकेलने का कुचक्र प्रारम्भ  हुआ ,जिसमे आंशिक सफलता भी मिली,,,,किन्तु क्षत्रियों की राज्य शक्ति को कमजोर करने के लिए उनकी साधना पद्दति को भ्रष्ट करना जरुरी समझा गया इसिलिय्रे अधर्म को धर्म बनाकर पेश किया गया !सात्विक यज्ञों के स्थान पर कर्म्-कांडो और ढोंग को प्रश्रय दिया गया !इसके विरोध में क्षत्रिय राजकुमारों द्वारा धार्मिक आन्दोलन चलाये गए जिन्हें धर्मद्रोही पंडा-वाद ने धर्म-विरोधी घोषित कर दिया ,,इस कारण इन क्षत्रिय राजकुमारों के अनुयायियों ने नए पन्थो का जन्म दिया जो आज अनेक नामो से धर्म कहलाते है ,,,,,ये नए धर्म चूँकि केवल एक महान व्यक्ति की विचारधारा के समर्थक रह गए और मूल क्षात्र-धर्म से दूर होगये, इस कारण कालांतर में यह भी अपने लक्ष्य से भटक कर स्वयं ढोंग और आडम्बर से ग्रषित होगये ! इसके बाद इन्ही धर्मो में से इस्लाम ने बाकी धर्मो को नष्ट करने हेतु तलवार का सहारा लिया ,,,इस कारण क्षत्रियों ने इसका जम कर विरोध किया और इस्लाम के समर्थको ने राज्य सत्ता को धर्म विस्तार के लिए आसान तरीका समझ ,आदिकाल से स्थापित क्षत्रिय साम्राज्यों को ढहाना शुरू कर दिया ! क्षत्रियों ने शस्त्र तकनिकी को तत्कालीन वैज्ञानिक समुदाय यानि ब्राह्मणों के भरोसे  छोड़ दिया तो, परिणाम हुआ क्षत्रिय तोप के आगे तलवारों से लड़ते रहे ,,,,,चंगेज खान से लेकर बाबर तक तो सिर्फ भारत को लूटते रहे किन्तु बाबर ने भारत में अपना स्थायी साम्राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली ! किन्तु भारत में पहले ही आचुके अफगानों ने हुमायु से सत्ता छीन ली और  हुमायूँ दर-दर की ठोकरे खाता हुआ हुआ शरण के लिए अमरकोट के राजपूत राजा के यहाँ पहुंचा !अपनी गर्भवती बेगम को राजपूतों की शरण में छोड़ ,अपने राज्य को पुनः प्राप्त करने की तैयारियों में जुट गया !वहीँ  जलालुद्धीनका जन्म हुआ और १३ वर्ष तक उसकी परवरिश राजपूत परिवार में हुयी ! हुमायूँ जब बादशाह बना तब पर्शिया से कुछ परिवारों को अपने साथ भारत लाया था ! जो की मूलरूप से मीनाकारी का कार्य किया करते थे !उनके परिवारों में लड़कियों के विवाह का चलन नहीं था ,,इस कारण उनके कुछ परिवार अमरकोट और उसके आसपास  कुछ पर्शियन लड़कियाँ दासियों का कार्य करती थी! इन्ही में से कुछ दासिया जोधपुर राजपरिवार में भी रहने लगी ! जोधपुर की राजकुमारी की एक निजी दासी जो पर्शियन थी ,जब उसके एक कन्या का जन्म हुआ तब वह रोने लगी की इस बच्ची का कोई भविष्य नहीं है 1 क्योंकि इसका विवाह नहीं होगा ,तब राजकुमारी ने उसे वचन दिया कि मै इसका विवाह किसी राजपरिवार में करूंगी !जब जोधपुर कि राजकुमारी जो कि आमेर के राजा भारमल की रानी बनी ,ने प्रथम मिलन की रात्रि को ही राजा भारमल से वचन लेलिया कि हरखू को मैंने अपनी धर्म बेटी बनाया हुआ है और मै चाहती हूँ कि उसका विवाह किसी राजपरिवार में हो ,,राजा भारमल ने जोधपुर की राजकुमारी को वचन देदिया कि वह उसका विवाह किसी राजपरिवार में कर देंगे ! किन्तु यह आसान कार्य नहीं था क्योंकि किसी भी राजपूत परिवार ने हरखू से विवाह करना उचित नहीं समझा इस कारण उसकी उम्र  काफी होगई! किसी भी राजपरिवार तो दूर साधारण गैर राजपूत हिन्दू परिवार ने भी तत्कालीन परिस्थितियों में हरखू से विवाह करने से मना कर दिया ,,इसकारण रानी का राजा भारमल से अपना वचन नहीं निभाने का उलहना असहनीय होता जारहा था ! इससे पूर्व जलालुद्धीन अकबर जब बादशाह बना तब ढूँढार (आमेर) में नरुकाओं का विद्रोह चल रहा था, इस कारण राजा भारमल ने बाध्य होकर अकबर से संधि करली थी, ताकि नरुकाओं एवं अन्य सरदारों के विद्रोह  को दबाया जासके !