"सती व जौहर"
_______________
इस विषय पर मेरा यह लेख । मुझे लगता है यह आप सभी को अवश्य पढ़ना चाहिए ।
हर बार की तरह सरकार बदलते ही पहला कार्य होता है पाठ्यक्रम बदलना । चूंकि इस बार राज्य सरकार बदलने के बाद लोकसभा चुनाव थे इसलिए अब तक इस बारे में कोई चर्चा या बयानबाजी से नेता बचते रहे अब शिक्षा मंत्रीजी का कुछ बयान आया है । 8 वीं कक्षा की पुस्तक के मुख्य पृष्ठ से जौहर का चित्र हटाने की चर्चा है । चाहे आप इसके पक्ष में हों या विपक्ष में, चाहे किसी भी पार्टी के समर्थक हों आप यह लेख अवश्य पढ़े । यह केवल एक निष्पक्ष लेख है जो आपको जानकारी उपलब्ध करवायेगा ।
सर्वप्रथम सतीयों को नमन । हर विषय की भांति इस पर भी राजनीतिक व सामाजिक वातावरण में हलचल अवश्य होगी तो हर विषय की भांति इस विषय पर भी जौहर के गौरवपूर्ण इतिहास के विरोध में लिखने व बोलने वाले बुद्दिजीवी भी कुकरमुते की तरह उग आएंगे ।
कुछ लोग सतीयों के खिलाफ लिखेंगे तो कुछ जौहर के खिलाफ जहर उगलेंगे । सबसे पहले तो आपको सती के आगे प्रथा शब्द लगाने से पहले 'प्रथा' का आश्य समझना होगा । प्रथा का मतलब है कोई भी ऐसा कार्य जो किसी जाती, धर्म या वर्ग के सभी या अधिकतर लोगों द्वारा किया जाता है । जैसे दहेज एक प्रथा है क्योंकि लगभग हर व्यक्ति इससे ग्रस्त है, इसके अलावा तीन तलाक, मृत्युभोज, घुंघट, पर्दा आदि को प्रथाओं कि श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि इससे एक वर्ग विशेष के लगभग सभी लोग ग्रस्त थे या हैं । ये कुप्रथाएं हैं या नहीं वो अलग विषय है ।
अब जब आपको ये समझ आ गया कि प्रथा क्या होती है तो सती के आगे प्रथा लगाने से पहले अपने परिवार जाति या धर्म का इतिहास उठाकर देखें कि अब तक कितनी औरतें पति की मृत्यु पर सती हुई हैं ? क्या वो संख्या भी उतनी ही है जितनी दहेज, तीन तलाक, मृत्युभोज, घुंघट, पर्दा आदि से ग्रस्त लोगों की है ? जब हम राजस्थान का इतिहास देखते हैं तो पाते हैं कि एक पुरे गांव का इतिहास खंगालने पर व 15-20 पीढ़ी में कोई 1-2 सती हुई है । यानी किसी भी समय सती होना प्रत्येक स्त्री पर अनिवार्य या बाध्यता नहीं रही ।
वो एक समर्पण था, उच्च कोटी का समर्पण जिसे मापने कि क्षमता ना आपकी कलम में है ना ही आपकी वाणी में । वो एक पवित्रता का अनुपम उदाहरण था । वो एक पति व पत्नि के बीच के प्रेम का अनुपम उदाहरण था ।
ऐसा भी नहीं है कि सती केवल क्षत्राणियां ही हुई हैं । हर जाति समुदाय में हुई हैं जैसे उदाहरण स्वरूप झुंझुनू में जो राणी सती (जिन्हें दादी सती भी कहा जाता है) का मन्दिर है वो सती माता अपने पति तनधनदास अग्रवाल के साथ सती हुई थी । अलवर में नाई जाति की महिला नारायणी देवी अपने पति के साथ सती हुई थी, जिसे वर्तमान में मुख्य रूप से मीणा जाति के लोगों द्वारा पूजा जाता है, इसी प्रकार सीकर राणी सती जी भी गैर क्षत्रिय है । ये ऐसे 2-3 नहीं अनेक उदाहरण हैं गैर क्षत्रिय सतीयों के । यानी ना यह किसी जाति आधारित परम्परा थी ना ही किसी महिला के लिए बाध्यकारी ।
