राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप सिंह

                                                      ---जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे[शिरपुर]
                                    

प्रख्यात क्रांतिकारी कवि श्री केसरीसिंह जी बारहठ जी ने कहा था ----

"पग -पग भम्या पहाड़ --भम्या पग -पग भांखरा !
महाराणा अर मेवाड़ ; हिरदै बसिया हिन्द रै !!"

संपूर्ण भारतवर्ष की जनता के ह्रदय के नायक बने महाराणा प्रताप सिंह जी और मेवाड़ ने सम्राट अकबर की शक्तिशाली सत्ता से संघर्ष कर अपने कुलगौरव  और देश का सत्व एवं स्वत्व की रक्षा की थी! भारत के इतिहास में महाराणा प्रताप की इस महान संघर्ष गाथा को स्वर्णाक्षर में लिखा गया है जो आज भी सम्पूर्ण विश्व के नागरिकोंको स्वाधीनता की प्रेरणा देती है!

जब तत्कालीन जगत के कई सत्ताधीश शहंशाह अकबर के साथ मिल कर अपनी आन-बाण और शान खो बैठे थे उस समय महाराणा प्रताप ने हमारे भारतवर्ष का अद्वितीय सन्मान अपने संघर्ष से कायम रखा! अत्यंत विपरीत स्थिति में उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा! जिंदगी के २५ साल का वनवास बिताकर -----आम जनता तथा पर्वत पहाड़ों में बिखरे आदिवासी भिलोंका साथ लेकर उन्होंने स्वाधीनता का यज्ञ प्रज्वलित रखा! शक्तिशाली साम्राज्यवाद के खिलाफ उनका वह जन युद्ध था!

उनके गौरव में कवी दुरसा आढ़ा लिखते है;-

" माई एहडा पूत जन
जेहडा राणा प्रताप !
अकबर सुतो औंध के;
जाने सिराने सांप !"

कवी गर्भवती माताओंको आवाहन करता है की माता को अगर जन्म देना है तो राणा प्रताप जैसे वीर बालक को जन्म दे ....जिनका नाम याद आते ही सोया अकबर चौंक जाता है जैसे कोई सांप उसके सर के पास बैठा हो !

जेष्ठ शुद्ध !! ३ वि. स.१५९७ {इ.स. ९ मई १५४०} के पावन दिन पर कुम्भलगढ़ में महाराणा प्रताप का जन्म हुवा! वह काल मेवाड़ के लिए विपरीत स्थिति वाला था! बाबर के साथ खानवा के युद्ध में मेवाड़ की अत्यंत क्षति हुई थी! महाराणा विक्रमजीत की हत्या , रानी कर्मावती का जौहर और गद्दार बनवीर का सत्ता रोहन जैसी घटना से मेवाड़ को और भी क्षति पहुची थी! कु .प्रताप के जन्म के समय ही महाराणा उदयसिंह ने बनवीर का निर्दालन कर चित्तोड़ की बागडोर फिर से सम्भाली थी!