और अकबर से राजा भारमल की इस संधि में कोई वैवाहिक शर्त जैसा कि आज दिखाने का प्रयास किया जाता है, कुछ नहीं था !जब अकबर अजमेर शरीफ की यात्रा के लिए जा रहा था,तो रास्ते में राजा भारमल जी ने शिष्टाचार भेट कि तो वह कुछ चिंतित थे ,अकबर ने भारमल जी से चिंता का कारण जाना तो उन्होंने हरखू के के विवाह से सम्बंधित बात सविस्तार बतायी ,,अकबर ने पूंछा कि "महाराज उसका विवाह हिन्दू रीती से होगा या मुश्लिम रीति से?" भारमल जी ने बताया कि हिन्दू रीति से तब अकबर ने पूंछा कि कन्यादान कौन करेगा ? भारमल जी ने कहा कि हरखू मेरी  धर्म पुत्री है और इस नाते कन्यादान मै ही करूँगा ! तब बादशाह अकबर ने कहा कि "मै  राजपूत नहीं हूँ, किन्तु मेरा  जन्म और परवरिश राजपूत परिवार में हुयी थी ,,,ठीक उसी तरह जैसे हरखू राजपूत नहीं है , किन्तु उसका भी जन्म और परवरिश भी राजपूत परिवार में हुयी है " अतः यदि आपको उसके पिता बनाने में कोई ऐतराज नहीं तो मुझे उसके साथ विवाह करने में भी कोई ऐतराज नहीं है ! इसके बाद हरखू का विवाह अकबर के साथ किया गया ! यह कोई शर्मिंदगी या बदनामी की बात नहीं थी ,बल्कि राजा भारमल की बुद्धिमानी और धर्म और नारी जाति के प्रति सम्मान था,जिसकी सर्वत्र प्रशंसा की गयी,खासतोर पर पर्शिया के धर्म गुरुओं ने राजा भारमल को पत्र लिखकर एक पर्शिया लड़की के जीवन को संवारने के लिए  प्रशंसा पत्र भेजा !सिक्खों के गुरुओं ने भी इसकी प्रशंसा की और राजा भारमल की बुद्धिमानी के लिए साधुवाद दिया ! यह कहना गलत है कि यह हरखू जीवन भर हिन्दू रही,, ,वह कभी भी हिन्दू नहीं थी ,,,हां जब वह आमेर में रहती थी तब आमेर राजपरिवार के इष्ट देव श्री गोविन्देव जी की पूजा किया करती थी, इस कारण वह गोविन्द देव जी की पुजारी जरुर थी वरन तो वह फिर कभी भी जीवन में हरखू नहीं कहलाई उसका नाम मरियम बेगम पड़ गया और उसे बाकायदा इस्लाम रीति से ही कब्र में दफनाया गया था !जहाँगीर उसी मरियम उज्जमानी का बेटा था  ! जोधा नाम से जो प्रसिद्द थी वह जोधपुर की एक दासिपुत्री जगत गुसाईं (जो कि हरखू के ही भाई कि बेटी थी), जिसका निकाह जहाँगीर के साथ हुआ था और शाहजहाँ की माँ थी ,वह चूँकि जोधपुर से सम्बंधित थी और उसका कन्यादान मोटा राजा उदय सिंह जी ने किया था , इस कारण जोधा भी कहलाती थी ! रही बात आज लोग उस जगत गुसाईं उर्फ़ जोधा को अकबर से क्यों जोड़ बैठे ??तो यह तो सिर्फ फ़िल्मी जगत की उपज है ,जब पहली बार हरखू को जोधा बाई बना दिया गया, वह थी मुगले-आजम फिल्म ,,उस समय फिल्मों को कोई गंभीरता से नहीं लेता था !इस कारण फिल्म की प्रसिद्धि के बाद जोधा का नाम अकबर से जुड़ गया !