आपने व हमने किताबों में सतीप्रथा के विरूद्द जिस राजाराममोहन राय के आंदोलन को पढा है वो कभी इस विषय में राजस्थान नहीं आए, ना ही उन्होंने यहां कि सतीयों के बारे में कोई अध्ययन किया या वकतव्य दिया । हो सकता है उनके बंगाल में ये कोई प्रथा रही हो लेकिन बंगाल के आधार पर राजस्थान के सांस्कृतिक मूल्यों का आंकलन करना वैसा ही है जैसा पृथ्वी के आधार पर मंगल ग्रह के बारे में कोई धारणा बनाना । इसलिए सर्वप्रथम तो सती के आगे प्रथा लगाना बंद करे ।
लेकिन चूंकि वर्तमान में इसपर सरकारी कानून है इसलिए उसका सम्मान किया जाना चाहिए व सती महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए लेकिन अपने घरों में चुपचाप बैठे लोगों की आस्था को बार बार चोट पहुंचाना भी तो ठीक नहीं है, कभी फिल्म के समर्थन के नाम पर कभी किसी और नाम पर ।
अब यदि बात करें जौहर की तो सती व जौहर को एक ना समझें दोनों बेहद ज्यादा अलग हैं । सती केवल पति की मृत्यु के बाद हुआ करती हैं लेकिन अमुमन जौहर मृत्यु से पहले यानी क्षत्रियों के केसरीया करने से पहले हुए हैं । हां कुछ जौहर मृत्यु के बाद भी हुए हैं जब समाचार मिले कि सभी क्षत्रिय युद्द में वीरगती को प्राप्त हुए और शत्रु कि सेना दुर्ग कि ओर आ रही है ।
ऐसे कई उदाहरण हैं जो जीवित रहते सती हुई हैं जैसे बाला सती रूप कंवर । चूंकि मैं स्वयं क्षत्रिय हूं तो आप मेरी बात पर विश्वाश ना करें तो आप भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के जीवन का अध्ययन करें आपको एक दो जगह नहीं कई जगह बाला सतीजी के वृतांतो का उल्लेख मिलेगा । अब यदि जौहर कि बात करें तो जौहर जीवित रहते हुए नहीं हो सकता ।
सती पति के प्रति समर्पण का प्रतिक है तो जौहर देशभक्ति कि उच्चतम कसौटी । लेकिन अब फिर जब बहस छिडे़गी तो लोग पद्मावत फिल्म की भांति कहेंगे जिन्होंने जौहर किया उनके बारे में क्यों पढा़या जाये, जौहर करने से अच्छा तो वो युद्द करती कुछ शत्रुओं को मारकर मरती फिर तो उन्हें ये भी कहना चाहिए कि गांधीजी को अनशन कि बजाय अंग्रेजों से युद्द करना चाहिए था कुछ को तो मारते ही इसलिए फिर तो गांधीजी को भी पाठ्यक्रम से हटा दिया जाए । अन्ना को भी अनशन कि बजाय भ्रष्टाचारियों को मारना चाहिए था ।
मतलब साफ है हर काल समय के अनुसार समाज की मांग व समाज को प्रेरित किए जाने वाले उदाहरण बदल जाते हैं । जैसे आज तलवार बाजी से प्रेरित नहीं किया जा सकता लेकिन किसी समय किया जा सकता था । इसी तरह किसी समय जौहर वो अनुपम देशभक्ति का कार्य था जो आने वाली सैंकडो़ पीढ़ियों को संदेश दे सके ।
वर्तमान में कुछ लोग कहते हैं सती कोई नहीं होती थी उन्हें जबरन जलाया जाता था तो वो लोग अपने पापा या दादोसा कि उम्र के उस व्यक्ति से पुछें जिन्होंने 1987 में रूप कंवर (दिवराला, सीकर) या 1957 में उगम कंवर (तालियाना, जालौर) को या किन्हीं अन्य को पति के साथ सती होते अपनी नग्न आंखो से देखा हो (सभी जाती धर्म के लाखों लोग वहां मौजूद थे) । और यदि आप इसे आत्महत्या मानते हो तो फिर तो जैन धर्म के संतो द्वारा उपवास से प्राण त्यागना (संथारा) व बौध धर्म के संतो द्वारा भी इच्छा से प्राण त्यागना, आत्मदाह करना व सनातन धर्म के कई संतो द्वारा समाधी ली जाना भी आपकी नजरों में आत्महत्या ही हुई । इसलिए हर जगह बुद्धिजीवीता घुसाने की बजाय थोड़ा विचार भी अवश्य कर लेना चाहिए ।