इ.स. १५५६ में अकबर दिल्ली के तख्त पर आसीन हुवा! समूचे भारत को मुग़ल सत्ता की छत्रछाया में लाने की उसकी योजना थी! इस हेतु साम-दाम-दंड-भेद जैसी निति का स्वीकार कर भारत वर्ष के कई छोटे-बड़े राज्य उसने अपने पक्ष में कर लिए थे! अकबर का यह पथ साधारण नहीं था! उसे अपने और परायों से धोका था! राजपूतों से दुश्मनी मोल लेना उसके सपने साकार नहीं होने देते इस हेतु उसने राजपूत राजाओं से मित्रता की कोशिश की! कुछ हद तक वह सफल भी रहा! "अगर दक्षिण भारत की ओर भी पहुचना है और गुजरात पर भी नियंत्रण रखना है तो राजपुताना अपने प्रभाव में होना चाहिए ", यह उसकी धारणा थी! अकबर की उस धारणा को छेद दिया था मेवाड़ ने! अकबर के दिमाग में मेवाड़ की चिंता थी! मेवाड़ पर विजय से ही हमें हिन्दुस्थान के शहंशाह के रूप में मान्यता मिल सकती है.....इस हेतु मेवाड़ का दमन करना अनिवार्य है! यह अकबर की कल्पना थी! मेवाड़ का राजवंश हिन्दुस्थान का सबसे प्राचीन राजवंश था! हिन्दुस्थान की अस्मिता का वह प्रतिक था! मेवाड़ के ही राणा सांगा की अध्यक्षता में विदेशी आक्रमक बाबर के खिलाफ खानवा  की जंग  छेड़ी गयी थी! जिसमे भारत के तमाम राजा राणा सांगा के नेतृत्व में उस जंग में शामिल हो गए थे! हिन्दुस्थान की आन-बाण और शान के लिए अपनेको कुर्बान करनेकी शक्ति मेवाड़ की मिटटी में थी! इसलिए मेवाड़ पर विजय अकबर के लिए महत्वपूर्ण था! मेवाड़ विजय से गुजरात एवं मालवा पर भी सीधा नियंत्रण हो सकता था! अकबर की इस कल्पना को मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह ने छेद दिया! इसलिए अकबर ने इ.स. १५६८ में चित्तोड़ पर हमला बोल दिया! जयमल---पत्ता और कल्ला के पराक्रम से और तीसरे साके से यह युद्ध प्रसिद्ध हुवा! विजय के बाद अकबर के आदेश के अनुसार किले पर रहने वाली  ३०००० सामान्य जनता का कत्ल किया गया! मंदिरों---महलों का विध्वंस किया गया! अकबर ने चित्तोड़ तो जित लिया लेकिन वहा के स्वामी को नहीं!

महाराणा प्रताप का राज्यारोहन:

वनवास में समय बिताते .....मुग़ल सल्तनत के खिलाफ जंग के हेतु तैय्यारी करते फिरते महाराणा उदयसिंह की इ.स. १५७२ में गोगुन्दा में मृत्यु हुई! अपने बाद कुंवर जगमाल को सत्ता सौपी  जाये यह उनका आदेश था! लेकिन अंतिम संस्कार पर उपस्थित मेवाड़ के सामंतो ने इस विचार को विरोध जताकर कुंवर प्रताप सिंह को ही मेवाड़ के महाराणा घोषित कर दिया! जनता भी यह  चाहती थी! जेष्ठ पुत्र होने के नाते और तबकी परिस्थिति के अनुरूप कु.प्रताप सिंह ही उस पद का सही हक़दार था! गोगुन्दा में राजतिलक और कुम्भलगढ़ में राज्याभिषेक मनाया गया!

मेवाड़ के इस नये स्वामी के सामने अनगिनत समस्याए थी! मेवाड़ का मानबिंदु चित्तोड़ मुग़ल सत्ता के कब्जे में---जनता शत्रु के निरंतर आक्रमण से जर्जर ---बिखरी हुई सेना...अंतर्गत कलह से सगे भाई जगमाल और शक्तिसिंह भी शत्रु के डेरे में----राज्य की अर्थव्यवस्था कमजोरी की दहलीज पर! ऐसे कठिन समय में प्रताप मेवाड़ के स्वामी बने! लेकिन ऐसी स्थिति में भी उन्होंने अपने स्वाभिमान और मर्यादा की रक्षा की! अपने आन-बाण और शान की रक्षा हेतु उन्होंने भी मुग़ल सत्ता के खिलाफ कड़ी जंग का ऐलान किया! जब तक चित्तोड़ जीतकर वापस नहीं लेते तबतक राजमुकुट--राजवस्र और राजमहल की जिंदगी का उन्होंने त्याग किया! चित्तोड़ जितने के लिए उन्होंने प्रतिज्ञा की! अपने इस स्वाधीनता के यज्ञ में प्रजा की भी अनमोल साथ उन्होंने प्राप्त कर ली थी! प्रजा उन्हें प्यार से "किका"{पुत्र} कहकर पुकारती थी! राणा का सैन्य गठन शुरू हो गया था! पडोसी राज्य से संपर्क स्थापित कर अरवली की गिरीकंदराओं में प्रताप के स्वाधीनता यज्ञ की ज्योति प्रज्वलित हुई!