और इस फिल्म के बाद जो छोटे मोटे इतिहासकार हुए उन्होंने भी अकबर के साथ जोधा का नाम जोड़ने का ही दुष्कृत्य किया है ! और रही सही कसर पूरी कर दी आशुतोष गोवोरकर ने "जोधा-अकबर" नाम से फिल्म बनाकर !अब इसे आगे बढ़ा  रही है ,नारी के नाम पर धब्बा ,एकता कपूर जो एक बदनाम सीरियल को जी टी वी पर प्रसारित लगातार प्रसारित किये जारही है ! अब हम बात करते है कि यह सब अनायास हुआ या किसी साजिश के जरिये ???? बहुत सी डीबेटों में हम से यह भी पूंछा गया गया कि आखिर फिल्म ,टी.वी.और मिडिया ,शासन-प्रशासन और तमाम प्रचार प्रसार के साधन राजपूत -क्षत्रिय संस्कृति के विरोधी क्यों होगये ?? इसका बिलकुल साफ-साफ उत्तर है कि देश के विभाजन से पूर्व तक लगभग सभी स्थानीय निकाय या शासन तंत्र पर क्षत्रियों का ही अधिकार था और यदि राजपूत-क्षत्रियों की छवि को धूमिल नहीं किया जाता तो, हमसे जिन लोगो ने सत्ता केवल झूंठ और लोगो को सब्जबाग दिखाकर प्राप्त की थी, उसे शीघ्र ही क्षत्रिय समाज पुनः वापिस लेलता !और होसकता है कि राष्ट्र को आज तक के ये दुर्दिन देखने ही नहीं पड़ते !इसलिए राजनीतिक षड़यंत्र के तहत क्षत्रिय समाज की संस्कृति ,इतिहास और छवि को मटियामेट करने के लिए समस्त साधन एकजुट होकर हमला करने लगे ,,,,ताकि क्षत्रिय होना कोई गौरव की बात नहीं रहे बल्कि शर्म की बात होजाये,,,,,किन्तु क्षत्रिय समाज ने अपने पुरुषार्थ के बल पर न केवल अपनी प्रसान्सगिकता ही बनाये रखी बल्कि तमाम दुश्चक्रो को तोड़ने में सक्षमता दिखाई है ,,,,,,इस कारण यह समस्त विरोधी शक्ति एक साथ अब पुनः क्षत्रिय स्वाभिमान और गौरव को नष्ट करने में जुट गयी है !जहाँ तक इतिहास का सवाल है तो वर्तमान समय में उपलब्द्ध  इतिहास दो तरह के लोगो के द्वारा   लिखा गया है ,,,,एक तो चारणों ,भाटों और राजपुरोहितों द्वारा  लिखा गया है, इसमें  यह कमी रही है कि यह  या तो अपने स्वामी की प्रशंसा में या अपने स्वामी के शत्रु की छवि को धूमिल करने के लिए लोखा गया था !दूसरी तरफ लिखा गया इतिहास  विदेशी आक्रान्ताओं और हमारे राजनितिक शत्रुओं ने अपने स्वामी मुगलों और आतातायियों के पक्ष में इतिहास लिखा और हमारे चारणों और भाटों ने  हमारे लिए इतिहास लिखा किन्तु देश के विभाजन के बाद पंडित नेहरू जैसे लोगों ने हमारे राजनितिक शत्रुओं और विदेशी आक्रान्ताओं  के लिखे इतिहास को मान्यता  दी ताकि क्षत्रियो की छवि को धूमिल किया जासकें और हमारे परम्परागत इतिहासकारों के इतिहास को ख़ारिज कर दिया ताकि क्षत्रियो में स्वाभिमान के पुनर्जीवन का अवसर ही नहीं मिल पाए ! !,,,,,फिर भी लोकगीतों,भजनों,लोक-कथाओं,स्वतन्त्र  कहानीकार और साहित्यकार मुंशी प्रेम चंद जैसे लोगों, मंदिर के शिलालेखो,के जरिये आमजनता के समक्ष क्षत्रिय गौरव पहुँच गया है !इसलिए शिक्षा के नाम पर जो इतिहास पढाया जाता है ,और मनोरंजन के नाम पर टी.वी. पर जो दिखाया जाता है वह असत्य के आलावा और कुछ नहीं है !!!! ऐसे में हम क्षत्रिय जो समस्त चर-अचर ब्रह्मांड के रक्षक है, क्या केवल अपने धर्म ,संस्कृति और गौरव की रक्षा के लिए भी नहीं जागेंगे ???? तब धिक्कार है ऐसे कायरता और नपुंसकता भरे जीवन को ,,,,,,,,,