इसलिए मैं तो यही कहना चाहूंगा कि ये सब बकवास जो आप लोग सोशल मिडीया पर आधुनिकता के नाम पर करते हो इससे अाप केवल अपने पुर्वाग्रहों के आधार पर अपने ज्ञान का नाश कर रहे हो इससे ज्यादा कुछ नहीं ।
इस लेख को पढकर क्षत्रिय बंधु भी ज्यादा प्रश्न ना हों वर्तमान में यह वर्ण (क्षत्रिय) सती, झुंझार, संत, महात्माओं व महापुरूषों के बताए मार्ग को छोड़ चूका है और उसी का प्रमाण है कि वर्तमान में क्षत्रिय किसी वार्ड के वार्ड पंच बनकर उस वार्ड कि जनता को भी पांच वर्ष तक खुश नहीं रख पाते । राज्य या देश तो बहुत बडी़बात हो गई ।
अंत में सरकार से निवेदन है कि उन्हें जो उचित लगे वो करें क्योंकि जनता ने उन्हें यह अधिकार दिया है लेकिन बार बार यूं आस्था पर चोट ना करें साथ ही सती व जौहर पर गलत लिखने वाले भाईयों से निवेदन है वो जरा निष्पक्षता से अध्ययन करें व क्षत्रिय भाईयों से निवेदन है कि जन्म से ही नहीं कर्म से भी क्षत्रिय बनने कि कोशिश करें । केवल वंशावलियों से ही नहीं कर्मों से भी राम व कृष्ण की संतान होने का बोध कराएं । अन्यथा कोई औचित्य नहीं है आपकी इन वंशावलियों का ।
सभी की प्रतिक्रियाएं केवल सभ्य भाषा में ही आमंत्रित है ।
- कुंवर अवधेश शेखावत (धमोरा)
_______________
इस विषय पर मेरा यह लेख । मुझे लगता है यह आप सभी को अवश्य पढ़ना चाहिए ।
हर बार की तरह सरकार बदलते ही पहला कार्य होता है पाठ्यक्रम बदलना । चूंकि इस बार राज्य सरकार बदलने के बाद लोकसभा चुनाव थे इसलिए अब तक इस बारे में कोई चर्चा या बयानबाजी से नेता बचते रहे अब शिक्षा मंत्रीजी का कुछ बयान आया है । 8 वीं कक्षा की पुस्तक के मुख्य पृष्ठ से जौहर का चित्र हटाने की चर्चा है । चाहे आप इसके पक्ष में हों या विपक्ष में, चाहे किसी भी पार्टी के समर्थक हों आप यह लेख अवश्य पढ़े । यह केवल एक निष्पक्ष लेख है जो आपको जानकारी उपलब्ध करवायेगा ।
सर्वप्रथम सतीयों को नमन । हर विषय की भांति इस पर भी राजनीतिक व सामाजिक वातावरण में हलचल अवश्य होगी तो हर विषय की भांति इस विषय पर भी जौहर के गौरवपूर्ण इतिहास के विरोध में लिखने व बोलने वाले बुद्दिजीवी भी कुकरमुते की तरह उग आएंगे ।
कुछ लोग सतीयों के खिलाफ लिखेंगे तो कुछ जौहर के खिलाफ जहर उगलेंगे । सबसे पहले तो आपको सती के आगे प्रथा शब्द लगाने से पहले 'प्रथा' का आश्य समझना होगा । प्रथा का मतलब है कोई भी ऐसा कार्य जो किसी जाती, धर्म या वर्ग के सभी या अधिकतर लोगों द्वारा किया जाता है । जैसे दहेज एक प्रथा है क्योंकि लगभग हर व्यक्ति इससे ग्रस्त है, इसके अलावा तीन तलाक, मृत्युभोज, घुंघट, पर्दा आदि को प्रथाओं कि श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि इससे एक वर्ग विशेष के लगभग सभी लोग ग्रस्त थे या हैं । ये कुप्रथाएं हैं या नहीं वो अलग विषय है ।