जब प्रताप की इन गतिविधियों के बारे में शहेंशाह अकबर को जानकारी मिली तो वह भी विचलित हुवा! उस वक़्त वह बिहार और बंगाल के युद्ध में व्यस्त था! अपनी दूरदर्शिता के साथ उसने महाराणा से मित्रता का पैगाम भेजा! इस हेतु जलाल खान कोरची, कुंवर मानसिंह,राजा भगवानदास,राजा टोडरमल जैसी हस्तिया मेवाड़ आकर प्रताप से मिली और उन्होंने शहेंशाह के प्रस्ताव को राणा के सामने प्रस्तुत किया! प्रखर स्वाभिमान के अधिकारी प्रताप ने शहेंशाह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया! दोस्ती के प्रस्ताव के नाम पर हम हमारी आझादी नहीं खो सकते! प्रताप ने मुग़ल दरबार के सामने चुनौती रखी!

हल्दी घाटी का युद्ध

लगातार चार साल प्रयास करने से भी प्रताप अपने अधीन नहीं हुवा इस बात को लेकर कुंवर मानसिंह की अध्यक्षता में विशाल सेना अजमेर से शहेंशाह अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण हेतु इ.स. १५७६ में भेज दी! खमनोर के पास हल्दीघाटी में दोनों सेनाओं की भिड़त हुई! महाराणा की सेना की अगुवाई कर रहे थे पठान वीर हाकिम खान सूरी ! १८ जून १५७६ की सुबह लोसिंग से महाराणा की सेना मुग़ल सेना पर आक्रमण करने निकली और मुग़ल सेना भी मोलेला से प्रताप से भिड़ने  आ पहुची! मेवाड़ के आक्रमण का प्रहार इतना भीषण था की मुग़ल सेना ५ से ६ कोस दूर तक भाग खड़ी  हुई! हाकिम खान सूरी,राजा रामशाह तंवर ने मुग़ल सेना के भीतर प्रलय मचाया! मिहतर खान ने स्वयं शहेंशाह युद्ध के लिए आ रहे है ऐसी बाते कह-पुकार कर भागती सेना का साहस  बढाया! फिरसे घनघोर रणसंग्राम का प्रारंभ हुवा! स्वयं प्रताप ने कई मुग़लों को मोक्ष का द्वार दिखाया!

महाराणा प्रताप की जयशाली तलवार शत्रु की गर्दने काट-काट कर रणभूमि में फेक रही थी !उनकी नजर कुंवर मानसिंह को खोज रही थी! जब मुग़ल सेना के बिच हाथी पर सवार कुंवर मानसिंह को राणा ने देखा तो राणा के बिच भीषण उत्साह का संचार हुवा और वे मानसिंह पर सीधा प्रहार करने मुग़ल सेना के दर्या में  जा पहुंचे! अपनी तलवार के प्रहार से रास्ता साफ कर वे कुंवर मान के हाथी तक जा पहुंचे! चेतक ने आगे  की दोनों टांगे उछाली और राणा ने अपने भाले का जोरदार प्रहार हाथी पर सवार मानसिंह पर किया! मानसिंह भाग्यशाली था की वह बच गया! उसने तुरंत निचे घोड़े पर छलांग लगाईं   और वहा से सुरक्षित जगह जा पंहुचा--- भाला महावत के शरिर से आरपार होकर अम्बारी पर जा टकराया और टूट गया! उसी क्षण हाथी के सूंड में लटकी तलवार ने चेतक के एक पैर को काट दिया! माधोसिंह कछवाहा ने अपने साथियों का साथ लेकर राणा को घेर लिया -----राणा और चेतक पर अनगिनत प्रहार होने लगे! यह बात झाला मान के ध्यान में आ गयी और उसने विनाविलंब राणा के राजचिन्ह अपने सर पर धारण कर लिए! झाला मान की शक्ल  राणा से मिलती थी! उसने हाकिम खान की मदद से जखमी राणा और चेतक को बाहर निकाला और स्वयं राणा के चिन्ह धारण कर लड़ने  लगा! मुग़ल सेना  झाला मान को ही प्रताप समझ कर टूट पड़े! झाला ने अपने स्वामी की रक्षा हेतु बलिदान दिया और इमानदार अश्व चेतक ने भी अपने स्वामी को सुरक्षित स्थल पर ले जाकर अपने प्राण  त्याग दिए ! इस घटना क्रम में शक्तिसिंह का भी जमीर  जाग उठा और उसने राणा का पीछा कर रहे मुग़लों को मार गिराया! दोनों भाई आपस में मिले! उधर रण भूमि में भीषण तांडव मचा था! हकिमखान सुर,राजा रामशाह तंवर और उनके तिन पुत्र, मेवाड़ के अनगिनत वीर इस युद्ध में खेत रहे! आज़ादी के उन दिवानो ने जान सस्ती और इज्जत महेंगी कर दी थी!