"जय क्षात्र-धर्म"
कुँवरानी निशा कँवर चौहान  

हम आप सभी से निवेदन करते ही कि आप सभी जोधा-अकबर नामक कथित धारावाहिक का विरोध करे …। यह इतिहास कि तोड-मरोड कर मन-गढत रची -रचाई झुटी कहानी है जो हमारा राष्ट्रप्रेमी समाज बर्दाश्त नही कर सकता है.…. जोधा नाम के पात्र को इतिहास मे पुष्टी नही है ! वह जयपूर के राजा कि दासी कि पुत्री थी जिसका नाम हरका था……जिस तथ्य को इतिहास में प्रमाण न हो .... जो कहानी आधारहीन तथा विवादस्पद हो उसका समर्थन क्यों किया जा रहा है? किवदंतियों को प्रमाणित इतिहास मत बनाओ .......आप राजपूताने के धधकते जौहर की ज्वालाओं को क्यों नजर-अंदाज कर रहे हो .......? स्वयं प्रिंस तुसी जी (हैदराबाद) ने भी इस बात का विरोध जताया था ! यह कोई जात-धर्म के सांप्रदायिक आधार पर संकीर्ण विचार-धारा फ़ैलाने का प्रयास बिलकुल नहीं है ....लेकिन मन-गढ़त कल्पनाओं का और झूटी कहानियों का स्वीकार क्यों करे???? चाटुकार लोगो ने ही ऐसी काल्पनिक किवदंतियों को जन्म देकर लोगों में भ्रम पैदा करने की कोशिश की है जो आज की बुद्धि को प्रमाण माननेवाली पीढ़ी कदापि स्वीकार नहीं करेगी। ऐसी कई धारावाहिक तथा फिल्मे भी अक्सर आती-जाती रहती है जिसमे ठाकुरों को खलनायक की भूमिका में दिखाया जाता है हम सबको इस बात का भी कड़ा विरोध करना चाहिए ..........हजारो साल तक इस राष्ट्र- संस्कृति की रक्षा के लिए अपने सर्वस्व को न्योछावर कर .....प्राणों का बलिदान देनेवाले नायकों की कौम को खलनायक बतानेवाली तमाम साजिशे हम सबको रोकनी चाहिए .....! उन तमाम निर्माता-दिग्दर्शकों को हमारा गौरवशाली इतिहास तथा अनुपम त्याग का अध्ययन करने की सख्त जरुरत है .....पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति की चकाचौंध में रहनेवाले ये लोग क्या जाने उस महान विरासत का महत्त्व?
हम अभिव्यक्ति की आज़ादी का अत्यंत सन्मान करते है लेकिन कला और अभिव्यक्ति के नाम पर किसी समुदाय को आहत करने के प्रयास की कड़ी निंदा भी करते है ....!
हम सब लोकतान्त्रिक एवं शांतिपूर्ण मार्ग से इस प्रयास का विरोध करे .....यह हम सबका मुलभुत अधिकार है ....! ख्याल रहे ----उचित शब्दों का आधार लेकर ही अपनी राय दे .......गलत भाषा या तरीका इस मिशन को गलत राह्पर ले जाता है ......सावधानी जरुर बरते .....इस मिशन में सभी राष्ट्रप्रेमी नागरिक तथा संघटन अपनी यथार्थ भूमिका निभाए ..........

