!! क्षमा वीरस्य भूषणं !!

एक जंगल था ! उस जंगल में कुछ शेर और ढेर सारे जानवर रहते थे ! सभी कुशल थे ! उनमे एक नौजवान....तेज...फुर्तीला युवा शेर भी था! बाकि कायर और बुढे शेर उस युवा शेर से इर्षा करते थे!उसका तेज मानो सूरज के समान था! उस बलशाली शेर के पराक्रम से बाकि नादाँ जानवर भी इर्षा करते थे! वे तरह तरह की बाधाये उस शेर के मार्ग पर उत्पन्न करते थे ताकि वह शेर उनके सामने झुक जाये ..उनकी शरण में आ जाये....या उन्ही की तरह आलसी हो जाये! उनको उसका तेज होना पसंद नहीं था ! उसके सामने आने की किसी जानवर में हिम्मत नहीं थी! क्योंकि उसके मुकाबले से वे डरते थे! इतना ही नहीं बल्कि मानव मात्र या कोई शिकारी भी उस शेर के भय से उस जंगल में नहीं टहलता था !
एक दिन जंगल के बाहर कुछ शिकारियोने जाल बिछा दिया ! यह बात उन नादाँ प्राणियों के ध्यान में आ गयी! उनके दिल में शैतान जाग उठा ! उस जाल में अगर वह युवा शेर फंस जाये तो पूरा जंगल हमारा होगा...इस भावना ने उन्हें पछाड़ा! उन्होंने उस युवा शेर को मीठी मीठी बातोंमे फसाकर उस जाल की ओर ले जाने की तरकीब सोची! शेर ने भी उनपर विश्वास रखा! योजना के अनुसार वह शेर उस जाल में फंस गया! उसे उस जाल में कैद देख , कमीने सियार और भेडिये खुश हुए! वे ख़ुशी के मारे उछाल ने लगे! बेचारा शेर अब क्या करता? उसके सामने चिंघाड़ने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था! वे उस शेर के सामने अपनी मुछोंपर नाज करने लगे जो कभी उस शेर के सामने लाचारी से झुक जाती थी! उसी जाल के पास एक पेड़ था ...उस पेड़ पर एक गरुड़ रहता था! कपटी जानवरों के इस खेल को देख वह भी मन ही मन में विचलित हुवा था! उसने उस शेर से बात की! शेर उन नादानोंकी हरकत से परेशां तो था ही बल्कि उसने उन्हें माफ़ भी कर दिया! ख़ुशी के मारे वे सियार और भेडिये अपने बाकि साथियोंको यह तमाशा देखने के लिए बुलाने चले गए! गरुड़ ने अन्य शेरोंसे जाकर मुलाकात की और उस युवा शेर के मदत की याचना की! लेकिन उन शेरोने मदत तो की ही नहीं बल्कि ख़ुशी जताई! एक कमजोर शेर बोला; "बहुत तेज दिखता था....अटक गया ना जाल में...अब समझेगा गुलामी क्या होती है!" उन कायर शेर की दास्ताँ सुनकर निराश गरुड़ वहा से चला गया! उसने अपने अन्य दोस्तोंकी सहायता लेकर शेर को जाल से मुक्त करने की कोशिश भी की! शिकारी वक्त पर आ गए और उस युवा शेर को मर कर उसकी खाल ले गए! उस गरुड़ को काफी दुख हुवा लेकिन जंगल में तो ख़ुशी की मिठाई बाटी जा रही थी! गरुड़ ने उन प्राणियोंको शाप दिया!
कुदरत का खेल देखो ......कुछ ही दिनोंमे शिकारियोंका होंसला बढा और वे एक एक करके सभी जानवरों की शिकार कर चले गए! इस घटना का भी साक्षीदार वह गरुड़ था! उसने कुदरत के इस करिश्मे का आभार जताया!
यह तो सिर्फ एक कहानी है ,लेकिन ऐसी कई घटनाये हमारे इतिहास में भी नजर आती है.......हमें वर्त्तमान में भी जगह जगह दिखाई देती है! प्रणवीर महाराणा प्रताप स्वतंत्रता के पुजारी थे ! वे अपने प्रण पर अडिग थे! उन्होंने तकलीफे सह ली लेकिन अपनी गर्दन नहीं झुकी थी! उन्होंने अपने कर्त्तव्य से इस धरती की आन...बाण और शान कायम रखी थी! इसीलिए उनके प्रति जनता के दिल में आस्था और सन्मान था! महाराणा का यही सन्मान और ऊँचा कद अन्य निमिष मात्र जीवोंको पसंद नहीं था इसलिए उन्होंने महाराणा को झुकाने की कोशिश की थी! लेकिन वे नाकामयाब रहे! राजा पौरस का भी काटा राजा अम्भी ने सिकंदर को बुलाकर निकाला था; जयचंद राठोड ने भी घोरी को बुलाकर पृथ्वीराज चौहान का घात कराया था! महाराणा सांगा को भी अपने ही लोगोने दर्द दिया था! कई देशभक्त वीरोंको देशद्रोही लोगोने गद्दारी कर दुश्मन के हवाले किया था! भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी ऐसी अनगिनत घटनाये हमें नजर आती है ,जिन्हें पढ़कर आज भी मन दु:खी हो जाता है!
इस धरती पर जितनी बड़ी मात्रा में शुरवीरोने जन्म लिया है, उतने ही गद्दार यहाँ पनपे है! उपरोक्त कहानी में जैसा कुदरत ने करिश्मा दिखा कर उन नादाँ प्राणियोंको सबक सिखाया था वैसा ही सबक समय ने उन गद्दारोंको भी सिखाया है! उन गद्दारोंको याद करनेवाला आज कोई भी जिन्दा नहीं है! हर जगह हर समय उन महान देशभक्त....त्यागी....बलिदानी....वीरोंकी पूजा होती है!
हमें दुश्मन से ज्यादा अपने ही तकलीफ देते है.....यह तो परंपरा बन गयी है! उनकी ओर देखे तो हमारा काम ही अधुरा रह जायेगा!
आओ हम सब मिलकर उन गद्दारोंको माफ़ करे.......वह वीर ही होते है जो नादानोंको माफ़ करते है! भगवान महावीर वर्धमान ने ठीक ही कहा है......"क्षमा वीरस्य भूषणं!"
-----------जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे {सिसोदिया}
शिरपुर{महाराष्ट्र} ०९४२२७८८७४०
jaypalg@gmail.com

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