अब जब आपको ये समझ आ गया कि प्रथा क्या होती है तो सती के आगे प्रथा लगाने से पहले अपने परिवार जाति या धर्म का इतिहास उठाकर देखें कि अब तक कितनी औरतें पति की मृत्यु पर सती हुई हैं ? क्या वो संख्या भी उतनी ही है जितनी दहेज, तीन तलाक, मृत्युभोज, घुंघट, पर्दा आदि से ग्रस्त लोगों की है ? जब हम राजस्थान का इतिहास देखते हैं तो पाते हैं कि एक पुरे गांव का इतिहास खंगालने पर व 15-20 पीढ़ी में कोई 1-2 सती हुई है । यानी किसी भी समय सती होना प्रत्येक स्त्री पर अनिवार्य या बाध्यता नहीं रही ।
वो एक समर्पण था, उच्च कोटी का समर्पण जिसे मापने कि क्षमता ना आपकी कलम में है ना ही आपकी वाणी में । वो एक पवित्रता का अनुपम उदाहरण था । वो एक पति व पत्नि के बीच के प्रेम का अनुपम उदाहरण था ।
ऐसा भी नहीं है कि सती केवल क्षत्राणियां ही हुई हैं । हर जाति समुदाय में हुई हैं जैसे उदाहरण स्वरूप झुंझुनू में जो राणी सती (जिन्हें दादी सती भी कहा जाता है) का मन्दिर है वो सती माता अपने पति तनधनदास अग्रवाल के साथ सती हुई थी । अलवर में नाई जाति की महिला नारायणी देवी अपने पति के साथ सती हुई थी, जिसे वर्तमान में मुख्य रूप से मीणा जाति के लोगों द्वारा पूजा जाता है, इसी प्रकार सीकर राणी सती जी भी गैर क्षत्रिय है । ये ऐसे 2-3 नहीं अनेक उदाहरण हैं गैर क्षत्रिय सतीयों के । यानी ना यह किसी जाति आधारित परम्परा थी ना ही किसी महिला के लिए बाध्यकारी ।
आपने व हमने किताबों में सतीप्रथा के विरूद्द जिस राजाराममोहन राय के आंदोलन को पढा है वो कभी इस विषय में राजस्थान नहीं आए, ना ही उन्होंने यहां कि सतीयों के बारे में कोई अध्ययन किया या वकतव्य दिया । हो सकता है उनके बंगाल में ये कोई प्रथा रही हो लेकिन बंगाल के आधार पर राजस्थान के सांस्कृतिक मूल्यों का आंकलन करना वैसा ही है जैसा पृथ्वी के आधार पर मंगल ग्रह के बारे में कोई धारणा बनाना । इसलिए सर्वप्रथम तो सती के आगे प्रथा लगाना बंद करे ।
लेकिन चूंकि वर्तमान में इसपर सरकारी कानून है इसलिए उसका सम्मान किया जाना चाहिए व सती महिमामंडन नहीं किया जाना चाहिए लेकिन अपने घरों में चुपचाप बैठे लोगों की आस्था को बार बार चोट पहुंचाना भी तो ठीक नहीं है, कभी फिल्म के समर्थन के नाम पर कभी किसी और नाम पर ।
अब यदि बात करें जौहर की तो सती व जौहर को एक ना समझें दोनों बेहद ज्यादा अलग हैं । सती केवल पति की मृत्यु के बाद हुआ करती हैं लेकिन अमुमन जौहर मृत्यु से पहले यानी क्षत्रियों के केसरीया करने से पहले हुए हैं । हां कुछ जौहर मृत्यु के बाद भी हुए हैं जब समाचार मिले कि सभी क्षत्रिय युद्द में वीरगती को प्राप्त हुए और शत्रु कि सेना दुर्ग कि ओर आ रही है ।
ऐसे कई उदाहरण हैं जो जीवित रहते सती हुई हैं जैसे बाला सती रूप कंवर । चूंकि मैं स्वयं क्षत्रिय हूं तो आप मेरी बात पर विश्वाश ना करें तो आप भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के जीवन का अध्ययन करें आपको एक दो जगह नहीं कई जगह बाला सतीजी के वृतांतो का उल्लेख मिलेगा । अब यदि जौहर कि बात करें तो जौहर जीवित रहते हुए नहीं हो सकता ।