SOME FACTS:

1) अकबरनामा में जोधा बाई का उल्लेख नहीं है।

2) तजुक ए जहांगीरी जिसमें जहांगीर की आत्मकथा है उसमें जोधा बाई का उल्लेख नहीं है।

3) अरब की कई सारे किताबों में ऐसा वर्णित है "ونحن في شك حول أكبر أو جعل الزواج راجبوت الأميرة في هندوستان آرياس كذبة لمجلس" (हमें यकिन नहीं है इस निकाह पर)

4) ईरान के " Malik National Museum and Library" की किताबों में भारतीय मुगलों का दासी से निकाह का उल्लेख मिलता है।


5)अकबर ए महुरियत में स्पस्ट रूप से लिखा है,"ہم راجپوت شہزادی یا اکبر کے بارے میں شک میں ہیں" (हमें राजपुत विवाह पर संदेह है क्योंकि राजभवन में किसी की आँखों में आँसु नहीं था तथा ना ही हिन्दु गोद भराई की रस्म हुई थी )

6) सिख धर्म के गुरू अर्जुन देव जी तथा हरगोविन्द जी ने ये बात स्वीकार किया था कि छत्रियों ने आज अपने बुद्धि का सदुपयोग करना सिख लिया है, “ਰਾਜਪੁਤਾਨਾ ਆਬ ਤਲਵਾਰੋ ਓਰ ਦਿਮਾਗ ਦੋਨੋ ਸੇ ਕਾਮ ਲੇਨੇ ਲਾਗਹ ਗਯਾ ਹੈ “ ( राजपुताना अब तलवार तथा बुद्धि दोनों का प्रयोगकरने लग गया है। )

कृपया आप निम्नलिखित मेल कॉपी कर bccc@ibfindia.com , response@zeenetwork.com , ibf@ibfindia.com , media@zeenetwork.com , jairajputanasangh@gmail.com इन पते पर भेजे …….


Respected Sir;
The Rajput Community is strongly opposing the serial named JODHA-AKBAR. This serial is based on the fake story which had no strong evidence. It is based on some baseless and imaginary literature. The eminent historians hadn't proved it. Rajputs had shaded their blood to protect the motherland from the foreign invaders. This serial dishonours our pride so it is our birth right to oppose it. We request you on the behalf of Rajput community and the Rajput organzations to stop making and broadcasting this serial. Rajput community is one of the major community in this Nation and so their feelings should be regarded and respected. The warrior race couldn't bear the distorting with their history.
We hope that the concerned authorities should understand our feelings and stop this effort.
THANKING YOU.......

जागो मेवाड़ .....!

       भीलवाडा (राजस्थान) में कल (ता:14) एक कार्यक्रम सम्पन्न हुवा। उस कार्यक्रम में राजस्थान भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता शिरकत कर रहे थे जो मेवाड़ की ऐतिहासिक भूमि का प्रतिनिधित्व करते है। अपने भाषण में सन्माननीय नेता महोदय (जो पार्टी वुईथ डिफ़रन्स के इमानदार लोकसेवक है) कई मुद्दों पर मार्गदर्शन किया। हमें उनसे कोई शिकायत नहीं है। शिकायत करे तो ऐसी एक बात उन्होंने वहा कही जिसे लेकर दुःख है। उन्होंने कहा; "हम जो लढाई आज लड़ रहे है; वह राजा -महाराजाओं के कार्यकाल में भी लड़ रहे थे। वह काल किसी राक्षस राज से कम नहीं था।"