युद्ध अनिर्णीत रहा! युद्ध के बाद कुंवर मानसिंह ने मुग़ल सेना का डेरा गोगुन्दा में डाला! वहा प्रताप का इतना भय था की उन्होंने बस्ती की चारो ओर सैनिक तैनात किये....उची दीवारे खड़ी की ताकि कोई घोडा छलांग मार कर दीवार लाँघ ना सके!भील सैनिकोने मुग़लों की रसद लुट ली! मुग़लों के खाने के भी लाले पड़ रहे थे! मेवाड़ की सैनिक टुकडिया मुग़लों पर गुरिल्ला हमले कर उन्हें जीना हराम कर रही थी! मुग़लों की इतनी दुर्दशा की गयी की खुद शहेंशाह ने कुंवर मान,आसिफखान और मुग़ल सेना को वापस बुलवा लिया! कुंवर मान और असिफखान की ड्योढ़ी  कई दिनों तक बन्द रखी गयी! स्वयं अकबर उन दोनों से रुष्ट था!

इस भयानक युद्ध के बाद शहेंशाह अकबर ने कई आक्रमण मेवाड़ पर किये  लेकिन ना वह मेवाड़ को जित सका ना उसके स्वामी को पराजित कर सका! शाहबाज खान,जगन्नाथ कछवाहा,अब्दुल खानखाना  स्वयं शहेंशाह ने भी कई बार आक्रमण किये लेकिन मेवाड़ परास्त नहीं हो सका! मेवाड़ की सेना ने मुग़लों के छक्के छुडाये!इसी दरम्यान राणा ने दिवेर, भीमगढ़,कुम्भलगढ़,मोहि जैसी  कुल छतीस लड़ाईया जीती! कुंवर मान को सबक सिखाने हेतु उसकी मालपुरा पेठ को लूटकर उजाड़ दिया! भामाशाह ने मालवा सुभे पर हमला बोलकर पच्चीस लाख की राशी लूटी और चुलिया ग्राम में राणा को अर्पित की! इस धन से फिरसे मेवाड़ की नई सेना का गठन हुवा! इस दरम्यान महाराणा ने चावंड में मेवाड़ की राजधानी की स्थापना की! चावंड में राज्य और प्रजा की व्यवस्था, मंदिर...महाल का निर्माण.....खेती का विकास....जलसंधारण....आदि कई विकास कार्य प्रारंभ किये! शहेंशाह भी अब थक गया था! उसने आखरी पर्व में मेवाड़ पर अधिपत्य का सपना देखना छोड़ दिया!