सती पति के प्रति समर्पण का प्रतिक है तो जौहर देशभक्ति कि उच्चतम कसौटी । लेकिन अब फिर जब बहस छिडे़गी तो लोग पद्मावत फिल्म की भांति कहेंगे जिन्होंने जौहर किया उनके बारे में क्यों पढा़या जाये, जौहर करने से अच्छा तो वो युद्द करती कुछ शत्रुओं को मारकर मरती फिर तो उन्हें ये भी कहना चाहिए कि गांधीजी को अनशन कि बजाय अंग्रेजों से युद्द करना चाहिए था कुछ को तो मारते ही इसलिए फिर तो गांधीजी को भी पाठ्यक्रम से हटा दिया जाए । अन्ना को भी अनशन कि बजाय भ्रष्टाचारियों को मारना चाहिए था ।
मतलब साफ है हर काल समय के अनुसार समाज की मांग व समाज को प्रेरित किए जाने वाले उदाहरण बदल जाते हैं । जैसे आज तलवार बाजी से प्रेरित नहीं किया जा सकता लेकिन किसी समय किया जा सकता था । इसी तरह किसी समय जौहर वो अनुपम देशभक्ति का कार्य था जो आने वाली सैंकडो़ पीढ़ियों को संदेश दे सके ।
वर्तमान में कुछ लोग कहते हैं सती कोई नहीं होती थी उन्हें जबरन जलाया जाता था तो वो लोग अपने पापा या दादोसा कि उम्र के उस व्यक्ति से पुछें जिन्होंने 1987 में रूप कंवर (दिवराला, सीकर) या 1957 में उगम कंवर (तालियाना, जालौर) को या किन्हीं अन्य को पति के साथ सती होते अपनी नग्न आंखो से देखा हो (सभी जाती धर्म के लाखों लोग वहां मौजूद थे) । और यदि आप इसे आत्महत्या मानते हो तो फिर तो जैन धर्म के संतो द्वारा उपवास से प्राण त्यागना (संथारा) व बौध धर्म के संतो द्वारा भी इच्छा से प्राण त्यागना, आत्मदाह करना व सनातन धर्म के कई संतो द्वारा समाधी ली जाना भी आपकी नजरों में आत्महत्या ही हुई । इसलिए हर जगह बुद्धिजीवीता घुसाने की बजाय थोड़ा विचार भी अवश्य कर लेना चाहिए ।
इसलिए मैं तो यही कहना चाहूंगा कि ये सब बकवास जो आप लोग सोशल मिडीया पर आधुनिकता के नाम पर करते हो इससे अाप केवल अपने पुर्वाग्रहों के आधार पर अपने ज्ञान का नाश कर रहे हो इससे ज्यादा कुछ नहीं ।
इस लेख को पढकर क्षत्रिय बंधु भी ज्यादा प्रश्न ना हों वर्तमान में यह वर्ण (क्षत्रिय) सती, झुंझार, संत, महात्माओं व महापुरूषों के बताए मार्ग को छोड़ चूका है और उसी का प्रमाण है कि वर्तमान में क्षत्रिय किसी वार्ड के वार्ड पंच बनकर उस वार्ड कि जनता को भी पांच वर्ष तक खुश नहीं रख पाते । राज्य या देश तो बहुत बडी़बात हो गई ।
अंत में सरकार से निवेदन है कि उन्हें जो उचित लगे वो करें क्योंकि जनता ने उन्हें यह अधिकार दिया है लेकिन बार बार यूं आस्था पर चोट ना करें साथ ही सती व जौहर पर गलत लिखने वाले भाईयों से निवेदन है वो जरा निष्पक्षता से अध्ययन करें व क्षत्रिय भाईयों से निवेदन है कि जन्म से ही नहीं कर्म से भी क्षत्रिय बनने कि कोशिश करें । केवल वंशावलियों से ही नहीं कर्मों से भी राम व कृष्ण की संतान होने का बोध कराएं । अन्यथा कोई औचित्य नहीं है आपकी इन वंशावलियों का ।
सभी की प्रतिक्रियाएं केवल सभ्य भाषा में ही आमंत्रित है ।
- कुंवर अवधेश शेखावत (धमोरा)
Very nice 🙏 100% agreed