मित्रो; सन्माननीय नेताजी उस भूमि का प्रतिनिधित्व कर रहे है जिन्होंने अपने ऐसे बयान से उस भूमि के इतिहास के प्रति अपना अज्ञान दर्शाया है। मेवाड़ के वीरों ने सदियों तक प्राणों की बाजी लगाकर हिंदुत्व ; संस्कृती; मानवता और भारतीय स्वतंत्रता जैसे महान मूल्यों की रक्षा की है। विद्रोही विश्वासघाती बनवीर को छोड़ ऐसा कोई शासक नहीं हुवा जिसपर ऊँगली उठाई जा सके ! क्या वे नेता महोदय महाराणा सांगा ,महाराणा प्रताप के प्रण को भूल गए? उनके अपूर्व त्याग और बलिदान से ही मेवाड़ की धरा दुनिया भर में मशहूर हुई और स्वाधीनता के मन्त्र की प्रेरणा स्थली बनी रही है। हम पूछना चाहते है की है ;राजा-महाराजाओं के खिलाफ उनकी ऐसी कौनसी लड़ाई थी? उन्होंने उनका क्या बिगाड़ा था? और ऐसा कौनसा वर्तन था जिसे ये महोदय राक्षस राज कह रहे है? क्या ये हाड़ी राणी का बलिदान; पन्ना का त्याग भूल गए? क्या उसे यह भी नहीं मालूम की मेवाड़ के रणसंग्राम में राजा के साथ उनकी प्रजा भी लड़ी थी ....! ;अपने राजा के साथ जनता ने भी सुख त्याग दिए थे ....!

        यह दुर्भाग्यपूर्ण टिपण्णी है। सदियों तक क्षत्रियों ने प्राणों की बाजी लगाकर हिंदुत्व की रक्षा है। अगर क्षत्रिय न होते तो यह महान संस्कृति भी बच नहीं पाती। उनकी अलग ही पहचान होती जिसे लेकर ये लोग वर्तमान में घूम रहे है। क्षत्रियों का हिंदुत्व पाखंडी हिंदुत्व नहीं था; जो केवल सत्ता पाने के लिए इस्तेमाल किया जाये। मेवाड़ का इतिहास केवल राष्ट्र के लिए ही नहीं अपितु विश्व के लिए प्रेरक रहा है! भारत भूमि ; हिन्दू धर्म ; संस्कृति; मानवता की रक्षा हेतु मेवाड़ के वीरों ने जो अद्वितीय त्याग किया है जिसकी तुलना नहीं की जा सकती। एक समय था की सम्पूर्ण भारत में केवल मेवाड़ ही बचा था जिसने स्वाधीनता के मन्त्र को जीवित रखा था।



       आदरणीय नेता जी ऐसी महान भूमि का प्रतिनिधित्व करते है जिसपर उन्हें गर्व होना चाहिए। केवल जाती-पाती की क्षुद्र राजनीती और चंद लोगों को खुश करने के लिए कुछ भी उल्टा-पुल्टा बयान देना आजकल नेताओं की प्रवृत्ति हो गयी है। मेवाड़ की जनता अब गंभीरता से सोचे की वह कैसे लोगों को अपना प्रतिनिधित्व सौपती है! राजा-महाराजों के समय उनकी प्रजा कभी रोजगार के लिए अपना वतन छोड़ कर नहीं जाती थी जो इन के ज़माने में और शासन के कार्यकाल में रोजी-रोटी के लिए बाहरी मुल्कों में वतन छोड़ कर जा रही है। जो जनता अपनी भूमि के गौरव के खातिर बलिदान की होड़ लगाती थी उस जनता के बिच जाती-पाती की दीवारे किन्होने खड़ी की? राजा-महाराजा के प्रति आज भी सर्व सामान्य जनता के दिल में अभूतपूर्व सन्मान है जिस कारन ये नेता लोग दुखी रहते है। शायद इन्हें अक्सर भय भी होता हो की कही राजपरिवार की लोकप्रियता उनकी कुर्सी न छीन ले .....! और ऐसे बयान देने वाले महोदय को मेवाड़-केसरी जैसी उपाधि से भी कुछ मान्यवरो ने शब्द-अलंकृत किया! यह विधि की विडम्बना ही है। नेताजी से ऐसी उम्मीद नहीं थी जो किसी भूमि के सन्मान को ठेंच पहुचाये।