एक बार कृषक को सताने वाले नरभक्षक शेर की शिकार करते....धनुष्य की प्रत्यंचा खीचते...उनके आंत्र में तकलीफ हुई और वे बीमार हो गए! मृत्यु के पूर्व अपने सरदारों को पास बुलाकर अपनी प्रतिज्ञा की याद दिलाई और उनसे वचन मिलने पर ही इस महान योद्धा ने अपने प्राणों का त्याग किया! १९ जनवरी १५९७ के दिन चावंड में महाराणा की मृत्यु हो गयी!

महाराणा का व्यक्तित्व

महाराणा प्रतापसिंह ने अपने पूर्वजों की शान कायम रखी! लगातार २५ साल उस वक़्त की दुनिया की सबसे बड़ी ताकद से लड़ना कोई मामूली बात नहीं थी! भील-राजपूत-पठान-चारण-लुहार-ब्राह्मन और अन्य जनता की गठजोड़ कर स्वाधीनता का मंत्र जीवित रखा! बूंदी,सिरोही,जालौर,डूंगरपुर,बांसवाडा और इडर जैसे पडोसी राज्य से सुदृढ़ सम्बन्ध बनाये रखे! अकबर के अधीन सत्ताधीश वर्ग का बहिष्कार किया! महाराणा की यह जंग इस्लाम के विरुद्ध नहीं थी! यह जंग अकबर के साम्राज्यवाद के खिलाफ थी!परधर्म का उन्होंने हमेशा आदर किया था! उनके इस यज्ञ में जालौर के ताज खान, हाकिम खान सूरी, पिरखान जैसे योद्धा भी थे! नसीरुद्दीन जैसे महान चित्रकार को उन्होंने पनाह देकर उसकी कला का भी सन्मान किया था! नसीरुद्दीन ने 'रागमाला' चावंड चित्रशैली का विकास किया था ! महान जैन मुनि हरिविजय सूरी जी को उन्होंने गुरु के रूप में माना था! पंडित चक्रपानी मिश्रा के द्वारा कई ग्रंथों की रचना करवाई!
मेवाड़ के इस रणसंग्राम में केवल सैनिक ही नहीं अपितु प्रजा भी हथियार लेके कूद पड़ी थी!
अपनी आज़ादी के इस संग्राम के लिए अपने गाव...घर का त्याग कर वनवास का जीवन उन्होंने स्वीकार किया था!
जब विख्यात वीर अब्दुल रहीम खानखाना ने मेवाड़ पर आक्रमण किया तब उसकी छावनी शेरपुर के नजदीक थी! कुंवर अमरसिंह ने उस डेरे पर सीधा हमला बोल दिया था और खानखाना की बेगमों को हिरासत में लेकर महाराणा के पास पंहुचा था! महाराणा ने इस घटना की कड़ी निंदा की थी और उन औरतों को सन्मान के साथ सुरक्षित वापस भिजवा दिया था ! राणा की इस कृति का खानखाना पर गहरा प्रभाव सिद्ध हुवा! उसने राणा की तारीफ कर ख़त लिखा:-

"धरम रहसी ,रहसी धरा;खप जसी खुरसान!
अमर विसम्बर उपर्यो; राख नह्च्यो राण !"

[अर्थात: हे महाराणा यवनों का विनाश होगा और तुम्हारा धर्मं और धरती कायम रहेगी! सिर्फ अमर प्रभु पर विश्वास रखो!]

जब महाराणा के मृत्यु की वार्ता शहेंशाह अकबर के दरबार में पहुंची तब शहेंशाह का मन विश्वास नहीं कर रहा था! उसे भी बहुत दुःख हुवा! कवी दुरसा आढ़ा उस समय अकबर के दरबार में मौजूद था !उसने शहेंशाह की मनोदशा का अवलोकन कर निम्नलिखित पंक्तिया पेश की थी!

"अस लागौ अनदाम
पाग लेगौ अननामी!
गो आढ़ा अवडाय
जीको बह्तौ धुर वामी !!

नवरोजे नही गयो
न गो आतसा नवल्ली!
न गो झरोखा हेठ
जेथ दुनियां दहल्ली!!

