गुजरात कि सीमा से महज सौ किलोमीटर दूर पर शहादा --धुले रोड पर महाराष्ट्र में सूर्यकन्या तापी नदी के किनारे सारंगखेडा नाम का गाव है जो मध्ययुगीन काल से कभी रावल परिवार की जागीर का स्थल था। यहाँ मध्यकाल से दत्त जयंती के पर पावन अवसर पर एक विशाल मेले का आयोजन होता है। इस मेले का एक खास आकर्षण होता है यहाँ का विश्व प्रसिद्ध अश्व मेला ......... .
यहाँ दूर -दूर से अश्वप्रेमी अश्व खरीदने के लिए आते है ; राजपूत--मराठा --जाट --सिख ---मुग़ल शासकोने यहाँ से मध्यकाल के समय में घोड़ो कि खरीदारी कि थी ;प्राचीन समय से यहाँ भगवन एकमुखी दत्त जी का मंदिर है। श्री दत्त जयंती के पावन अवसर पर यहाँ बहुत ही सुंदर मेले का आयोजन होता आया है। विभिन्न नस्लों के घोड़ों के लिए यह मेला दुनिया भर में मशहूर है। प्राचीन समय से भारत वर्ष के राजा-महाराजा; रथी -महारथी यहाँ अपने मन-पसंद घोड़ों की खरीद के लिए आते-जाते रहे है। आज भी देश के विभिन्न प्रान्तों से घोड़ों के व्यापारी यहाँ आते है। 16 दिसम्बर के दिन यात्रारंभ होगा। हर रोज लाखो श्रद्धालु भगवान दत्त जी के मंदिर में दर्शन करते है और यात्रा का आनंद भी लेते है। विभिन्न राजनेता, उद्योजक, फ़िल्मी हस्तिया यहाँ घोड़े खरीदने आते-जाते रहते है। आज भी देश के कोने-कोने से कई राजपरिवार ; अश्वप्रेमी लोग ; फिल्मी सितारे ; राजनेता यहाँ अपने मनपसंद घोड़ों कि तलाश में आते रहते है।
इस मेले में कृषि प्रदर्शनी; कृषि मेला; बैल-बाजार; लोककला महोत्सव; लावणी महोत्सव तथा अश्व स्पर्धा आदि का आयोजन होता है।
वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी का घोडा "चेतक" तथा छत्रपति शिवाजी महाराज जी घोड़ी "कृष्णा" इतिहास में प्रसिद्ध है। महाराणा प्रतापसिंह जी के जीवन में चेतक घोड़े का साथ महत्वपूर्ण रहा था। कृष्णा घोड़ी ने भी छत्रपति शिवाजी महाराज के संघर्ष के काल में अभूतपूर्व योगदान दिया था। चेतक और कृष्णा के नाम से सारंगखेडा मेले में पुरस्कार दिए जाते है । दौड़ में सर्वप्रथम आनेवाले अश्व को चेतक पुरस्कार--11000 रु की नगद राशी .- चेतक स्मृति चिन्ह और रोबीले पण में सर्वप्रथम आनेवाले अश्व को कृष्णा पुरस्कार--11000 रु . की नगद राशी --कृष्णा स्मृतिचिन्ह प्रदान किया जायेगा। इस मेले में दोंडाईचा संस्थान के कुंवर विक्रांतसिंह जी रावल के अश्व -विकास केंद्र के घोड़े भी मौजूद रहते है। जिनमे फैला-बेला नाम की सिर्फ 2.5 फिट ऊँची घोड़ों की प्रजाति ख़ास आकर्षण का केंद्र रहेगी। सारंगखेडा के भूतपूर्व संस्थानिक तथा वर्तमान उपाध्यक्ष ( जि .प .नंदुरबार) श्री जयपालसिंह रावल साहब तथा सरपंच श्री चंद्रपालसिंह रावल के मार्गदर्शन में इस मेले की सफलता के लिए स्थानीय पदाधिकारीगन प्रयत्नरत है।
इस अभूतपूर्व अश्व मेले के बारे में अधिक जानकारी के लिए क्लिक करे:
http://www.youtube.com/watch?v=DTi4isKWU-w
http://www.youtube.com/watch?v=CcDlcXaX_hk