गहलोत राणा जीती गयौ
दसन मुंड रसना डसी!
निसास मूक भरिया नयन
तो मृत सह प्रतापसी!!

अर्थात: जिसने कभी अपने घोड़ों को शाही दाग नहीं लगाया.......जो अकबर के दरबार द्वारा मनाये नवरोज के उत्सव में कभी सम्मिलित नहीं हुवा....जो कभी अकबर के झरोंको के निचे खड़ा नहीं हुवा! वह गहलोत कुलगौरव राणा जित गया और जिसकी मृत्यु वार्ता से खिन्न शहेंशाह ओझल नयनों से देख रहा है!

धन्य वह वीर.....धन्य वह धरती!
महाराणा प्रताप सिंह जी का समाधी स्थल: चावंड {राजस्थान}




तव समाधी के सन्मुख,
नतमस्तक है भावुक!
हो न कभी पथ विन्मुख,
दो असीस प्यारा!!


कण-कण भी यदि अणूमें
तेज हो तुम्हारा!
चमकाए तिमिर भरा,
भूमंडल सारा!!

(C)लेखक: जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे {सिसोदिया}
 प्लाट: ५०,विद्याविहार कालोनी,शिरपुर जी. धुले {महाराष्ट्र}
   इमेल: jaypalg@gmail.com
      Blog: http://jaypalg.blogspot.com/
                                                                                Mobile: 09422788740

शिरपुर में धूम धाम से मनाई गयी महाराणा प्रताप जयंती...!





हर साल की तरह इस साल भी शिरपुर(महाराष्ट्र) में राष्ट्रगौरव श्री महाराणा प्रतापसिंह जी की ४७० वी जयंती बड़े धूम धाम से मनाई गयी! इस अवसर पर "राष्ट्रगौरव श्री महाराणा प्रतापसिंह जयंती उत्सव समिति" की और से प्रतिमापुजन; भव्य शोभायात्रा; क्षात्रप्रतिभा सन्मान; प्रकट सभा आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया गया था !

दोपहर ३ बजे शिरपुर के विधायक श्री अमरीश भाई पटेल, दोंडाइचा के विधायक श्री जयकुमार रावल, विधायक श्री कांशीराम पावरा;शिरपुर के प्रमुख राजनैतिक कार्यकर्ता एवं प्रमुख सरकारी अधिकारी द्वारा महाराणा प्रताप की प्रतिमा का पूजन किया गया! वहा उपस्थित अतिथियो ने सम्भोदित किया! वहा से भव्य शोभायात्रा का प्रारंभ हुवा! इस शोभा यात्रा में महाराणा और सैनिकों के वेशभूषा में सजे युवक रथयात्रा में खांस आकर्षण थे! रथ के आगे पीछे घोड़े पर बैठे युवक; नाचने वाले घोड़े लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गए थे! ढोल-ताशे और बैंड की धून पर युवक मनो झूम रहे थे! इस शोभायात्रा में ५००० से ज्यादा लोग शरीक थे!

सायं ७ बजे शोभायात्रा शहर के प्रमुख मार्ग पर से होकर आमोदा स्थित महाराणा प्रताप मैदान पर पहुची! दीपप्रज्वलन के साथ समारोह का उद्घाटन प्रमुख अतिथियों ने किया! शिरपुर के जाने मने सामाजिक कार्यकर्ता तथा समिति के संयोजक श्री जयपाल सिंह गिरासे ने अपने प्रस्ताविक भाषण में आज तक की सारी गतिविधियों का परामर्श लेकर प्रमुख अतिथियों का परिचय करवाया! इस साल समारोह के प्रमुख अतिथि थे अंतर्राष्ट्रीय क्षत्रिय राजपूत संघ के संस्थापक कुंवर जितेन्द्रसिंह चौहान[कानपूर,उत्तर प्रदेश]..! उनके साथ दोंडाइचा संस्थान के कुंवर विक्रांत सिंहजी रावल, मालपुर दरबार गढ़ संस्थान के ठाकुर महावीर सिंह रावल (उपाध्यक्ष:जिला परिषद्,धुले) ,करवंद संस्थान के श्री काशीनाथ रावल, श्री बी.के.सिंह[आजमगढ़, उत्तर प्रदेश ] , प्रिंसिपल सुभेर सिंह पाटिल, श्री नारायण सिंह चौधरी,श्री नरेन्द्रसिंह सिसोदिया,श्री एकनाथ जमादार, श्री चंदनसिंह राजपूत, श्री विजयसिंह राजपूत, श्री विजयसिंह गिरासे,श्री अजबसिंह,श्री दरबार सिंह सिसोदिया,श्री नरेन्द्र सिंह ,श्री नेतेंद्रसिंह,श्री अमृत सिंह जमादार,श्री जगतसिंह राजपूत,श्री प्रकाशसिंह,श्री मंगलसिंह देशमुख, पुलीस अफसर श्री इंगले , डॉ श्याम राजपूत ,राजू टेलर,सुनिलसिंह पाटिल, आदि मान्यवर उपस्थित थे! समिति के कार्यकर्ताओं द्वारा अतिथिओं का स्वागत किया गया! राजपूत समाज के प्रतिभावान छात्र तथा अन्य गुनिजन का खांस ट्रोफी देकर सन्मान किया गया!इस वक़्त विभिन्न पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया गया!

अपने प्रमुख भाषण में कुंवर जितेन्द्रसिंह चौहान ने कहा:"अगर सच्चा क्षात्र धर्मं निभाना है तो सांस्कृतिक सरंक्षण के लिए आगे आना होगा! क्षत्रियों का भारत के निर्माण में सबसे ज्यादा योगदान रहा है! क्षत्रियो ने त्याग और समर्पण से एक अलग इतिहास का निर्माण किया! सबसे ज्यादा दानी; सबसे ऊँचा चरित्र, सबसे ज्यादा वीरता और बलिदान, सबसे ज्यादा राजनिष्ठा और देशप्रेम के अगर उदाहरण इतिहास के पन्नों पर देखे जाये तो आप को केवल क्षत्रिय नर-नारी ही नजर आयेंगे! भुत के इस महान विरासत का केवल अभिमान करना तभी सार्थक होगा जब हम अपने आचरण से क्षत्रिय संस्कार को जीवित रखेंगे! अपने एक घंटे के भाषण में उन्होंने तरह तरह के विचार;सामाजिक आन्दोलन; महाराणा प्रताप जी के अद्वितीय त्याग के उदाहरण आदि विषय पर भी अपने विचार प्रकट किये! अपने तेज वकृत्व से उन्होंने सभी जनमानस का दिल जित लिया!

श्री जयपालसिंह गिरासे ने समारोह के समारोप पर सभी का आभार जताया! श्री रत्नदीप सिंह सिसोदिया {संपादक-पुलिस टूडे} ने समारोह का सञ्चालन किया! समारोह के बाद शिरपुर के होटल किंग श्री जितेन्द्रसिंह गिरासे जी ने सभी अतिथियों के सन्मान में खास भोजन समारोह का आयोजन किया था!

इस समारोह की सार्थकता के लिए अतुल सिसोदिया,राज देशमुख,अम्बालाल राजपूत,शैलेशसिंह गिरासे, संग्रामसिंह चौधरी, सुनील सिंह राजपूत, जयेंद्रसिंह रावल,केवलसिंह राजपूत,सचिन सिंह,योगेन्द्रसिंह सिसोदिया,धनसिंह,रणवीर राजपूत, प्रफुल राजपूत, जयदीप सिंह,शिवम् सिंह, सोहन सिंह, मुकेश राजपूत,जगदीश नाना,जगदीश देशमुख आदि कार्यकर्ताओ के साथ शिरपुर तथा अन्य परिसर के युवाओ ने विशेष परिश्रम किये!

'मै' और मेरा 'प्रण'